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Education Importance Essay in Hindi
शिक्षा का महत्व पर निबंध के साथ जानिए शिक्षा का समाज में योगदान
शिक्षा का महत्व
कई वर्षों पहले भागीरथी नदी के तट पर बसा राज्य पाटलीपुत्र का राजा था सुदर्शन। वह बहुत बुद्धिमान था। वह केवल बुद्धिमान ही नहीं था पर कई विधाओं का जानकार था। उसके दरबार में कई पंडित और विद्वान आया करते थे। भारतवर्ष के विद्वान उसके दरबार में आया करते थे और राजा इनसे ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता था।
राजा सुदर्शन के दो पुत्र थे। वे दोनों ज्ञान प्राप्त करने में कोई रुचि नहीं रखते थे। थे। जैसे जैसे वे बड़े हो रहे थे राजा सुदर्शन कि चिंता बढ़ती जा रही थी। राजा का दृढ़ विश्वास था कि ज्ञान और बुद्धि ही मनुष्य की असली संपत्ति है उसके बिना जीवन व्यर्थ है। यह ऐसी बात है जिसे कोई न छीन सकता है न समाप्त कर सकता है। ज्ञान के आधार पर ही मनुष्य अपना और दूसरों का भला कर सकता है। सामान्य व्यक्ति भी अपने ज्ञान के आधार पर राजा तक पहुँच सकता है। परन्तु दुःख की बात थी कि दोनों राजकुमारों को ज्ञान प्राप्त करन में लेशमात्र भी रुचि नहीं थी और वे दोनों गलत रास्ते पर जा रहे हो।
राजा सुदर्शन सोचता था कि बेटा अगर ज्ञानी नहीं है और न ही आज्ञाकारी है, वे ऐसे है जैसे दोनों में एक आँख अंधी है। उसे लगता है कि एक ही बेटा हो पर वह बुद्धिमान और ज्ञानी हो। सौ बेटे होने पर भी वे अगर मूर्ख है तो वह उन तारों जैसा है जहाँ उनका अस्तित्व चांद के बिना नहीं है। सबसे अच्छी विरासत माँ-पिता यही हो सकती है वे अपनी संतान को अच्छी शिक्षा दे। शिक्षा उसको जीवनभर मान, सम्मान दिला सकती है। शिक्षा और ज्ञान के आधार पर व्यक्ति उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है। इसलिए बचपन से ही उन्हें सही शिक्षा का महत्व बताना चाहिए है। वे इस उम्र में जो सीखेंगे उसे आजीवन याद रखेंगे। बचपन में अगर सटीक नहीं पायेंगे तो बड़े होने पर शिक्षित करना कठिन कार्य है। बच्चों का मन मिट्टी के समान होता है, कुम्हार जैसे मिट्टी को आकार देकर उसके कई वस्तुएँ बनाता है उसी तरह अध्यापक भी बच्चों को सही आकार देने में सहायक होते हैं। अच्छा अध्यापक यह कोशिश करेगा कि वह छात्रों को सही राह पर चलने का मार्गदर्शन करेगा। माता-पिता जो अपनी संतान को शिक्षित नहीं करते वे शत्रु समान ही माने जाएँगे।
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इन सभी विचारों को एक सही रूप देने के लिए राजा सुदर्शन ने अपने दरबार में कई विद्वानों को बुलाया। उसने उन सबके सामने अपने पुत्रों की समस्या रखी और प्रार्थना कि कोई इसपर अपने विचार रखें। उसने कहा कि वह अपने पुत्रों को शिक्षित कर अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता है।
यह सब सुनकर एक विद्वान पंडित विष्णु शर्मा ने खड़े होकर कहा "महाराज मैं आपके पुत्रों की जिम्मेदारी लेने तैयार हूँ। मैं उन्हें नीतिशास्त्रों के आधार पर नैतिक मूल्य का पाठ पढ़ाऊँगा।"
राजा सुदर्शन ने सिर नंवाले हुए कहा "मैं अपने दोनों पुत्रों को आपकी देखरेख में सौंपता हूँ और विश्वास प्रकट करता हूँ कि आप उन्हें सूर्योदय के समान तेजस्वी बनाओगे। आप जैसे विद्वान उन्हें एक अच्छा और सच्चा मनुष्य बना सकते हैं। आप उन्हें ले जाकर ज्ञान और बुद्धि प्राप्त करने में सहायता करें।"
"महाराज, आप मुझे छः महीने का समय दीजिए मैं उन्हें नीतिशास्त्र का विद्वान बनाऊँगा।" पंडित विष्णु शर्मा ने कहा। फिर उसने दोनों राजकुमारों को साथ लेकर राजा से आज्ञा ली।
पंडित विष्णु शर्मा, जो कि विद्वान और बहुत बुद्धिमान थे उन्होंने नैतिक मूल्यों को छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने का महत्व समझाया। और इस तरह दोनों राजकुमारों ने अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त किया और वे अपने राजा सुदर्शन के पास लौट आये।
केवल उपदेश से ज्ञान प्राप्त नहीं होता परन्तु उसका संबंध जीवन से कैसा जुड़ा इस बात को आधार बनाए तो ज्ञानवर्धन होकर बुद्धि का सही उपयोग हो सकता है। मानव जीवन में नैतिक मूल्यों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसीलिए शिक्षा के साथ साथ मूल्यों का महत्व भी समझना आवश्यक है। शिक्षा को तभी प्रासंगिक माना जाएगा जब नैतिकता का पाठ बच्चों को पढ़ाया जाए, उसे जीवन में समय - समय पर प्रयोग में लाया जाए।
- डॉ. अनुपमा
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