शिक्षा के क्षेत्र में टेलीविज़न का महत्त्व : दूरदर्शन द्वारा शिक्षा पर निबंध

Dr. Mulla Adam Ali
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Doordarshan aur Shiksha Par Nibandh

Doordarshan Aur Shiksha Par Nibandh

Telivision and Education Hindi Essay

दूरदर्शन द्वारा शिक्षा

हमारा आज का युग अनेकविध वैज्ञानिक खोजों और प्रगतियों का युग है। इस युग ने उपयोगी आविष्कारों के रूप में मानव-जीवन को बहुत कुछ दिया है। सभी क्षेत्रों में उसके उपकरणों का उपयोग और महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यातायात, व्यापार, चिकित्सा, कृषि, युद्ध और मनोरंजन की भाँति शिक्षा के क्षेत्र में भी वैज्ञानिक आविष्कारों का उपयोग होने लगा है। शिक्षा के दृश्य-श्रव्य उपकरण विज्ञान का आधुनिकतम आविष्कार दूरदर्शन (टेलीविजन) है। टेलीविजन विज्ञान के उन महत्त्वपूर्ण आविष्कारों में से है, जो मनोरंजन के साथ-साथ हमारी ज्ञान-वृद्धि में अत्यन्त सहायक होते और हो सकते हैं। टेलीविजन (दूरदर्शन) से हम घर बैठे ही दूर के व्यक्तियों तथा दृश्यों को चलते-फिरते रूप में काँच के पर्दे पर देख-सुनकर बहुत कुछ सीख सकते हैं। व्यावहारिक दृष्टि से उसे घरेलू शिक्षक भी कहा जा सकता है।

दूरदर्शन का आविष्कार 25 जनवरी, 1926 को जान बेयर्ड ने किया था। दूरदर्शन पर सबसे पहला चित्र 'काठ की गुड़िया' प्रसारित किया गया था। यह तो सर्वविदित है कि ध्वनि को आकाशवाणी के द्वारा दूर भेजने के लिए ध्वनि तरंगों को बिजली की धारा में बदलना पड़ता है। पुनः इस धारा को रेडियो तरंगों पर चढ़ाकर मीलों दूर तक प्रसारित किया जाता है। दूरदर्शन का सिद्धान्त भी लगभग ऐसा ही है। यहाँ ध्वनि के स्थान पर दृश्य के प्रकाश को विद्युत्-धारा में बदलकर रेडियो तरंगों द्वारा दूर प्रसारित किया जाता है। उधर दूरदर्शन के संग्राहक यन्त्र में दो-एक स्विच खोले, कुछ डॉयल घुमाए कि सेट के पर्दे पर दूर का दृश्य दिखाई देने लगता है। आरम्भ में बीस-पच्चीस मील दूरी के दृश्य ही दूरदर्शन से प्रदर्शित-प्रसारित किए जा सकते थे, किन्तु अब यह दूरी 300 मील से भी अधिक दूर तक पहुँच गई है। उड़ते हुए राकेट-केन्द्र से प्रभावित दृश्य तो पाँच सौ मील से भी अधिक दूरी तक दिखाई देते हैं। सैटेलाइट की सहायता से इनकी गति और दूरी को इस सीमा तक बढ़ा दिया गया है कि हजारों मील दूर हो रहा क्रिकेट मैच हम घर बैठे देख सकते हैं।

दूरदर्शन घर पर बैठे व्यक्ति के लिए भी शिक्षा का एक सरल सरस और उपयोगी माध्यम है। इसके द्वारा प्रदत्त शिक्षा का सबसे बड़ा उपयोग है कि वह शिक्षा को सजीव, सरस, सचित्र और मनोरंजक बना देता है। ऐसा लगता है मानो दूरदर्शन के द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापक पढ़ाता हुआ हमारी श्रेणी में पहुँच गया है। दूरदर्शन में एक विचित्र आकर्षण है। इसका प्रमाण विद्यार्थियों की इसके प्रति रुचि है। श्रेणी का प्रत्येक विद्यार्थी टेलीविजन की घण्टी में उपस्थित रहकर पर्दे पर दैनिक पाठ को अवश्य देखना चाहता है। वस्तुतः वे इस घण्टी की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। वह इसलिए कि दूरदर्शन के द्वारा शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ उनका मनोरंजन भी होता है। दूरदर्शन की ही यह विशेषता है कि वह आँख, कान और हृदय को एक साथ आकर्षित कर पूर्ण एकाग्र बना देता है। आँखों से हम चलते-फिरते चित्र देखते हैं, जिनमें सिनेमा का-सा आनन्द आता है। कानों से हम विषयवस्तु का विवरण सुनते हैं, जिनमें हमें कथा और संगीत का-सा सुख अनुभव होता है। हृदय से हम नवीन विचार ग्रहण करते हैं। इस प्रकार, दूरदर्शन क्या है, परम सचेत आनन्द की दृश्य-श्रव्य त्रिवेणी है।

विद्यार्थियों के लिए दूरदर्शन-प्रसारण में अध्यापक प्रयोगात्मक विधि से पाठ प्रस्तुत करते हैं। वे विषयानुकूल अनेक प्रकार के शिक्षण-साधनों और उपकरणों का भी उपयोग करते हैं, जिससे पाठ न केवल मनोरंजक बन जाता है. अपितु व्यावहारिक होकर छात्रों के मन-मस्तिष्क में उतरकर रह जाया करता है। इसका परिणाम यह होता है कि श्रेणी के कमजोर विद्यार्थी भी कठिन-से-कठिन पाठ को विविध उपकरणों की सहायता से सरलता से समझ जाते हैं। जहाँ अन्य घण्टियों में कई विद्यार्थी विद्यालय से भागने का यत्न करते हैं, वहाँ दूरदर्शन की घण्टी में वे पाँच-दस मिनट पहले ही पहुँच जाते हैं। दूरदर्शन के समूचे पाठ वे तन्मय होकर देखते, सुनते और बताई बातों को ग्रहण कर सरलता से याद भी रख पाते हैं।

विज्ञान के शिक्षण में तो दूरदर्शन से समय और धन की बहुत बचत होती है। उदाहरणार्थ यदि किसी प्रयोगशाला में कोई सर्जन हृदय का आपरेशन करता है तो अधिक-से-अधिक तीन-चार विद्यार्थी उसे ठीक और समीप से देखकर सीख सकते हैं। किन्तु दूरदर्शन की सहायता से तो एक बड़े हॉल के पर्दे पर पूरे प्रयोग को तीन-चार सौ विद्यार्थी देख सकते हैं। अन्य हजारों-लाखों लोग भी अपने घरों में देखकर लाभान्वित हो सकते हैं। विविध दूरदर्शन सेटों पर दूर-पास के लाखों-करोड़ों विद्यार्थी उसे एक साथ देखते और बहुत कुछ सीखते भी हैं।

विद्यालयों में दूरदर्शन की घण्टी के पश्चात् प्रश्नोत्तर के लिए भी समय निश्चित होता है। छात्र अपने अध्यापक से प्रश्न पूछकर अपनी समस्याओं का समाधान कर लेते हैं। दूरदर्शन के पाठ-प्रसारण को देख-सुनकर विद्यार्थी अपनी पसन्द और नापसन्द की बातें अधिकारियों को लिखते हैं, जिससे अधिकारीगण अपने प्रसारणों में उस सबको अधिकाधिक छात्रोपयेगी बनाने का यत्न करते हैं।

दूरदर्शन की इन उपयोगिताओं को देखकर दिल्ली तथा अन्य नगरों के प्रायः सभी बड़े विद्यालयों में दूरदर्शन यन्त्र लगा दिए गए हैं। अब तो दूरदर्शन के पर्दे पर काले और सफेद चित्रों के साथ-साथ रंगीन चित्र भी दिखाई देने लगे हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि दूरदर्शन प्रत्यक्ष और व्यावहारिक शिक्षा का बहुत ही अच्छा रंगीन और लोकप्रिय माध्यम बन गया है। दूरदर्शन पर अन्य प्रकार के कार्यक्रम भी शिक्षा और मनोरंजन का कार्य एकसाथ कर सकते हैं। हाँ, इस ओर कल्पनाशीलता की ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।

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