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Hindi Bal Kavita Natkhat Chuha
Childrens Poem Natkhat Chuha
नटखट चूहा
शाम ढले ही नटखट चूहा,
मेरे घर आ जाता है ।
लाख छुपाऊँ उससे कुछ भी,
मगर ढूँढ वह लाता है ।
दही, मिठाई, सब्जी, भाजी,
जो मिलता सो खाता है।
दूध, मलाई, रोटी, मक्खन,
उसके मन को भाता है।
कागज कपड़ों का यह दुश्मन,
इनको सदा कुतरता है ।
मम्मी, पापा, भैया, दादा,
नहीं किसी से डरता है।
नटखट चूहा मेरे घर में,
बड़ी शान से आता ह ।
पर जब आती बिल्ली मौसी,
झट बिल में घुस जाता है ।।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
बाल साहित्यकार,
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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