Bal Kavita Kosh: नटखट चूहा

Dr. Mulla Adam Ali
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नटखट चूहा

शाम ढले ही नटखट चूहा,

मेरे घर आ जाता है ।

लाख छुपाऊँ उससे कुछ भी,

मगर ढूँढ वह लाता है ।

दही, मिठाई, सब्जी, भाजी,

जो मिलता सो खाता है।

दूध, मलाई, रोटी, मक्खन,

उसके मन को भाता है।

कागज कपड़ों का यह दुश्मन,

इनको सदा कुतरता है ।

मम्मी, पापा, भैया, दादा,

नहीं किसी से डरता है।

नटखट चूहा मेरे घर में,

बड़ी शान से आता ह ।

पर जब आती बिल्ली मौसी,

झट बिल में घुस जाता है ।।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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