Bal Kavita In Hindi: कुर्सी

Dr. Mulla Adam Ali
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Bal Kavita Kursi

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Children's Poem Kursi

कुर्सी


आओ बच्चों तुम्हें बताएँ,

हम कुर्सी की माया।

मंत्री, नेता, अफसर सबको,

जिसने नाच नचाया ।।

कुर्सी पर बैठा अधिकारी,

सब पर रोब जमाता ।

पर ऊँची कुर्सी वालों को,

जाकर शीश झुकाता।।

कुर्सी पाकर भी कुर्सी का,

अर्थ समझ ना पाता।

कुर्सी के चक्कर में पड़कर,

कुर्सी सा बन जाता ।।

जिनके पास नहीं है कुर्सी,

देख इसे ललचाते ।

जो कुर्सी पर बैठे वे भी,

चैन कभी ना पाते ।।

लक्ष्मी जैसी ही कुर्सी की,

बड़ी अनोखी माया।

दूर हुआ वह दीन-धर्म से,

जो चक्कर में आया ।।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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