जीवन में खेल कूद का महत्व पर 500+ शब्दों में निबंध | जानिए क्यों जरुरी है बच्चों के लिए खेल

Dr. Mulla Adam Ali
0

Essay on Value of Games and Sports in Hindi, जीवन में खेलों का महत्व निबंध 500 शब्दों में लिखिए, जीवन में खेलों का महत्व निबंध 250 शब्दों में, जीवन में खेलों का महत्व निबंध 300 शब्दों में, Importance of Games and Sports essay in Hindi.

Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh

Jivan Mein Khelon Ka Mahatva Nibandh

Essay on Importance of Sports in Hindi

जीवन में खेल-कूद का महत्त्व

किसी बच्चे या किशोर-किशोरी को काम करते देखकर अक्सर कह दिया जाता है, अभी तो इसके खेलने-खाने के दिन हैं। यह वाक्य स्पष्ट करता है कि बचपन और किशोर अवस्था में खेलों का बहुत अधिक महत्त्व है। सच तो यह है कि खेल-कूद का महत्त्व केवल बच्चों और किशोरों के लिए ही नहीं, सभी आयु के लोगों के लिए समान रूप से हुआ करता है। तभी तो कहा जाता है कि जीवन में छोटा-बड़ा हर काम खेल-भावना से करना चाहिए। क्योंकि खेल में एक पक्ष की हार और दूसरे की जीत निश्चित हुआ करती है, इस कारण खेल-भावना से काम करने से सफलता का आनन्द तो होता है; पर हार या असफलता का दुःख उतना नहीं होता, जितना आमतौर पर हारने वाले को हुआ करता है। खेल में हारा हुआ व्यक्ति या समूह (टीम) एक हार के बाद अगली बार जीतने की आशा करता है, जीत के लिए कोशिश और मेहनत भी करता है। इस प्रकार अपनी हार को जीत में बदल पाने में सफल हो जाया करता है। सो कहने का मतलब यह है कि खेल और खिलाड़ी का भाव आदमी के उत्साह को कभी खत्म नहीं होने देता है। हमेशा जीत की आशा बँधाये रखता है। इससे स्पष्ट होता है कि खेल को केवल एक भावना के रूप में लेने और देखने का भी बहुत अधिक महत्त्व है। फिर जब हम सचमुच कोई एक खेल या तरह-तरह के खेल खेलते हैं, नियमपूर्वक उनमें भाग लेते हैं, तब उनका हम पर कितना अधिक और कई तरह का प्रभाव पड़ता होगा। यह प्रभाव ही वास्तव में खेल का जीवन में जो उपयोग और महत्त्व है, उसे स्पष्ट करता है।

हमारे जीवन में खेल का महत्त्व कई प्रकार से देखा और उसका वर्णन किया जाता है। अपने शरीर को स्वस्थ, सुन्दर, चुस्त-दुरुस्त, गठीला और फुर्तीला बनाने के लिए नियमपूर्वक खेलना आवश्यक होता है। तरह-तरह के और आयु तथा मौसम के अनुकूल खेल खेलने से मनुष्य के शरीर का विकास तो होता ही है, मन और बुद्धि का उचित विकास भी हुआ करता है। आयु की दृष्टि से जन्म लेने के बाद बीस-पच्चीस वर्षों की आयु तक मनुष्य के शरीर के अंगों, उसके मन और बुद्धि तथा उसकी आत्मा का निरन्तर विकास होता रहता है। जैसे आयु के ये वर्ष पढ़-लिखकर भविष्य की तैयारी करने वाले हैं, उसी प्रकार भविष्य में हम स्वस्थ रहेंगे या अस्वस्थ, आलसी बनेंगे या चुस्त, कामचोर बनेंगे या काम करने के इच्छुक, दुर्बल बनेंगे या सबल, इन सबकी तैयारी भी इन्हीं वर्षों में करनी होती है। अच्छा परिणाम लाने के लिए अपनी इच्छा और शक्ति के अनुकूल खेल खेलना बहुत आवश्यक है। खेल खेलने से हमारे तन-मन की शक्तियाँ तो बढ़ती ही हैं, हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है। तन-मन से स्वस्थ और बढ़े हुए आत्मविश्वास वाले व्यक्ति के लिए जीवन में कुछ भी कर पाना कठिन नहीं रह जाता। कठिन कार्य करने में उसे सफलता तो मिला ही करती है, आत्मसुख और आत्मसन्तोष भी मिलता है।

कोई भी खेल अकेले नहीं खेला जा सकता। हर खेल दो या अधिक व्यक्ति मिलकर ही खेल पाते हैं। मिलकर खेलने से हमारे परिचय का संसार तो बढ़ता ही है, हमें साथ मिलकर परिश्रम तथा प्रयत्न करने की आदत भी पड़ती है। इस प्रकार मिलकर खेलने से होने वाली हार-जीत किसी एक की न रहकर सबकी साँझी बन जाती है। हार का दुःख और जीत का सुख सभी साथियों में बँट जाया करता है। इससे हमें अपने जीवन के अन्य व्यवहार-क्षेत्रों में भी मिल-जुलकर काम करने, मिल-जुलकर रहने, मिल-जुलकर सुख-दुःख सहने की शिक्षा और प्रेरणा मिलती है। हर खिलाड़ी क्योंकि जीत की इच्छा और भावना से ही खेला करता है, सो हर काम में उत्साह तो बना ही रहता है, यह भाव-विचार भी वैधता है कि हमें सफलता और जीत पाने के लिए ही हर काम करना चाहिए। कभी-कभी हारना और असफल भी होना पड़ता है, पर जीत और सफलता के लिए उत्साह बने रहना, प्रयत्न करते रहना भी कम महत्त्वपूर्ण बात नहीं। इस प्रकार खेल हमें टीम भावना और सहकारिता की भावना से काम करने की शिक्षा देते हैं, कितनी बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है यह।

अच्छे खिलाड़ी को खेलने के लिए अक्सर घर-परिवार से दूर देश-विदेश के कई भागों में जाना पड़ता है। छात्र एक स्कूल से दूसरे में, एक जिले से दूसरे जिले में खेलने के लिए जाया करते हैं। इससे हमारे भूगोल और प्रकृति-ज्ञान का विस्तार तो होता ही है, हमें दूसरी सभ्यता-संस्कृतियों, भाषाओं, खान-पान, रहन-सहन आदि को भी देखने-सुनने, समझने और परखने का अवसर प्राप्त होता है। इससे हमारी जानकारियाँ बढ़ती हैं। मनोरंजन भी होता है। ध्यान रहे, लोग केवल मनोरंजन के लिए भी कई प्रकार के खेल खेला करते हैं। उनसे उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है, यह एक अलग बात है। इसे हम एक अतिरिक्त लाभ कह सकते हैं। खेल अक्सर घर से बाहर निकलकर खुले और साफ-सुथरे वातावरण में खेले जाते हैं। इसमें हम अपने-आपको प्रकृति के निकट बनाए रख सकते हैं। खुली हवा और वातावरण का आनन्द भी ले सकते हैं। प्रकृति के अलग-अलग रूपों को देखकर उनकी जाँच-परख भी कर सकते हैं। तरह-तरह की बीमारियों से बचकर स्वस्थ सुखी बने रह सकते हैं। इससे बढ़कर खेलों का और क्या महत्त्व हो सकता है?

स्थान की दृष्टि से खेलों के मुख्य दो ही भेद या रूप होते हैं। एक ऐसे खेल, जो घर या किसी भी निश्चित स्थान के भीतर (Indoor) खेले जाते हैं, दूसरे वे जो घर या बन्द कमरों से बाहर खुले मैदानों में (Out door) में जाकर खेले जाते हैं। ताश, शतरंज कैरम, लूडो आदि खेल पहली श्रेणी में आते हैं। सभी जानते हैं कि इन खेलों को खेलने से मन-मस्तिष्क का व्यायाम चाहे हो जाए, शरीर और उसके अन्य अंगों का व्यायाम नहीं हो पाता। इन खेलों को इसी कारण केवल मनोरंजन करने और समय बिताने वाला माना जाता है। इसके अतिरिक्त हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबाल, वास्किटबॉल, लॉन-टैनिस, क्रिकेट, कबड्डी, खो-खो, कुश्ती, साइकिल आदि सभी खेल घरों आदि से दूर, बाहर खुले स्थानों और मैदानों में खेले जाते हैं। इनमें से कोई भी खेल खेलने से मन-मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर के हर अंग का अच्छा व्यायाम हो जाता है। भागना, लम्बी-ऊँची कूद कूदना जैसे खेल भी शारीरिक श्रम माँगते हैं। यों योगासनों को भी इन्हीं सबके अन्तर्गत रखा जा सकता है। वास्तव में जब कहीं खेल-कूद के महत्त्व की बात की एवं कही जाती है, तब उसका मतलब इस प्रकार के खेलों से ही हुआ करता है, मात्र मनोरंजन करने वाले घरेलू खेलों से नहीं।

संसार का हर मनुष्य स्वस्थ रहकर लम्बा और सुखी जीवन जीना चाहता है। इसके लिए आयु, अवस्था और शक्ति के अनुसार किसी-न-किसी प्रकार के खेल-कूद की आदत डालना, अभ्यास करना आवश्यक है। बच्चों के खेल अलग तरह के होते हैं, किशोरों और युवकों के अलग। इसी प्रकार प्रौढ़ों और वृद्धों के भी अलग हो सकते हैं, पर कोई-न-कोई खेल खेलना सभी को चाहिए, यह आवश्यक है। अच्छा तो यही है कि बचपन से ही हम अपनी रुचि का कोई खेल अपना लें। फिर शक्ति-अनुसार जीवन-भर या जब तक आयु और शरीर साथ दे, वही खेलते रहें। इससे जीवन नियमित तो रहेगा ही, स्वस्थ और प्रसन्न भी रहेगा। मनुष्य स्वस्थ, सुन्दर, प्रसन्न और सक्रिय रह सके, ऐसा करना ही खेलों का उद्देश्य हुआ करता है। उनका वास्तविक महत्त्व भी इसी दृष्टि से जाना-समझा जा सकता है।

Related; समय का सदुपयोग पर निबंध | Samay Ka Sadupyog Nibandh

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top