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A Journey In An Overcrowded Bus Essay in Hindi
Bus yatra par Nibandh
भीड़-भरी बस में यात्रा
दिल्ली भारत की राजधानी और एक बड़ा महानगर है। इसकी जनसंख्या एक करोड़ है। यह देश की राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक आदि गतिविधियों का केंद्र है। देश के दूसर भागों से लाखों लोग अपने कार्यों के लिए यहाँ प्रतिदिन आते-जाते हैं। उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए परिवहन के साधनों का सहारा लेना पड़ता है। यहाँ पर यद्यपि बीस लाख वाहन हैं फिर भी परिवहन के साधनों का अभाव रहता है। दिल्ली परिवहन निगम, रेड लाइन, ग्रीन लाइन, ब्लू लाइन आदि की बसें यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए दौड़ती रहती हैं। लेकिन फिर भी परिवहन की बसों की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। बसों में इतनी भीड़ होती है कि इनमें चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की करनी पड़ती है।
गत रविवार को मैंने दिल्ली की सैर करने का कार्यक्रम बनाया। मुझे सबसे पहले स्टेशन जाने के लिए बस में सवार होना था। मैं अपने घर मे निकटवर्ती बस स्टॉप पर जाकर खड़ा हुआ। कई बसें आईं लेकिन उनमें अत्यधिक भीड़ होने के कारण चढ़ नहीं सका। लगभग चालीस मिनट पश्चात् एक थोड़ी-सी खाली बस आई। में उसमें सवार हुआ। बस में बैठने की कोई सीट खाली नहीं थी। यात्री खड़े थे। अगले बस स्टॉप पर बस रुकी तो यात्रियों का रेला बस में सवार हो गया। संवाहक ने यात्रियों को आगे-आगे सरकाकर बस को ठसाठस भर लिया। अब बस में साँस लेना दूभर हो गया। एक-दूसरे की साँसें टकरा रही थीं। इधर-उधर हिलने की कोई गुंजाइश न रही। इतनी देर में ही बस एक अन्य स्टॉप पर रुकी, बस में जगह न होने के बाद भी संवाहक ने दस-बारह यात्रियों को और चढ़ा लिया। वे सभी अन्य यात्रियों के पैरों पर पैर रखते जैसे-तैसे एक-दूसरे से सट कर खड़े हो गए।
अभी बस थोड़ा-सा ही आगे सरकी थी कि भीड़ का फायदा उठाकर एक जेबकतरे ने एक देहाती से दिखने वाले यात्री की जेब में हाथ डाला। सावधान यात्री ने उसका हाथ पकड़ लिया और मार-पिटाई आरंभ हो गई। लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। इतने में उस जेबकतरे के साथी ने चाकू निकाल लिया। उसने उस देहाती पर वार करना चाहा तो एक हट्टे-कट्टे युवक ने उसका हाथ पकड़ लिया। लेकिन फिर भी वह एक अन्य यात्री को घायल करने में सफल रहा। यात्रियों ने उन दोनों जेब- कतरों की जमकर पिटाई की तथा बस को थाने ले जाने के लिए ड्राइवर पर दबाव डाला। बस थाने ले जाई गई। उन दोनों को पुलिस को सौंपा गया।
सभी यात्री संवाहक और जेबकतरों की मिली भगत की बात करने लगे और उसे आवश्यकता से अधिक यात्री चढ़ाने के लिए भला-बुरा कहने लगे। कुछ यात्री और महिलाएँ सरकार को भी आड़े हाथों लेने से नहीं चूके।
खैर जैसे-तैसे स्टेशन पहुँचा तो देखा सारे कपड़े गंदे हो चुके थे। सफेद पैंट नीचे से काली हो चुकी थी और जूतों का भी रंग बदल गया था। गर्मी के दिन थे अतः जो भी यात्री पास से निकलता था वह अपने पसीने से भरे हाथ रगड़ता निकलता था। कमीज पर जगह-जगह काली काली लाइन खिंच गई थी।
मेरा दिल्ली घूमने का उत्साह समाप्त हो गया था। अब मैंने घर वापस लौटने में ही भलाई समझी। इस प्रकार भीड़-भरी बस में यात्रा करने का अनुभव बड़ा कटु रहा।
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