दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया सूक्ति पर हिंदी में निबंध

Dr. Mulla Adam Ali
0

Bap bada na bhaiya Sabse Bada Rupaiya to 150 words essay, Hindi Nibandh Lekhan Dada Bada Naa Bhaiya Sabse Bada Rupaiya.

Hindi Essay writing Dada Bada Naa Bhaiya Sabse Bada Rupaiya

Dada Bada Naa Bhaiya Sabse Bada Rupaiya

Dada Bada Naa Bhaiya Sabse Bada Rupaiya Hindi Nibandh

दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया

मनुष्य के जीवन में भावना का बड़ा ही उच्च स्थान और महत्त्व है। भावना ने ही एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के साथ जोड़ रखा है। वह भावना ही है, जिसके रहते घर-परिवार और समाज में कोई हमारा दादा है, कोई भैया है, कोई बहन है, कोई माता-पिता आदिः अन्य कुछ। इस प्रकार के भावों, भावनात्मक सम्बन्धों और रिश्तों-नातों पर ही यह जीवन-समाज टिका हुआ है। जिस दिन वास्तव में इस भावना का मुनष्य के मन-जीवन से लोप हो जाएगा, उस दिन सारे रिश्ते-नाते अपने-आप समाप्त हो जाएँगे। समाज तो क्या, घर परिवार तक बिखरकर अपनी हस्ती गँवा बैठेंगे। आज भावना के स्थान पर हमारी स्वार्थपूर्ण बुद्धि का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। भावना के रिश्तों-नातों के स्थान पर रुपये पैसे को अधिक मान और महत्त्व मिलने लगा है। इसी तरफ इशारा करते हुए ही किसी ने यह बात कही है कि :

"दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया।"

यहाँ 'दादा' और 'भैया' शब्द वास्तव में हमारे भावनात्मक मानवीय सम्बन्धों के प्रतीक हैं। दूसरी तरफ 'रुपैया' शब्द हमारी स्वार्थमूलक बुद्धि का प्रतीक है। कहने वाले ने इस उक्ति में यही कहा है कि आज भावना के सम्बन्धों का स्थान स्वार्थपूर्ण व्यवहारों ने ले लिया है। आज का मनुष्य धन या रुपये-पैसे को ही अधिक महत्त्व देने लगा है। उसके लिए बाप-दादा, बहन-भाई सभी कुछ रुपया-पैसा ही बनता जा रहा है। यही उसका धर्म-ईमान सब कुछ बनकर रह गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मात्र हमारे जीवन और समाज से मानवतावादी आदर्शों और मूल्यों का महत्त्व निरन्तर गिरता जा रहा है। आज मन तथा आत्मा का कोई स्थान और महत्त्व नहीं रह गया। पास में अगर पैसा है, तो आदमी कुछ भी कर सकता है। वह दूसरों के मन और आत्मा को खरीद भी सकता है।

एक और प्रकार से भी इस कहावत या उक्ति की व्याख्या की जा सकती है। कहा जा सकता है कि आज भावनाओं से सम्बन्ध रखने वाली संस्कृति का मान नहीं रह गया। आज केवल उपभोक्ता संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया है। इसके प्रभाव से आज मनुष्य और इसकी भावना को भी एक चीज, एक वस्तु मान लिया गया है, जिसे कुछ पैसे देकर कोई भी खरीद सकता है। इस प्रकार आज खरीदने-बेचने वाली मानसिकता ही निरन्तर बढ़ती जा रही है। ईमानदारी और कर्त्तव्यपरायणता का कतई कोई महत्त्व नहीं रह गया। यदि कोई व्यक्ति ईमानदार रहकर अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहता है, तो उसकी कीमत डालने की कोशिश की जाती है। कीमत डाल या लोभ लालच देकर उसे भ्रष्ट कर दिया जाता है। सरकारी विभागों में यदि कभी भूल से कोई नियमानुसार कार्य करने वाला व्यक्ति आ जाता है, तो भ्रष्टाचारी लोगों को कहते हुए सुना जाता है कि 'उसकी कीमत जानने की कोशिश करो' या 'उसकी अधिक से अधिक कीमत डालकर देखो, हर आदमी को खरीदा जा सकता है।' इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस रुपयावादी या धनवादी दृष्टि ने व्यक्ति के धर्म-ईमान, कर्त्तव्यपरायणता आदि सब कुछ को निगल लिया है। सारी मानवता, मानवता की सारी व्यवस्थाओं को भ्रष्ट करके भीतर से खोखला और खाली बना दिया है। मनुष्यता, उसकी भावना, उसकी कर्तव्यपरायणता और ईमानदारी आदि किसी का कोई महत्त्व नहीं रह गया।

'सबसे बड़ा रुपैया' की भावना ने धर्म और संस्कृति तक को भ्रष्ट कर दिया है। किसी मुहूर्त निकालने वाले के पास जाइए, वह पैसा देखकर उस दिन का मुहूर्त भी निकाल देगा जो कि थोड़ी देर पहले जिस दिन कोई मुहूर्त न होने की बात कर चुका होगा। मन्दिर के पुजारी भी प्रसाद तभी देंगे, जब आपने प्रसाद चढ़ाया हो। उसकी मात्रा चढ़ावे की मात्रा के अनुसार घट-बढ़ सकती है। किसी दफ्तर में पहले तो चपरासी को रुपया दिखाए बिना घुस पाना ही सम्भव नहीं, फिर बिना कुछ दिए अपनी फाइल को आगे बढ़ा पाना तो एकदम असम्भव है। रुपये पैसे का महत्त्व इतना बढ़ गया है कि बिना कुछ लिए अपना ही एक हाथ दूसरे हाथ का काम करने को तैयार नहीं हो पाता। इस बात को यों भी समझा जा सकता है। एक ही दफ्तर में काम करने वाले का जब कोई काम साथ की कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले के पास अटक जाता है, तो वह बिना कुछ लिए, और कुछ नहीं तो बिना एक प्याला चाय का पिए अपने उस साथी का काम करने को तैयार नहीं हो पाता।

इस प्रकार स्पष्ट है कि आज जो चारों ओर भ्रष्टाचार, कालाबाजार का धन्धा निरन्तर पनप रहा है, उसका वास्तविक कारण रुपया ही है। रुपया पाने के लिए पुरुष अपने व्यक्तित्व और स्वाभिमान को बेचता है, तो नारी भी अपना तन बेचती हुई देखी जा सकती है। रुपया पाने के लिए आदमी अपने माँ-बाप, भाई-बहन तक को धोखा देने के लिए तत्पर रहता है। आज चारों तरफ जो हिंसा, चोरी, लूट-पाट, मार-काट, डकैती आदि का जोर है; इन सबके मूल में रुपया पाने की इच्छा ही तो काम कर रही होती है। रुपया देकर किसी की हत्या तक करवाई जा सकती है, जबकि रुपया पाने के लिए अनेक हत्याएँ होती रहती हैं। रुपया-पैसा पाने के लिए लोग देशद्रोह के काम तक करते हुए देखे जाते हैं। समृद्ध कहे जाने वाले घरों के लोग पैसा खाकर देश के रहस्य विदेशी दुश्मनों के हाथ बेच देते हैं। देश के धन से दलाली खाकर विदेशियों को लाभ पहुँचाते और इस प्रकार अपनी मानवता तक को गिरवी रख दिया करते हैं। ऐसा कौन-सा कुकर्म और पाप है, पैसे के लाभ में आद‌मी जो नहीं कर रहा।

वास्तव में रुपये-पैसे की महिमा अपरम्पार है। कभी रुपया-पैसा केवल आवश्यकताएँ पूरी करने का साधन माना जाता था, मनुष्य उसे खाता-पीता था, पर आज रुपया मनुष्य और उसकी मनुष्यता को खा-पीकर डकार भी नहीं ले रहा। आदमी का शरीर ही नहीं, मन और आत्मा भी उसके दास बनकर रह गए हैं। वह मानवता के निरन्तर पतन का कारण बनता जा रहा है। कभी जिस रुपये-पैसे को हाथों का मैल समझा जाता था, आज वह सबकी आँखों का अंजन और तारा बन गया है। इसे मानवता के विकास के लिए शुभ नहीं माना जाता। कारण स्पष्ट है। वह यह कि पैसा पाने के लिए पहले परिश्रम करना पड़ता था, पर अब हेराफेरी करके ही, बिना काम और परिश्रम के, कम-से-कम समय में आदमी धन्नासेठ बन जाना चाहता है। उसकी प्रवृत्तियाँ तक दूषित होकर रह गई हैं। ऐसी स्थिति में मानवता के विकास की तो क्या, इसके बचे रह पाने की आशा भी नहीं की जा सकती। जब मानवता का भाव मर जाएगा, तो अपने-आप ही अच्छी परम्पराएँ और सभ्यता-संस्कृति आदि का अन्त हो जाएगा।

स्पष्ट है कि भावना से बढ़कर रुपये-पैसे को महत्त्व देने के कारण आज मनुष्य जाति के सामने मानवता और मानव-संस्कृति की रक्षा का संकट अपने भयानक रूप में उपस्थित है। मानवता के शाश्वत भाव को जगाकर, स्वार्थों का चश्मा उतारकर, पैसा-रुपयावादी दृष्टि त्यागकर ही उस संकट से मुक्ति पाई जा सकती है। हम जितनी जल्दी विशुद्ध मानवीय आत्मा और कर्त्तव्य पालन की दृढ़ता को जगा पाएँगे, उतनी ही जल्दी उद्धार संभव हो पाएगा।

Related; मन के हारे हार मन के जीते जीत पर हिंदी में निबंध

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top