भगवती चरण वर्मा के उपन्यासों में मनोविज्ञान

Dr. Mulla Adam Ali
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Bhagwaticharan Verma Novels

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Bhagwati Charan Verma Ke Upanyason Men Manovigyan

भगवती चरण वर्मा के उपन्यासों में मनोविज्ञान

हिन्दी उपन्यस साहित्य के अग्रगण्य सर्वोपरि प्रतिभाशाली कलम के धनी, सरस्वती पुत्र भगवतीचरण वर्मा का जन्म सन् 1903 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर नामक स्थान पर हुआ। बचपन से ही भगवतीचरण वर्मा की प्रवृत्ति कला और काव्य की ओर हो गई थी। इन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में रचना की। भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों की ओर जब हम ध्यान आकृष्ट करते है तो स्पष्ट रूप से एडलर फ्रायड युगं जैसे मनोवैज्ञानिकों के सिद्धान्तों की छाप दिखाई पड़ती है। इलाचंद्र जोशी, जैनेंद्र की भांति उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा पर फ्रायड का प्रभाव अत्यधिक प्रमाण में नजर आता है। भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों के पात्रों में अतृप्त कामवासना भरी है। किन्तु समाज के भय से वे अपने आपको दबा लेते है। इसके उदाहरण है रानीमानकुमारी, जगतप्रकाश आदि पात्र । (सामर्थ्य और सीमा, सीधी सच्ची बातें) । अतृप्त कामभावना के पश्चात भी सामाजिकता के आग्रह के कारण अपनी काम-भावना की अबाध तृप्ति के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। मनोवैज्ञानिक उपन्यास में पात्रों की स्थितियों और घटनाओं में डालकर उनके सामान्य व्यवहार में नहीं देखा जाता, बल्कि मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाओं का आकलन किया जाता है। यही कार्य भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास "टेढ़े मेढ़े रास्ते", "चित्रलेखा" के माध्यम से पूर्ण किया है। "रेखा" उपन्यास में भगवतीचरण वर्मा ने एक बाईस वर्ष की युवती रेखा का पचास वर्षीय प्रोफेसर के साथ का प्रेम संबंध दर्शाया है, बाद में विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। किन्तु "रेखा" की शारीरिक भूख मिटाने में प्रेफेसर असमर्थ होता है और रेखा अपनी वासना की पूर्ति अन्य लोगों से सम्पर्क में आ मिटा लेती है। रेखा के समस्त कार्यकलाप अतृप्त कामभावना से प्रभावित है। अतृप्त कामभावना के कारण ही वह सोमेश्वर को न चाहते हुए भी उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करती है। " एकाएक सोमेश्वर ने कसकर रेखा को आलिंगन-पाश में जकड़ लिया। रेखा घबरा गई, यह क्या कर रहे है आप, मुझे छोडिये। यह बड़ा गलत काम है। रेखा केवल कह रही थी यह सब, जहाँ तक शरीर का संबंध था, वह असीम सुख का अनुभव कर रहा था, वह शरीर जैसे सोमेश्वर के शरीर से पृथक होने के स्थान पर उससे लिपटना जा रहा था।" ('रेखा' उपन्यास - पृ सं. 51)

भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यासों में प्रेम और घृणायुक्त भावनाओं की सैद्धान्तिक और व्यावहारिक व्याख्या की है। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में अधिकांशतः प्रेम और काम का ही चित्रण किया जाता है। जन-मानस के दुविधापरक स्थितियों का भी आकलन कर मनोविज्ञान के पृष्ठभूमि पर निष्कर्ष स्पष्ट किया जाता है। फ्रायड ने मानसिक संतुलन में इड, ईगो तथा सुपर ईगो के संघर्ष को महत्व दिया है। इड में निहित कामुक इच्छाएं अहम उनकी पूर्ति में बाधक होता है, जिसके कारण संघर्ष होता है। इड, ईगो तथा सुपर ईगो के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस बात को फ्रायड के सिद्धान्तों के आधार पर भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास में चित्रित किया है। भगवतीचरण वर्मा ने अपने उपन्यास के पात्रों में व्यक्तिवादी तथा समाजवादी दोनो पक्षों के स्वर को प्रधानता के कारण जो द्वन्द्वात्मक स्थिती उत्पन्न होती है, उसका भी चित्रण आवश्यक माना है। पात्रों के मन में उटनेवाले इस द्वन्द्व की ओर भगवतीचरण वर्मा ने विशेष ध्यान आकृष्ट किया है।

फ्रायड के पश्चात भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों में एडलर के जीवन लक्ष्य संबंधी सिद्धान्त, हीनता ग्रंथि का सिद्धान्त का छाप भी दिखाई पड़ता है। भगवतीचरण वर्मा के "तीन वर्ष" उपन्यास का पात्र रमेश हीनता ग्रंथि से प्रभावति दिखाई पड़ता है। रमेश इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ता है वहाँ उसकी दोस्ती अमीर अजीत के साथ होती है। अपना स्तर देखकर रमेश अपने आपको छोटा तथा भिखारी समझता है। अपने आपको निःसहाय महसूस करता है। वह कहता है - "मैं जो कुछ भी हूँ वह मैं नहीं हूँ : तुमने मुझे बनाया है। इस कपट पूर्ण व्यक्तित्व को लेकर मैं विश्व में बढ़ रहा हूँ। लोग मुझे अमीर समझते है। मैं संपन्न हूँ हा हा हा केवल इस लिये कि मुझ पर तुम्हारी कृपा है और मैं सहर्ष शिक्षा स्वीकार करके भिखारी बन गया हूँ।" (तीन वर्ष-उपन्यास-पृसं. 92) इस प्रकार भगवतीचरण वर्मा ने सामाजिक सुधार के नाम पर यथार्थ के आड़ में वर्जित विषयों पर लिखकर बीभत्स अश्लीलता का चित्रण मनोवैज्ञानिक तत्वों के आधार पर उपन्यासों की रचना की। मनोविश्लेषणात्मक उपन्यस लिखने में उपन्यसकारों के लिए एड़लर फ्रायड़ स्टेकेल व एलीस हेवलाक के सिद्धांत पथप्रदर्शक बनें। व्यक्ति के मन में होने वाले अंतः संघर्ष का बाहय संघर्ष का परिणाम उपन्यासकार अनुभूति व कल्पना बल को उपन्यास के रूप में प्रस्तुत किया। जिसमें भगवतीचरण वर्मा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

भगवतीचरण वर्मा कृत "सामर्थ्य और सीमा", "तीन वर्ष", "सीधी सच्ची बतें", "रेखा" आदि उपन्यासों में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का छाप दिखाई पड़ता है। 'अतृप्त कामवासना का सिद्धान्त' जीवन-मृत्यु का सिद्धान्त इड, ईगो, सुपर ईगो और हीनता ग्रंथि का सिद्धान्त आदि सिद्धानों का बोलबाल प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से भगवतीचरण वर्मा के उपन्यास के पात्रों में दिखाई पड़ता है।

भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों की सूची :

1. पतन, 2. चित्रलेखा, 3. तीन वर्ष, 4. रेखा, 5. टेढ़े-मेढ़े रास्ते 6. आखिरी दाँव 7. अपने खिलौने 8. भूले बिसरे चित्र 9. वह फिर नहीं आयी., 10. थके पाँव 11. सामर्थ्य और सीमा 12. सीधी सच्ची बातें 13. सबहि नचावत राम गोसाई 14. प्रशन और मरीचिका 15. युवराज चूँडा 16. धुमल 17. चाणक्य ।

- जे. नागराज

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