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Feminist discourse in Mrinal Pandey's novels
मृणाल पाण्डे के उपन्यासों में नारी विमर्श
आधुनिक हिन्दी साहित्य में मृणाल पाण्डे सर्वतोन्मुखी प्रतिभा सपन्न प्रतिष्ठित उपन्यासकार और कहानीकार के साथ-साथ नाटककार के रूप में भी सामने आई। कथा साहित्य एवं नाटक को सुसंपन्न बनाने में इनका विशिष्ट योगदान रहा हैं। मृणाल पाण्डे एक विशिष्ट पत्रकार और दूरदर्शन-वाचिका के रूप में इन्होंने अपनी क्षमता प्रतिबद्धता व संकल्प-शक्ति का परिचय दिया है। नारी-अस्मिता और नारी-स्वतंत्रता की प्रबल समर्थन के रूप में हिन्दी की जिन महिला कथाकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से युक्ति संगत एवं प्रांसगिक विचार व्यक्त किए है, उनमें श्रीमती मृणाल पाण्डे अग्रणी हैं। एक यथार्थवादी लेखिका के रूप में अपने उपन्यासों में दर्शन देती है।
मृणाल पांडे के प्रकाशित उपन्यास
विरुद्ध (1979), पटरंगपुर पुराण (1983), देवी (1999), (उपन्यास रिपोर्टताज), रास्तों पर भटकते हुए (2000), हमको दियो परदेस (2001), अपनी गवाही (2003)
'विरुद्ध' मृणाल पाण्डे का पहला उपन्यास है इस उपन्यास में लेखिका ने स्त्री के आत्मसंघर्ष व अंतर्द्वद्वं को अभिव्यक्ति दी है। उपन्यास की नायिका 'रजनी' ऐसी स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है जो अपने दाम्पत्य-जीवन व परिवार को बचाने की खातिर अपने अस्तित्व को दांव पर लगा देती है। पारिवारिक दायरों में अपने आपको सुरक्षित रखने के लिए वह बाहरी दुनिया में घुलना-मिलना ही भूल जाती है और वह कदम-कदम पर महसूस करती है कि कहीं न कहीं उसका आत्मसम्मान समाप्त होता जा रहा था। वह अंतर्द्वद्धं से बाहर आने का प्रयत्न करती है और इस घुटन से बाहर आने के लिए पढ़ाई का मार्ग ढूँढती है परन्तु रजनी के लिए गए इस निर्णय से परिवार की महिलाएँ उसका मज़ाक उड़ाती है। इससे रजनी और अधिक आत्मकेन्द्रित हो जाती है। इस प्रकार मृणाल पाण्डे का - यह उपन्यास एक ऐसी स्त्री की जिन्दगी को परिलक्षित करता है। जो अपने परिवार के दाम्पत्य-जीवन के उत्तरदायित्व को संभाले रखने के लिए ओर कुंठाग्रस्त, जीवन जीने के लिए विवश हो जाती है। चाहे जितना भी प्रयत्न ही क्यों न करे, अपनी इच्छा दूसरे के सामने वह प्रकट नहीं कर पाती।
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मृणाल पाण्डे का उपन्यास 'देवी' रिपोर्ताज शैली में लिखो गया है जो अपने ढंग का एक विशिष्ट उपन्यास है, जिसमें पौराणिक देवियों का उल्लेख समसामयिक संदर्भ में हुआ है। इस उपन्यास में पौराणिक देवियाँ युयुत्स, देवी, शैलीपुत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, भूदेवी ग्रामदेवियों रौद्र देवियाँ आदि देवियों की पौराणिक कथाओं को विस्तार रूप में बताया गया है और इन देवियों के साथ हुए शोषण और उन शोषण के विरुद्ध देवियों के संघर्ष को बड़े मार्मिक ढ़ग से एवं विशिष्ट शैली में प्रस्तुत किया गया है। आधुनिक परिवेश में उपलब्ध आधुनिक महिलाओं की त्रासदी का उल्लेख देवियों के परिप्रेक्ष्य में बड़े ही सुंदर और हृदयस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। आधुनिक वर्तमान समाज में नारी पर होनेवाले अन्याय, अत्याचार, हिंसा और शोषण को सत्य घटनाओं से रेखांकित किया गया है। शक्ति के विभिन्न रूपों में आज समाज की स्त्रियों की लोकगाथाओं, महागाथाओं, आख्यानों को नये सिरे से जोड़कर व्याख्यान कर पाना यही इस उपन्यास का विशिष्ट एवं मूल उद्देश्य रहा है।
"रास्तो पर भटकते हुए" मृणाल पाण्डे का बहुचर्चित उपन्यास रहा है जिसमें आधुनिक उपभोक्तावादी युग में सर्वव्यापी भ्रष्टाचार, मानवीय संबंधों का पतन और धनार्जन की लालसा में मानवीय मूल्यों की क्षति दर्शाया गया है। इस उपन्यास की नायिका मंजरी है। इसउपन्यास का पुरुषपात्र बंटी है और किसी कारणवश मंजरी के जीवन में प्रवेश करता है। इस उपन्यास में भ्रष्टाचारी डॉक्टरों, उद्योगपतियों, राजनेताओं और पत्रकारों के चरित्र को लेखिका ने यथार्थ रूप से चित्रित किया है। जब बंटी और उसकी माँ पार्वती की निर्मम हत्या हो जाती है तो उस हत्यारों तक पहुँचने के लिए मंजरी दिन-रात एक कर देती है। डॉक्टर मासूम गरीबों को धन का प्रलोभन देकर धोखे से उनके शरीर के अंदर के अंगों को निकालकर बेचने लगता है। राजनीतिक क्षेत्रों में नेताओं के अपराधों का अंकन किया गया है, पुलिस और सामान्य प्रशासन के क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार का अंकन किया गया है, न्यायालयों में हानेवाले अन्यायों का चित्रण पाया जाता है, पत्रकारिता का चित्रण लेखिका ने इस उपन्यास में बड़ी संवेदनशीलता के साथ किया है। यह उपन्यास आधुनिक उपभोक्तावादी समाज के घिनौने रूप का यथार्थ चित्रण हुआ है।
"पटरंगपुर पुराण" मृणाल पाण्डे का एक निर्दिष्ट प्रदेश की विशेषताओं को दर्शानेवाला महत्वपूर्ण एवं आंचलिक उपन्यास है। प्रादेशिक लोक जीवन पर आधारित यह उपन्यास शिल्प विधि की दृष्टि से अद्भुत एवं मौलिक है। 'आमा' मृणाल पाण्डे की नानी है और इस उपन्यास की कथावस्तु आमा तथा उनके परिवार के लोगों के जीवन को प्रस्तुत करती है। पटरंगपुर एक गाँव है जो बाद में कस्बे में परिवर्तन हो जाता है। इसी गाँव की दशा को चित्रित किया गया है। इस उपन्यास की भाषा बड़ी सशक्त एवं परिनिष्ठित है। भाषा को बोधगम्य बनाने के लिए लेखिका द्वारा पाद टिप्पणियों में शब्दों के अर्थ भी दिए गए है। आमा पहाडी भाषा बोलने वाली बूढी औरत है, जिसकी जुबान से पटरंगपुर की कहानी बताई गई हैं।
उपसंहार : मृणाल पाण्डे उपन्यासों में उन सामाजिक कुरीतियों व पुरुषवादी अंह चेतना से परिचालित व्यवस्थाजन्य विसंगतियों तथा मान्यताओं का जोरदार खण्डन किया, जो नारी-समाज पर विशेष प्रभाव डालकर उसके जीवन को समस्याग्रस्त बनाती थी। उपन्यासकार मृणाल पाण्डे ने मात्र नारी-जीवन की समस्याओं और उनके शोषण व उपेक्षा से जुडे प्रश्नों की ओर पाठकों के ध्यान को आकृष्ट कराने का प्रयास नहीं किया बल्कि उन समस्याओं के समाधान ढूँढने का भी बड़ी ईमानदारी के साथ प्रयास किया है। जीवन जीवनानुभवों की प्रामणिक अभिव्यक्ति और परिवेश- बोध की विकसित चेतना के कारण मृणाल पाण्डे के उपन्यास जीवतं बन पडे है और समकालीन नारी-जीवन को कई रूपों में व्यक्त करने में अत्यंत सफल हुए हैं। मृणाल पाण्डे ने अपने उपन्यासों की वस्तु एवं पात्रों के चयन अपने समकालीन परिवेश से किया है। एक यथार्थवादी लेखिका के रूप में जिन्होंने अपने जीवन में जिन अनुभवों को प्राप्त किया और अड़ोस-पड़ोस की महिलाओं की समस्याओं की जो जानकारी प्राप्त की, उसे वस्तु बनाकर मध्यवर्गीय नारी के अन्तरंग एवं बहिरंग जीवन में तान-तनाव को अभिव्यक्ति दी हैं।
- बी. हेमलता
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