Bal Kavita In Hindi: वर दो

Dr. Mulla Adam Ali
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वर दो


हे प्रभु ! अन्त न हो सपनों का,

मुझको ऐसा वर दो।

मैं छोटा सा बालक मेरी,

हों अनन्त इच्छाएँ।

असफलता के बाद सफलता,

की जागें आशाएँ।

अपनी महाशक्ति से दाता

तुम कुछ ऐसा कर दो। वर दो...

मेरे सबल शुत्रु भी मेरे,

सम्मुख शीश झुकाएँ।

आँख उठाकर जब देखें तो,

वे भय से घबराएँ।

तेरे सिवा किसी के आगे

झुके न ऐसा सर दो।। वर दो...

अपने भीतर तुझको देखूँ,

आगे बढ़ ता जाऊँ ।

आँधी-तूफां मिलें राह में।

तो उनसे टकराऊँ ।

सबसे ऊँचा उर्दू विश्व में,

ऐसे मुझको पर दो।। वर दो...

मानव का मानव से रिश्ता,

सबसे ऊपर मानूँ ।

मानवता क्या होती जग में,

मैं इसको पहचानूँ ।

ज्ञान, बुद्धि, सारा विवेक तुम,

मेरे भीतर भर दो।। वर दो...

हे प्रभु! अन्त न हो सपनों का,

मुझको ऐसा वर दो ।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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