मनोरंजन के आधुनिक साधन Essay in Hindi on Manoranjan ke Adhunik Sadhan

Dr. Mulla Adam Ali
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Manoranjan ke Adhunik Sadhan Nibandh

Manoranjan ke Adhunik Sadhan

Essay on Modern Means of Entertainment in Hindi

मनोरंजन के आधुनिक साधन

भोजन और वायु के समान मानव के लिए मनोरंजन भी आवश्यक है। संसार में मनुष्य का जीवन उलझनों की एक निरन्तर चलती रहने वाली कहानी है। यदि वह दुःख, अभाव और कलह की चक्की में दिन-रात पिसता चला जाए तो उसका जीवन भार बन जाए। इसलिए उसके लिए कुछ ऐसे सुखद क्षणों की अत्यन्त आवश्यकता है, जिनमें वह जीवन की नीरसता से ऊपर उठकर अपना मनोरंजन कर सके। मन-मस्तिष्क को हल्का और तरोताजा करके नए उत्साह से भर पुनः कार्यरत हो सके। किन्तु आज का मानव कल-पुर्जे की भाँति काम में जुटा रहता है। मनोविनोद के लिए सुदूर वन, पर्वत और नदी के सौन्दर्य-दर्शन के लिए उसके पास समय नहीं है। अतः आज मनोरंजन के ऐसे साधनों की आवश्यकता है, जो अल्प समय में ही मनुष्य के उदास, निरारा और थके-हारे मन को गुदगुदा सके। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति उसने दो प्रकार से की है। मनोरंजन के नवीन साधनों का आविष्कार करके तथा मनोरंजन के परम्परागत साधनों का आधुनिकीकरण करके। मनोरंजन के ये दोनों ही प्रकार अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।

मनोरंजन के आधुनिक साधनों में सिनेमा सबसे मुख्य और लोकप्रिय है। मित्रों की मण्डली में सुनो तो सिनेमा की चर्चा, उत्सवों-समारोहों पर सुनो तो सिनेमा के गाने, सड़क पर चलते राहगीरों की और कान लगाओ तो सिनेमा की गुनगुनाहट। वस्तुतः इतना हल्का, इतना स्वाभाविक और इतना सस्ता और कोई साधन नहीं, जिससे एक साथ आँख, कान और मन तीनों का रंजन हो सके। सिनेमा में साहित्य, संगीत, नाटक, फोटोग्राफी, चित्रकला, मूर्तिकला आदि सभी कलाएँ समाविष्ट हैं। अतः इसमें इतना आकर्षण होता है कि तीन घण्टे कैसे बीतते हैं, पता तक नहीं चलता। जीवन के सारे अभाव पीछे छूट जाते हैं और हम अभिनेताओं का आँचल पकड़कर उस स्वप्न लोक में पहुँच जाते हैं, जहाँ हमारा मन आनन्द के सरोवर में किलोलें करने लगता है, वास्तविक जीवन के साथ चाहे उस सबका कोई दूर का भी सम्बन्ध न हो। इसलिए धनी, निर्धन पुरुष, महिलाएँ सब सिनेमा देखते हैं। उच्च, मध्यम, निम्न तीनों वर्गों के लोग चलचित्रों से मनोरंजन करते हैं। सिनेमा की आधुनिक व्यवस्था में केवल एक त्रुटि है कि उसका क्षेत्र केवल नगरों तक सीमित है। ग्रामीण जनता इससे प्रायः वंचित रह जाती है। इस अभाव की पूर्ति के लिए चलते-फिरते सिनेमागृहों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। अब इस अभाव की भरपाई की ओर यथेष्ट स्थान दिया जाने लगा है। टेलीविजन ने भी इस कमी को काफी पूरा कर दिया है। परन्तु हिंसा, नंगापन, वासना, मारधाड़ आदि की जो अधिकता इस माध्यम में होती जा रही है, उसे स्वस्थ लक्षण नहीं कहा जा सकता। उसे दूर करना आवश्यक है।

मनोरंजन का एक अन्य साधन रेडियो भी एक आधुनिक आविष्कार है। उसके द्वारा हम घर बैठे संगीत, नाटक, भाषण, कविता, समाचार, हास्य कथा आदि से मन बहला सकते हैं। शास्त्रीय संगीत, संगीत-आलोचनाएँ, कवि सम्मेलन और खेल तथा उनकी आँखों देखा वर्णन आदि के कार्यक्रम भी रेडियो पर प्रसारित किए जाते हैं। अतः यह सभी वर्गों की रुचि से तुष्टि करता है। कुछ कार्यक्रम केवल महिलाओं के लिए, कुछ विशेषकर सैनिकों के लिए तथा कुछ बालकों और विद्यार्थियों के लिए भी होते हैं। इनसे श्रोताओं को सूचना, शिक्षा और मनोरंजन ये तीनों लाभ होते हैं। रेडियो से बढ़कर एक अन्य आविष्कार भी है-दूरदर्शन (टेलिविजन), जिसमें वक्ताओं व पात्रों के चित्र भी दिखाई देते हैं। सम्पन्न पश्चिमी देशों में उसका प्रसार होने के बाद अब भारत में भी पर्याप्त विस्तार हो रहा है। यों कहना चाहिए कि अब यह माध्यम धीरे-धीरे विस्तार पाकर भारत में रेडियो और एक सीमा तक सिनेमा का भी स्थान लेता जा रहा है। उन्हें काफी पीछे छोड़ चुका है।

मनोरंजन के कुछ अन्य साधन हैं तो परम्परागत, किन्तु उनका आधुनिकीकरण कर लिया गया है। हम उन्हें मुख्य चार वर्गों में बाँट सकते हैं। साहसिक, साहित्यिक, लोकरंजक और विविध।

मनोरंजन के साहसिक साधनों में खेल मुख्य है। उनकी भी दो श्रेणियाँ हैं। विदेशी खेल और देशी खेल, मैदानी खेल तथा घरेलू खेल। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, क्रिकेट, बॉस्केट-बॉल, बैडमिण्टन आदि पश्चिमी और मैदानी खेल शिक्षित वर्ग में अधिक लोकप्रिय हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये एक देशीय न रहकर अन्तर्राष्ट्रीय बन चुके हैं। कलकत्ता में हो रहे मैच में केवल बंगाली नागरिकों की ही रुचि नहीं होती, अपितु भारत के अन्य प्रदेशों के अतिरिक्त इंग्लैण्ड, अमरीका और सुदूर एशिया में बैठे नागरिक भी रेडियो और टेलीविजन पर उसका आँखों देखा हाल सुनते-देखते हैं। इस प्रकार इन खेलों द्वारा मनोरंजन का क्षेत्र व्यापक हो गया है। वह सर्वसुलभ बन गया है।

देशी खेलों में कुश्ती, कबड्डी, रस्साकशी, तैराकी, आँखमिचौनी, गुल्लीडंडा, खो-खो, झूला, पतंगबाजी, दौड़ना, घुड़दौड़, ऊँटों की दौड़, बैलगाड़ियों की दौड़-प्रतियोगिता, पर्वतारोहण, शिकार और यात्रा हमारे परम्परागत खेल हैं। ग्रामों में आज भी ये सब ही मनोरंजन के प्रमुख साधन हैं। भारतीय क्रीड़ा विशेषज्ञों ने इनके वैज्ञानिक नियम बनाकर, अखिल भारतीय स्तर पर इनकी प्रतियोगिताओं का आयोजन करके इनका आधुनिकीकरण कर दिया है। इनमें से कुश्ती, तैराकी, रस्साकशी, दौड़, घुड़दौड़, पवर्तारोहण, शिकार तथा यात्रा तो विश्व प्रतियोगिता के विषय बन चुके हैं।

हर अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में इन्हें भी स्थान दिया जाने लगा है। इन देशी और विदेशी खेलों में यह विशेषता है कि इनसे खिलाड़ियों का मनोरंजन तो होता ही है, दर्शकों का भी पर्याप्त मनोरंजन होता है। फिर मनोरंजन का मनोरंजन और व्यायाम का व्यायाम। इनसे खिलाड़ी में अनुशासन, सामाजिक सहयोग की भावना तथा साहस आदि गुणों का विकास होता है। उन्हें देखकर दर्शक भी ये गुण अपना सकते हैं।

हाल ही में जूडो-कराटे और मुक्केबाजी (बॉक्सिंग) में लोगों की रुचि बढ़ने लगी है। ये साहसपूर्ण मनोरंजन के अपूर्व साधन तो हैं ही, असामाजिक तत्त्वों से अपनी रक्षा के साधन भी हैं। इनका प्रचलन भी निरन्तर बढ़ रहा है। हमारे विचार में बॉक्सिग जैसा हिंसक खेल बन्द होना चाहिए। ताश, शतरंज, कैरम, लूडो आदि घरेलू खेल भी मनोरंजन के अच्छे साधन हैं।

साहित्यिक कोटि के मनोरंजन के साधनों में, नाटक, कवि सम्मेलन, उपन्यास, कहानी तथा पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन, श्रवण, दर्शन आदि मुख्य हैं। ये प्रायः शिक्षित वर्ग के लोगों तक सीमित हैं, अतः इनका साहित्यिक एवं कलात्मक स्तर ऊँचा रहता है। नाटक अब आम जन में भी मनोरंजन व आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है। इसे एक शुभ लक्षण कह सकते हैं।

लोकरंजक साधनों में लोकनृत्य, साँग, लोकगीत, कठपुतली, नृत्य, कबूतर पालन आदि मुख्य हैं। इनमें लोकगीतों व लोकनृत्यों को राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो जाने से उनका बहुत विकास हो रहा है। इनकी लोकप्रियता भी बढ़ रही है। इनका हमारे जीवन-व्यवहारों से भी सम्बन्ध रहता है।

मनोरंजन के विविध साधनों के अन्तर्गत प्रदर्शनी, संग्रहालय, लाइब्रेरी, चिड़ियाघर, क्लब, स्टेडियम और बागवानी का महत्त्व भी कुछ कम नहीं है। ऐसा ही एक 'साधन प्रकृति-दर्शन भी है। जब मनुष्य अपने कृत्रिम वातावरण से निकलकर कुछ देर के लिए प्रकृति की शरण में पहुँचता है, तो वहाँ प्रकृति के विविध मनोरम दृश्यों को देखकर अशान्त मन को सान्त्वना और शान्ति मिलती है। उसमें यह विश्वास जाग उठता है कि संसार में कम-से-कम एक कोना तो ऐसा है, जहाँ वह सुख की साँस ले सकता है। मनोरंजन तन-मन में प्रेरणा और स्फूर्ति का संचार कर देता है। यही उसका पावन लक्ष्य भी है। इसे प्राप्त करने की इच्छा होनी चाहिए, साधन की कमी नहीं। इच्छा, रुचि और स्थिति के अनुरूप सभी प्रकार के साधन सब जगह प्राप्त हैं।

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