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Hindi Poem on Crow
Kala Kaua Bal Kavita In Hindi
काला कौआ
बड़ा सयाना काला कौआ,
काँव-काँव चिल्लाता है।
हम बच्चों की रोटी ले कर,
फुर से यह उड़ जाता है।
कोयल के अण्डों को सेकर,
यह बुद्ध बन जाता है ।
अज्ञानी होने के कारण,
धोखा हरदम खाता है ।
रंग रूप काला है इसका,
मन भी इसका काला है।
इसीलिए तो बच्चों इसको,
नहीं किसी ने पाला है।
कौए के जीवन से बच्चों,
एक सबक हम पाते हैं।
सबको धोखा देने वाले,
खुद भी धोखा खाते हैं ।।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
बाल साहित्यकार,
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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