Hindi Poet and Author Dharamvir Bharati Ka Vyaktitva aur Krititwa in Hindi, Dharamvir Bharati Hindi Biography, Dharamvir Bharati and his Literary Works.
Dharamvir Bharati Biography
धर्मवीर भारती का जीवन और लेखन
डॉ. धर्मवीर भारती : व्यक्ति एवं रचना
डॉ. धर्मवीर भारती वर्तमान युग के प्रतिष्ठित रचनाकार है। नयी कविता के प्रतिनिधि कवि, कथाकार, एकांकीकार, निबन्धकार, समीक्षक एवं संपादक के रूप में डॉ. धर्मवीर भारती ने आधुनिक हिन्दी साहित्य को नयी दिशा प्रदान की है। उनका साहित्यिक व्यक्तित्व बहुपक्षीय एवं विशिष्ट है। डॉ. धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर सन् 1926 को प्रयाग में हुआ था। उनके पिता का नाम चिरंजीवलाल वर्मा था तथा माता का नाम चंदादेवी। डॉ. धर्मवीर भारती की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही संपन्न हुई। बाद में उन्हें डी.ए.बी. हाई स्कूल, इलाबाद को उच्च शिक्षा-प्राप्ति हेतु भेजा गया। जब वे आठ वें दर्जे में पहुँच गये ये तब उनके पिता का देहान्त हो गया। उसके बाद उन्हें गरीबी में बहुतेरे कष्टों को झेलना पडा। प्रयाग में उनके मामाजी अभय कृष्ण जौहारी की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। वे सन् 1947 में. एम.ए. हिन्दी की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। उसके बाद डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में उन्होंने सिद्ध सहित्य पर अनुसंधान किया तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पी.हच.डी की उपाधि प्राप्त की। वहीं विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रवक्ता के पद पर वे नियुक्त हो गये. अद्यापन कार्य से जीवन की शुरआत करके साहित्य-साधना के क्षेत्र में वे आगे बढ़े। उन्हें एम.ए. अध्ययन को पूरा करने के लिए पद्माकान्त मालवीय के पत्र "अब्युदाय” में पार्टटाइम पर नौकर करनी पड़ी। सन् 1948 में इलाचन्द्र जोशी के पत्र 'संगम' के सहकारी संपादक के रूप में नियुक्त हो गये तथा वहाँ इसी रूप में दो वर्ष तक कार्य करते रहे। तदुपरान्त उन्हे प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में प्राध्यापक का पद मिल गया। सन् 1960 तक अपना अध्यापन कार्य मे संलग्न रहे। आप बंबंई से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की सुप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रदान संपादक बन गए।
डॉ. धर्मवीर भारती ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने जीवन में बहुत परिश्रम एवं कठिनाई से आत्म निर्भर बने। पश्चिम जर्मनी सरकार के आमंत्रण पर सन् 1961 में उन्हें जर्मनी यात्रा करने का अवसर मिला था। सन् 1966 में उन्होंने भारतीय दूतावास के अतिथि बनकर इंडोनिशिया तथा थाईलैंड की यात्राएँ की। उन्हें सन् 1967 में संगीत नाटक आकादमी का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1971 में उन्होंने भारत-पाक युद्ध के मध्य भारतीय सेना के साथ युद्ध के वास्तविक मोर्च तक स्वयं जाकर रोमांचक अनुभव प्राप्त किए। सन् 1972 में उन्हें 'पद्मश्री' उपाधि से विभूषित किया गया। धर्मवीरभारती ने मई 1974 में मारिशस की यात्रा करके मरिशसीय जनता की समस्याओं का अध्ययन प्रस्तुत किया है।
डॉ. धर्मवीर भारती की प्रसिद्ध काव्य कृतियाँ हैं - "अंधायुग", "कनुप्रिया", "ठंडा लोहा" और "सात गीत वर्ष"। 'अन्धा युग' डॉ. भारती का पौराणिक नाट्य काव्य है। इसका रचना काल सन् 1954 है। 'अंधायुग' नयी कविता की काव्य संवेदना, शिल्पगत, नवीनता और भाषा-सौष्ठव की स्वायत्ता का परिचायक है। डॉ. भारती कृत 'अंधायुग' एक युग-प्रवर्तक नाट्य-काव्य है। इसके कथानक का आधार 'महाभारत' है। 'अन्धायुग' के पाश्चत 'कनुप्रिया' भारती की सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रबंधात्मक रचना है। भारती ने राधा एवं कृष्णा के पुराख्यान को युगीन संदर्भों के निरूपण का माध्यम बनाया है। सन् 1952 में भारती जी के "ठंडा लोहा" का प्रकाशन हुआ है। इसमें उनकी रोमांटिक प्रकृति का बोध होता है। "ठंडा लोहा" सन् 1946 से 52 तक की अवधि में रची हुई कविताएँ संकलित की गयी है। "सातगीत वर्ष" में कुल 51 कविताएँ संकलित हैं। उनके भावुक कवि रूप के साथ उनके चिन्तक रूप की प्रतीति भी कराता है। "साथ गीत वर्ष" की अधिकांश कविताएँ छाया वादी प्राकृतिक आरोपण से युक्त होते हुए भी रुमानी अंदाज के कारण कहीं-कहीं मांसल भी होने लगती हैं। "गुनाहो का देवता" तथा "सूरज का सातवाँ घोड़ा" भारती के दो प्रकाशित एवं बहुचचर्ति उपन्यास हैं। "गुनाहों का देवता।" मध्य वर्गीय जीवन की यथार्थ मूल संकट, पारिवारिक संत्रास मानसिक ऊहा पोह इत्यादि का दिग्दर्शन कराता है। "सूरज का सातवाँ घोडा" (1952) भारती का सामाजिक उपन्यास है। इसकी कथा का प्रेरणा- स्रोत आजादी के बाद का हमारा निम्न मध्यवर्ग का समाज है जो रूढिग्रस्त नैतिकता के संकट और आर्थिक विषमताओं में जर्जर हो गया है।
डॉ. धर्मवीर भारती की कहानियों के दो । संग हैं। पहला - "चांद और टूटे हुए लोग" (1955) और दूसरा है - "बंदगली का आखरी मकान" (1969)। उन्होंने एकांकी लिखे हैं जो "नदी प्यासी थी" (1954) शीर्षक से प्रकाशित है। भारती ने निबन्ध भी लिखे हैं जो "ठेले पर हिमालय ", "कहानी-आकहानी" और "पश्यंती" में संग्रहित हैं। डॉ. भारती ने कुछ-एक सुन्दर संस्मरण लिखे हैं। "ठेले पर हिमालय" संकलन में "उसने कहा था" एक संस्मरण संकलित है। इसी संकलन में उसके दो यात्रा संस्मरण संकलित हैं।
डॉ. भारती हिन्दू साप्ताहिक पत्रिका के व्यवस्थापक संपादक थे। "धर्मयुग" में उन्होंने सन् 1960 से 1987 तक करीब 27 वर्ष तक काम किया । संपादक के रूप में डॉ. भारती के लेखों में उनकी रचना-प्रक्रिया एवं धार्मिकता का परिचय होता है। सिद्धहस्त पत्रकार प्रबुद्ध आलोचक रोमानी लोक प्रिय भावुक कवि को डॉ. धर्मवीर भारती में देखा जा सकता है। समीक्षक के रूप में भारती के रचनाएँ प्रगतिवाद : एक समीक्षा मानव- मूल्य और साहित्य" प्रसिद्ध हैं। इस प्रकार आधुनिक हिन्दी साहित्य संवृद्दि में डॉ. धर्मवीर भारती का महत्वपूर्ण योग रहा है।
- डॉ. काकानि श्रीकृष्ण