धरती ने कहा था कभी : हिंदी कविता

Dr. Mulla Adam Ali
0

Dharti Ki Pida Ke Vishay Par Kavita, Hindi Kavita Kosh, Poem on Earth in Hindi, Dharti Ki Kavitayein, Hindi Kavita Sangrah.

Dharti ne Kaha Tha Kabhi

Dharti Ki Pida

हिंदी कविता धरती ने कहा था कभी : पृथ्वी के विषय पर बेहतरीन प्रेरणादायक कविता धरती ने कहा था कभी, धरती की पीड़ा पर कविता, हिंदी कविता कोश, हिंदी कविताएं।

धरती की पीड़ा हिन्दी कविता

धरती ने कहा था कभी


छूना मत मुझे

जगाना मत मेरी संवेदनाओं को

सो रही हूँ मैं चिंतन की निद्रा में

किंतु

बात नहीं मानी,

अपने मन की करके ठानी

चिंतन निद्रा से जागी तो

करवट बदलनी थी

थोड़ी-सी ही हिली मैं

तो तुम

बेचैन हो गए

कभी सोचा नहीं मेरी व्यथाओं को

घाव पर घाव देते रहे तुम

नश्तर चुभो कर मनमानी करते रहे

क्या करूँ...... क्या करूँ ?

मन तो नहीं था, इच्छा भी नहीं थी

फिर भी अनमनी हो जो कुछ किया मैंने

दोष मेरा नहीं है

है तुम्हारा

इच्छाओं को रौंदते हुए निकल जाने वाले

तुम्हारे गतिमान पाँवों को

कहीं तो रोकना था

अपने ही बच्चों के दामन की खुशियाँ

छीनकर कौन सुखी होती है

मैं भी

रोई हूँ बहुत

कई-कई रातों तक

मन को समझाती रही

पड़ी दरारें और कंपन

इसी के परिणाम हैं, इसी के परिणाम हैं।

- डॉ. निर्मला एस. मौर्य

Related; समुद्र : चार कविताएँ - कविता Hindi समुद्र Poems

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top