Usko bhi bole hote jan dharm ka Avtar Odiya Translated Poem in Hindi, Gangadhar Meher Poetry in Hindi.
Odia Poem in Hindi
ओड़िया की कविता हिन्दी में अनुवाद : स्व. गंगाधर मेहेर की ओड़िया कविता हिन्दी में अनुवाद डॉ. वंशीधर दास। प्रेरणादायक हिन्दी कविता उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार। स्व. गंगाधर मेहेर ओड़िया के एक रीति कवि थे। वे 'प्रकृति कवि' और 'स्वभाव कवि' के रूप में प्रसिद्ध हैं।
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उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार
जिसका मन हो व्यस्त सर्वदा परस्वहरण करने में,
जिसका धन विदलित होता नित गणिका के चरणों में,
जीवन जिसका लक्ष लक्ष लोगों हित बनता भार,
उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार ।।1।।
विद्या जिसकी नित घोटा करती धर्म नीति की गर्दन,
बुद्धि जिसकी नित किया करती है सच के सौ-सौ चूर्ण,
धन से क्रीत हुआ करता है जिसका न्याय विचार,
उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार ।।2।।
स्वर्ण हरण कर दिया करता जो तांबे का ही दान,
धन से किया करता है हरदम प्रभु-संतोष-विधान,
आच्छादन हित निज दोषों को दे अनेक उपहार,
उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार ।।3।।
भ्रमण खर्च के लिए पाया होता है यात्रा-भत्ता,
खाया होता इधर मोड़कर दीन जनों का माथा,
करता रहता अपनी क्षमताओं का दुर्व्यवहार,
उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार ।।4।।
बाहर गया होता हे हरदम खाली हाथ ले लेकर,
बैलगाड़ियों लदवा लाता द्रव्यों से भर-भरकर,
उन्हीं द्रव्यों को ले लेकर फिर बिचवाता बाजार,
उसको भी बोले होते जन-धर्म का अवतार ||5||
ओड़िया मूल : स्व. गंगाधर मेहेर अनुवादक : डॉ. वंशीधर दास
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