कमरतोड़ महंगाई पर निबंध : Essay on Inflation in Hindi

Dr. Mulla Adam Ali
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Kamar Tod Mehangai Par Hindi Nibandh

Essay on Inflation in Hindi

Essay on Inflation in Hindi

कमरतोड़ महँगाई

हाय महँगाई! इसने आम आदमी की तो कमर ही तोड़कर रख दी है। इस निरन्तर बढ़ रही महँगाई का चक्कर कहाँ जाकर रुकेगा, कोई नहीं जानता। कल जो चीज एक रुपये में खरीदी थी, आज वह डेढ़-दो रुपये में बिक रही है। पहले दाल-रोटी खाकर हर आदमी गुजारा कर लिया करता था, आज दालों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। सब्जियाँ हाथ नहीं लगाने देतीं। घी-तेल तो जैसे सपना ही होते जा रहे हैं। बच्चों को दूध तक पिलाना मुश्किल होता जा रहा है। जहाँ जाइए, जिस किसी से भी बात कीजिए, आजकल और कुछ सुनने को मिले न मिले, महँगाई को लेकर रोना-पीटना अवश्य सुनाई दे जाएगा। वास्तव में आज महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। उसके लिए जीना मुश्किल होता जा रहा है।

महँगाई के कारण दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दाम इतने अधिक बढ़ गए हैं कि आद‌मी की शक्ति उन्हीं को जुटाने में चुकी जा रही है। उसकी चेतना, उसकी सारी गतिविधियाँ गोल रोटी के आस-पास ही सिमटकर रह गई हैं। और कुछ सोचने-करने का आम आदमी को समय और साधन ही नहीं मिल पाते। जो बड़े और सम्पन्न लोग हैं, उनके पास अधिक-से-अधिक कमाई करने से ही फुर्सत नहीं है। महँगाई बढ़ती है, तो बढ़े, उनकी बला से। वास्तव में कमरतोड़ देने की सीमा तक महँगाई बढ़ाने का कारण भी ये सम्पन्न लोग ही हैं न; फिर उन्हें क्या और कैसी चिन्ता? इधर आम आदमी जब पेट पालने से ही फुर्सत नहीं पाते, तो और बातों की ओर ध्यान ही कैसे दें। आम माता-पिता अपने बच्चों की छोटी-छोटी आवश्यकताएँ पूरी कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते। अपने बुजुर्गों की आवश्यकताओं की तरफ चाह कर के भी ध्यान नहीं दे सकते। फलस्वरूप घरों-परिवारों में हर समय आपसी चख-चख मची रहती है। घर-परिवार, स्नेह के बन्धन, रिश्ते-नाते इस महँगाई की मार के कारण ही टूटकर बिखर रहे हैं। जिन आदशों के कारण मनुष्य का आदर-मान था वे आदर्श ही आज समाप्त होते जा रहे हैं।

बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में आय बहुत कम हुआ करती थी। पच्चीस-तीस रुपये महीना कमाने वाला व्यक्ति अपने परिवार का सुख-सुविधापूर्वक निर्वाह किया ही करता था, सोने-चाँदी के आभूषण और घर-द्वार तक भी उसी आमदनी में बनवा लिया करता था। शादी-ब्याह तथा अन्य प्रकार के आयोजन भी धूमधाम से उतने में ही हुआ करते थे। आज महीने के पाँच-दस हजार क्या पच्चीस-तीस हजार कमाने वाला भी रोता दिखाई देता है कि खर्च नहीं चल पाता, गुजारा नहीं होता। जीना मुश्किल होता जा रहा है। सोचने की बात है कि आखिर क्यों हो गया है ऐसा?

कहते हैं कि महँगाई का वर्तमान दौर दूसरे विश्वयुद्ध (सन् 1945) के समाप्त होने के साथ ही शुरू हो गया था। फिर भी उसकी गति इतनी तीव्र न थी कि जितनी पिछले दस-पन्द्रह वर्षों से हो रही है। यह गति रुकने का तो नाम नहीं ले रही। निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। अपने कर्मचारियों को महँगाई की मार से बचाने के लिए सरकार विशेष भत्ता देती और बढ़ाती है, पर उसका लाभ भी कहाँ मिल पाता है उन्हें? सरकार यदि दस रुपये देती है, तो महँगाई पचास रुपये बढ़ जाती है। फिर गैर-सरकारी कर्मचारी तो नाहक मारे जाते हैं। उन्हें बढ़ा हुआ महँगाई-भत्ता तो क्या बढ़े हुए मूल वेतन तक नहीं मिलते। दिहाड़ी मजदूरों की हालत और भी खराब हो जाती है। हाँ, व्यापारी वर्ग को कोई अन्तर नहीं पड़ता। वह यदि कुछ महँगा खरीदता है. तो बेचता भी महँगा है। जो हो, महँगाई का चक्कर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। इस पर भी कहा जा रहा है कि देश में किसी चीज का अभाव नहीं। हर फसल भी भरपूर हो रही है। छः-सात विकास योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। उनके फलस्वरूप कहा जाता है कि हर आदमी की क्रय-शक्ति बढ़ गई है; पर कहाँ और कैसे बढ़ गई है आम आदमी की क्रय-शक्ति यह कोई नहीं बताता। हर दिन रोटी का सामान महँगा खरीदना ही यदि राष्ट्रीय आय और क्रय-शक्ति का बढ़ना है, तो इसे आम आदमी की विवशता ही कहा जाना चाहिए।

अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, काला बाजार, आय-व्यय का असन्तुलन, समर्थ लोगों द्वारा कर चोरी, सरकारी विभागों के अनाप-शनाप खर्चे, कल्पनाहीन समायोजन, कई बार युद्ध और हर समय मँडराते रहने वाले युद्ध के खतरे और शीत युद्ध की स्थितियाँ आदि महँगाई के कारण माने जाते हैं। हमारे विचार में एक कारण हमारी सम्वेदनाओं का मर जाना या कम हो जाना भी है। इसी प्रकार राजनेताओं की सिद्धान्तहीनता, राजनीतिक तोड़-फोड़, राजनीतिक कल्पना और संकल्पहीनता तथा ऊँचे स्तर पर फैला भ्रष्टाचार भी महँगाई बढ़ने का एक बहुत बड़ा कारण है। राजनीति के अपराधीकरण ने जलते में घी का काम किया है। देश पर शासन करने वाली राजसत्ता और राजनीति ही जब भ्रष्ट, अपराधियों का गढ़ बन जाया करती है, तब सभी प्रकार के अनैतिक तत्त्वों को खुलकर खेलने का समय मिल जाया करता है। हमारे देश में जो भ्रष्ट वातावरण बन गया है, इस कमरतोड़ महँगाई को बढ़ाने में निश्चय ही इस सबका भी बहुत बड़ा हाथ है।

इस प्रसंग में एक बात और भी ध्यान में रखने वाली है। वह यह कि स्वतन्त्रता- प्राप्ति के बाद भारत की जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ी है, उसी अनुपात से उत्पादन रहीं बढ़ा। उपज कम और उसकी माँग अधिक है। यह असन्तुलन भी बढ़ती महँगाई का एक बहुत बड़ा कारण है। इच्छाओं का विस्तार, रात-ही-रात में धनी बन जाने की इच्छा, प्रदर्शन या दिखावा करने की प्रवृत्ति-इस प्रकार हर तरह के असन्तुलन को ही हम महँगाई बढ़ने का मूल कारण कह सकते हैं। आज सभी प्रकार के फल आदि नो इतने महँगे हो गए हैं कि आम आदमी उनकी तरफ सिर्फ देख सकता है, खरीद कर चख या खा नहीं सकता। वास्तव में थैला भरकर नोट ले जाने पर जो कुछ मलता है, वह एक लिफाफा भर भी नहीं होता।

महँगाई के जाल से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर दृढ़ संकल्प और कल्पनाशील इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है। इसी के बल पर हर प्रकार के भ्रष्टाचार से लड़कर महँगाई के बहुत बड़े कारण की जड़ काटी जा सकती है। इसी प्रकार निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या पर अंकुश लगाना भी बहुत आवश्यक है। हर प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन, उनका सुनियन्त्रण भी बहुत आवश्यक है। हमारी सरकार का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सभी प्रकार की योजनाएँ बनाते समय राष्ट्रीय आवश्यकताओं का ध्यान रखे। राष्ट्रीय सच्चरित्रता वाले लोगों को ही उनकी पूर्ति में लगाए। सभी प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण भी राष्ट्रीय हितों को सामने रखकर करे। स्वार्थी तत्त्वों के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सभी प्रकार के दबावों से मुक्त रहे। ऐसा करके काफी हद तक महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। सरकार के साथ-साथ स्वतन्त्र राष्ट्र का नागरिक होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम अपनी इच्छाओं और स्वार्थों पर अंकुश रखें। केवल अपना लाभ नहीं, अपने आस-पड़ोस वालों के लाभ का भी उचित ध्यान रखें। न स्वयं भ्रष्टाचार करें, न किसी को करने दें। अगर हमारे आस-पास कोई काला बाजार करता है, या अन्य प्रकार के भ्रष्ट कार्यों में लिप्त दिखाई देता है, तो उस पर हर प्रकार का अंकुश लगवाने की कोशिश करें।

हमारा विचार है कि इन उपायों से इस कमरतोड़ महँगाई पर कुछ नियन्त्रण किया जा सकता है। अगर हर प्रकार से इस ओर प्रयत्न न किया गया, तो आने वाला समय और भी बुरा होगा। महँगाई हमारा कचूमर निकाल देगी। अतः तत्काल सावधान हो जाना आवश्यक है।

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