मन के हारे हार मन के जीते जीत पर हिंदी में निबंध

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Essay on It is the Mind which Wins and Defeats

Maan Ke Haare Haar Hai Essay in Hindi

Maan Ke Haare Haar Hai, Maan Ke Jeete Jeet Par Nibandh Hindi Essay 

मन के हारे हार है

मन क्योंकि सभी इच्छाओं का केन्द्र है, सभी दृश्य-अदृश्य इन्द्रियों का नियामक और स्वामी है; अतः व्यवहार के स्तर पर उसकी हार को वास्तविक हार और जीत को सच्ची जीत माना जाता है। इसलिए मन पर नियन्त्रण और मन की दृढ़ता की बात भी बार-बार कही जाती है।

विद्वानों के अनुसार हर प्रकार की मानसिक दुर्बलता का उपचार यह है कि मनुष्य विपरीत दिशा में सोचना शुरू कर दे। जैसे- "मेरा व्यक्तित्व पूर्ण है। उसमें त्रुटि या कमजोरी कोई है, तो मैं उसे दूर करके रहूँगा। यदि मुझमें कोई दुर्बलता है, तो उसका ध्यान छोड़कर निर्मल शरीर और निर्मल मन का ध्यान करूँगा। मुझे ईश्वर ने अपना ही रूप बनाया है। उसने मुझे पूर्ण मनुष्य बनने की आज्ञा दी है। पूर्ण पुरुष परमात्मा की मैं रचना हूँ, फिर मैं अपूर्ण कैसे हो सकता हूँ? मेरे मन में जो अपूर्णता का विचार आता है, वह वास्तविक कैसे हो सकता है? मेरे जीवन की पूर्णता ही सत्य है। मैं अपने अन्दर कोई कमी नहीं आने दूंगा। बनाने वाले ने मुझे हीन, दुर्बल बनने के लिए पैदा नहीं किया। उसके संगीत में स्वर-भंग कैसे हो सकता है?" इस प्रकार निरन्तर एवं बारम्बार अपने मन में विचार दोहराते रहने से मनुष्य कर्म से अपने को सबल बनाता जाता है।

लज्जाशीलता या झेंप कई बार रोग की सीमा तक पहुँच जाती है। इसे एक प्रकार का मानसिक रोग कहा गया है। परन्तु है यह रोग केवल कल्पना की उपज ही। इस पर आसानी से विजय पाई जा सकती है। इसका उपाय यही है कि इस विचार को धकेलकर मन से बाहर कर दिया जाए और इसके विपरीत विचार को मन में स्थान दिया जाए 'मुझे झेंपने की तनिक भी आवश्यकता नहीं। हर समय मेरी ही चेष्टाओं को देखने की फुर्सत लोगों के पास नहीं है।' इस प्रकार के विचार मन की सारी दुर्बलताएँ निकालकर आद‌मी को निश्चय ही नया बल और स्फूर्ति देते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति को सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की मौलिक रचना है और उसमें कुछ दिव्यता है। उस दिव्यता को व्यक्त करने का उसे दृढ़ निश्चय करना है। यह निश्चय मानसिक दृढ़ता से ही सम्भव हो सकता है। इसे मन दृढ़ करने की एक सफल क्रिया कह सकते हैं।

हमें प्रत्येक सम्भव उपाय से बौद्धिक रूप में अपना सुधार करना आरम्भ कर देना चाहिए। सर्वोत्तम लेखकों के ग्रन्थों का अध्ययन करने से, विभिन्न विषयों की शिक्षा प्राप्त करने से हम अपनी कई प्रकार की त्रुटियाँ दूर कर सकते हैं। मन से हीनता की भावना निकल गई, तो समझो सारी दुर्बलताएँ समाप्त हो गईं। अतः हमें हर सम्भव उपाय से मनोरंजक तथा आकर्षक व्यक्तित्व को प्राप्त करने की दिशा में अपने-आपको अग्रसर करना चाहिए। तभी मन भी दृढ़ हो सकेगा।

अपनी वेशभूषा के प्रति, केश-श्रृंगार के प्रति, बातचीत के प्रति, बर्ताव के प्रति उपेक्षा नहीं करनी चाहिए: क्योंकि व्यक्तित्व के निर्माण तथा कार्यों में सफलता के लिए ये बातें सहायक होती हैं। इनसे मन भी बढ़ता है।

कई बार हमारे सामने ऐसा कठिन काम आ जाता है कि हम मन हारने लगते हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि यह वस्तुतः हमारी परीक्षा का अवसर है। मानव इतिहास की प्रेरणा यही है कि वह हिम्मत न हारे। कहा भी है-'हिम्मते मर्दा मददे खुदा' जो व्यक्ति हिम्मत नहीं हारता, ईश्वर भी उसी की सहायता करता है। यह सोचकर उस कार्य को करने में तन-मन से डट जाना चाहिए। देर-सवेर सफलता अवश्य मिलेगी।

हम जो कुछ भी करते हैं, पहले मन में उसका ध्यान करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कार्य का प्रारूप हमारे मन में तैयार होता है। यदि हमारा मन दृढ़ता से उस पर विचार करता है तो हमारा चिन्तन लाभकारी होता है। व्यवहार में भी दृढ़ता आती है और सफलता भी मिलती है।

निराशा की भावना मनुष्य के मन और तन दोनों को दुर्बल बनाती है। इसे पास नहीं आने देना चाहिए। इतिहास तथा वर्तमान काल की घटनाओं से शिक्षा लेकर हमें अपने मनोबल का निर्माण करना चाहिए। हमें उनका अनुकरण करना चाहिए, जो बड़े-से-बड़े संकट में भी न घबराए, बल्कि डटकर कठिनाई का सामना करते हुए विजयी हुए। उनका अनुकरण मानसिक दृढ़ता और विजय की सीढ़ी बन सकता है।

अंग्रेजी की एक कहावत का अर्थ है कि इच्छाशक्ति ही सब कार्यों को सफल बनाती है। मन ही बन्धन का कारण बनता है, मन ही मोक्ष का। मन को ऊँचा रखने वाला अवश्य विजयी होता है। अतः हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत' । हमें हार की ओर नहीं हमेशा जीत की ओर ही बढ़ना है और मन को दृढ़-निश्चयी बनाकर बढ़ते जाना है। सफल-सार्थक जीवन व्यतीत करने का अन्य कोई उपाय नहीं है।

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