महानगरों में यातायात की समस्या पर निबंध

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Nibandh Lekhan Mahanagaron Mein Yatayat ki Samasya Par Essay in Hindi, Traffic Problems in Cities Essay.

Essay on Traffic Problems of Metropolitan cities in Hindi

Hindi Essay on yatayat ki Samasya

Hindi Essay on Mahanagaron Mein Yatayat ki Samasya

महानगरों में यातायात की समस्या पर हिंदी में निबंध

21वीं शताब्दी की ओर बढ़ते सामान्य नगर जब बड़े महानगरों से होड़ लेते प्रतीत होते हैं तो उन महानगरों की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है, जो पहले से ही महानगरों की श्रेणी में गिने जाते हैं। जिस ओर दृष्टि डालिए भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है। ऐसी भीड़ जिसका कोई ओर-छोर दिखाई नहीं देता। ऐसी ही दशा आज हमारे महानगरों की हो गई है। अभाव और बेरोजगारी की मार से त्रस्त ग्रामीण महानगरों की ओर भाग रहे हैं। फलस्वरूप भारत में महानगरों की समस्याएँ प्रतिपल बढ़ती जा रही हैं। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कलकत्ता जैसे महानगरों में प्रतिदिन हजारों लोग ऐसे प्रवेश करते हैं जो वहीं बस जाना चाहते हैं। कामकाज और भ्रमण की दृष्टि से आने वाले लोग अलग से हैं।

महानगरों में आवास, विद्युत और जल की समस्याएँ तो हैं ही, यातायात को समस्या भी विकराल होती जा रही है।

महानगरों में यातायात के अनेक साधन उपलब्ध हैं। रेल, कार, स्कूटर, साइकिल, रिक्शा आदि। इतने परिवहन के साधन उपलब्ध होने के बाद भी व्यक्ति को यातायात की समस्या से प्रतिदिन सामना करना पड़ता है। कार-स्कूटर आदि पर दैनिक यात्रा साधन संपन्न लोग ही कर सकते हैं। साधारण व्यक्ति तो टैक्सी पर भी यात्रा करने में असमर्थ है। वह तो सुख-दुःख के आपात समय में ही टैक्सी स्कूटर का प्रयोग विवशतावश ही करता है। महानगरों का विस्तार इस सीमा तक हो चुका है कि काम- धंधे रिहायशी क्षेत्रों से बहुत दूर पड़ते हैं। वहाँ तक पहुँचाने में साइकिल-रिक्शा अनुपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार के यातायात के साधनों का उपयोग लगभग स्थानीय तौर पर कभी-कभार ही किया जाता है। महानगरों की अधिकांश जनसंख्या स्थानीय परिवहन व्यवस्था या निजी बसों पर निर्भर रहती है, या फिर स्थानीय रेलों, पर आश्रित है, जो कि सभी महानगरों में सुलभ नहीं है। इस प्रकार कुल मिलाकर नगरीय बस सेवा ही यातायात का सबसे सुलभ और सस्ता साधन है जिसका उपयोग समाज के मध्यम और निम्न वर्ग के लोग करते हैं। परंतु महानगरों की जनसंख्या जिस तीव्र गति से बढ़ रही है, बस सेवाओं का विस्तार उस गति से नहीं हो पा रहा है। दिल्ली जैसे महानगर में, जहाँ यातायात के सर्वाधिक साधन उपलब्ध हैं, जहाँ भारत के तीनों महानगरों के कुल योग से भी अधिक वाहन हैं, वहाँ भी महानगर- निवासी साधारण लोगों को आज भी यातायात की भयावह समस्या से जूझने को बाध्य होना पड़ता है।

महानगरों में यातायात के लिए बस सेवा की व्यवस्था प्रायः प्रशासन द्वारा की जाती है। दिल्ली में भी दिल्ली परिवहन निगम द्वारा यह व्यवस्था की जाती है। परंतु पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली परिवहन निगम की बस सेवा छिन्न-भिन्न हो गई है, उसका स्थान प्राइवेट बसें ले रही हैं। प्राइवेट बसों में यात्रा करना किसी जोखिम से कम नहीं है। रेड लाइन, ब्लू लाइन बसों के रूप में सड़कों पर एक-दूसरे से होड़ लगाती ये बसें चलती-फिरती यमदूत हैं। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता है जब ये दो-चार व्यक्तियों की जान न लेती हों। इनमें यात्रियों को संवाहक के दुर्व्यवहार के साथ-साथ बस मालिकों के गुंडों की बदतमीजी को भी सहन करना पड़ता है। यात्रियों से अधिक किराया वसूलना, बस में आवश्यकता से अधिक सवारियों को चढ़ाना, यातायात के नियमों का उल्लंघन करना सामान्य बात है।

दिल्ली जैसे महानगर में यातायात की समस्या उस समय और भी भयंकर रूप धारण कर लेती है जब थ्री-व्हीलर चालकों द्वारा मनमाना किराय वसूला जाता है तथा किसी विशेष स्थान पर जाने से मना कर दिया जाता है। दिल्ली में क्योंकि स्थानीय रेल-सेवा का अभाव है, अतः व्यक्ति की स्थिति बड़ी दयनीय हो जाती है। रात्रि के समय तो यातायात की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। इस महानगर में तो यातायात की स्थिति सर्वाधिक दयनीय है। बसों के पीछे यात्रियों को बेताहाशा दौड़ लगाते देखा जा सकता है।

मुंबई, पुणे, चेन्नई आदि महानगरों की बस सेवा को आदर्श माना जाता है, पर वहाँ भी यह स्थिति निरंतर बिगड़ती जा रही है। मुंबई, चेन्नई में स्थानीय रेलें न हों तो निश्चय ही उनकी स्थिति भी दिल्ली-कलकत्ता जैसी ही दयनीय हो।

महानगरों में जनसंख्या के अनुपात से यातायात के सर्वसुलभ साधनों में वृद्धि नहीं हुई, इस कारण स्थिति बड़ी ही जटिल है। महानगरीय प्रशासन और यातायात के साधनों की व्यवस्था करने वाले निगमों की आर्थिक दशा, वहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण निरंतर बिगड़ती जा रही है। फलतः यातायात की स्थिति में भी सुधार की अपेक्षा गिरावट ही आ रही है। अतः आज ऐसी द्रुतगामी यातायात व्यवस्था की आवश्यकता प्रायः सभी महानगरों में अनुभव की जा रही है जो व्यक्ति को उसके गंतव्य तक आराम से, ठीक समय पर, उचित व्यय में पहुँचा सके।

Related; एक भीड़ भरी बस में यात्रा पर निबंध | A Journey In An Overcrowded Bus Essay in Hindi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top