In this Article Discuss about Information Technology and Standardization of Nagari Script, Suchana Praudyogiki Aur Nagari Lipi Ka Manakikaran.
Information Technology and Standardization of Nagari Script
Suchana Praudyogiki Aur Nagari Lipi Ka Manakikaran
सूचना प्रौद्योगिकी और नागरी लिपि का मानकीकरण
सूचना प्रौद्योगिकी तकनीकी शब्दावली युक्त ऐसी संकल्पना है जो सूचनाओं के संजाल का नित नूतन तकनीक के माध्यम से विकास को रेखांकित करती है। भाषा के समस्त संरचनाओं का तकनीकी करण सूचना प्रौद्योगिकी का एक अभिन्नतम अंग है। समस्त भाषिक संरचनाएं लिपिगत के शारीरिक एवं आत्मिक संरचनाओं में तकनीकी सूत्र की आवस्थापनाएं करती हैं। इन्हीं लिपिगत संरचनाओं से किसी लिपि के विकास का मानदण्ड अधिनियम होता है। नेपाली मराठी, मैथिली एवं हिन्दी भाषाओं का अतः सतिल प्रवाह देवनागरी लिपि में होता है। ये भाषाएं अपने समस्त शारीरिक एवं आत्मिकता का संलयन देवनागरी लिपि से प्राप्त करती हैं। देवनागरी इन समस्त लिपियों की माँ है तथा नेपाली मराठी मैथिली एवं हिन्दी इसकी सन्तानें हैं। ये समस्त भाषाएं नित नवीन विकास प्रक्रिया का संजाल विकसित करते हुए देवनागरी लिपि का तकनीकीकरण ही नहीं कर रही हैं, वरन् दूसरी लिपियों से तकनीकी विकास हेतु स्वस्थवर्धक प्रतिस्पर्धा को रेखांकित कर रही हैं। विकास की प्रक्रिया समस्याओं के संजाल से होकर अपना रूपाकार सुनिश्चित करती हैं, अतएव देवनागरी लिपि वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में समस्याओं के संजालो से प्रतिस्पर्धा कर रही है।
वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में देवनागरी लिपि के विकास के दौरान होने वालीवर्णमाला की अधिकता व रोमन लिपि से प्रतिस्पर्धा वाली समस्याओं के साथ-साथ देवनागरी लिपि जिस प्रथम समस्या से आक्रांत है, वह विविध भाषागत विकास की प्रक्रिया है। देवनागरी लिपि के अन्तर्गत हिन्दी भाषा ने विकास का जो मानदण्ड तय किया है, वैसा मानदण्ड नेपाली, मराठी व मैथिली भाषाओं ने नहीं तय किया है। विविध भाषागत विकास की यह एक अज्ञात खतरे का सूचना प्रौद्योगिकी युक्त तकनीकी संकेत है। वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में देव नागरी लिपि जिस दूसरी समस्या से आक्रान्त हैं, वह विविध भाषाओं के परिप्रेक्ष्य में विश्वसनीयता को लेकर है। नेपाल, मारीशस, सूरीनाम व भारत में बहुप्रयुक्त देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास की यह जटिल समस्या है कि यह लिपि लोक बोलियों एवं भाषाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय संभाग में अनुप्रयुक्त दूसरी एवं उससे संबंधित बोलियों एवं लिपियों को विश्वसनीयता में लेकर विकास का मानदण्ड सुनिश्चित नहीं कर पा रही है। इस कारण ये लोकभाषाएं एवं बोलियां तथा दूसरी लिपियां एवं उससे संबंधित भाषाएं एवं बोलियां अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास की तीसरी जटिल समस्या इसके अंतर्राष्ट्रीय मानदण्डों के सुनिश्चितता के परिप्रेक्ष्य में है। देवनागरी लिपि के विकास का इसी कारण कोई अंतर्राष्ट्रीय मानदण्ड नहीं तय नहीं हो पाया है नेपाल, मारीशस, सूरीनाम एवं भारत में इसी लिपि के विकास का यह मतभेद वर्तमान तकनीकी दौर में सुनामी से भी बड़े खतरे का संकेत है जो एक ही उफान में सब कुछ अवनति के गर्त में ला सकता है। अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का यदि समाकालन किया जाए तो यह ज्ञात होता है कि देवनागरी से संबंधित राष्ट्रों द्वारा देवनागरी अनुप्रयुक्त राष्ट्रों द्वारा कोई संयुक्त प्रयास नहीं चलाया जा रहा है। इस कारण से देवनागरी लिपि का अंतर्राष्ट्रीय अनुप्रयोग रोमन लिपि की तुलना में काफी कम है। इसी अंतर्राष्ट्रीय प्रयास के न होने के कारण देवनागरी लिपि की किसी भी भाषा को संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा के रूप में अनुसूची में नहीं रखा गया है।
देवनागरी लिपि के विकास की चौथी जटिल समस्या क्षेत्रीय बोलियों के अधिग्रहण के परिप्रेक्ष्य में है। भारत नेपाल, मारीशस व सूरीनाम की काफी बोलियां लुप्तप्राप्त है। इन लुप्तप्राय बोलियों में कुछ का अधिग्रहण देवनागरी लिपि द्वारा किया जा रहा है, किन्तु अधिकांश का अधिग्रहण करने में यह लिपि अपने को अक्षम पा रही है। इसका कारण वर्णमाला की अधिकता तथा इन बोलियों से समुचित सामंजस्य का न होना है। यह देवनागरी लिपि के विकास की प्रक्रिया का एक बहुत बड़ा अवरोध है।
युवा पीढ़ी किसी राष्ट्र की आत्मा ही नहीं, वरन धमनी एवं शिरा भी होते हैं। यही कारण है कि किसी राष्ट्र के विकास का मेरुदण्ड युवा वर्ग होता हैं युवा पीढ़ी देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास के प्रति उदासीन हैं इस उदासीनता का कारण यह है कि युवा पीढ़ी रोमन लिपि की तुलना में अपने कैरियर का विकास देवनागरी लिपि में सुनिश्चित नहीं कर पा रही है। यह देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास की सुनामी से भी बड़ी समस्या हैं देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास की यह पांचवीं एवं सबसे बड़ी समस्या है।
देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास के परिप्रेक्ष्य में व्युत्पन्न वैयक्तिक मतभेद, सामाजिक अविश्वसनीयता एवं शैक्षणिक संलयन भी देवनागरी लिपि के तकनीकी विकास को बोधित कर रहे हैं। यह समस्या देवनागरी लिपि के विकास की जड़ है। यह बुनियादी समस्या देवनागरी लिपि के विकास की छठीं एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या है।
वर्ण विभाजन, अक्षरात्मकता, समग्रता, एकरुपता, नियतता, निश्चितता, स्पष्टता, संकलता एवं कम खर्चीलेपन के कारण देवनागरी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है। वर्तनी एवं उच्चारण एकरुपता के परिप्रेक्ष्य को लेकर मानवीकरण का प्रयास सतत् जारी है। लेकिन वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी के युग में देवनागरी लिपि की सर्वश्रेष्ठता को सिद्ध करने तथा रोमन लिपि से प्रतिस्पर्धा में आगे जाने के लिए देवनागरी लिपि से संबंधित विविध भाषाओं एवं बोलियों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करनी होगी। इसके साथ-साथ देवनागरी लिपि से संबंधित भाषाओं एवं बोलियों की विश्वसनीयता भी सुनिश्चित करनी होगी। देवनागरी लिपि को संबंधित राष्ट्रों को दूसरे लिपियों की भाषाओं एवं बोलियों को भी विश्वास में लेने के साथ-साथ दूसरे लिपियों के साथ एकता भी सुनिश्चित करनी होगी। अंतर्राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार के एकात्मक स्वरूप को सुनिश्चित एवं सक्रिय करना होगा। ये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयास तभी सफलीभूत हो सकेंगे, जब युवा पीढ़ी की दशा व दिशा को सुनिश्चित किया जाएगा। युवा पीढ़ी समस्त विकास की आधारशिला हैं, सो युवा पीढ़ी की विश्वसनीयता में ही समस्त अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय प्रयासों की सार्थकता निहित होगी।
- श्री सन्तोष कुमार
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