प्रतिनिधि बाल कविता: देश बनाएँ

Dr. Mulla Adam Ali
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Desh Banaye Bal Kavita

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देश बनाएँ

सारा जग फिर से महकाएँ।

अपने घर के सारे झगड़े,

आपस में मिल कर सुलझाएँ।

भारत माता की बगिया में,

नये-नये फिर फूल खिलाएँ।

मधुर सुगन्ध बहा कर इनकी,

शक्ति एकता में कितनी है,

यह रहस्य सबको समझाएँ।

सत्य न्याय के पथ पर चलना,

जीवन का आदर्श बनाएँ।

जीवन संघर्षों से लड़ना।

जन जन को फिर से सिखलाएँ।

ज्ञानदीप की ज्योति जला कर,

एक नया विश्वास जगाएँ।

मानव में फिर मानवता भर,

मानव को आदर्श बनाएँ।

हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,

सब भाई-भाई बन जाएँ।

अपने-अपने भेद भुला कर,

आओ मिल कर देश बनाएँ।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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