Childrens Poetry in Hindi: बस्ता

Dr. Mulla Adam Ali
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बस्ता


मम्मी कैसे इसे उठाएँ,

बस्ता मेरा भारी ।

रोज लादना पड़ता इसको,

यह मेरी लाचारी ।।

बीस किताबें और कापियाँ,

कैसे इसे उठाऊँ ?

मन करता है छुट्टी लेकर,

बिस्तर पर सो जाऊँ ।।

थक जाता मैं इसे उठा कर,

खेल नहीं फिर पाता।

पढ़ना लिखना भी मुश्किल है,

इतना मुझे सताता ।।

जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता,

बस्ता बढ़ ता जाता ।

मजबूरी में छोटा बच्चा,

फिर भी इसे उठाता ।।

बस्ता और पढ़ाई दोनों,

में यह कैसा नाता ?

बस्ते के कारण ही बच्चा,

पढ़ने से घबराता ।।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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