मेरी जीवनाकांक्षा : हिन्दी निबंध

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Essay on Meri Jeevanakanksha

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My Life Ambition - Hindi Nibandh

मेरी जीवनाकांक्षा

बुद्धिमान और इच्छा-प्रधान होने के कारण ही मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है। स्वभावतः मनुष्य मात्र इच्छा-प्रधान ही नहीं, बल्कि महत्त्वाकांक्षी होता है। सभी की अपनी-अपनी इच्छा-आकांक्षाएँ रहा करती हैं विचित्र विशेष। सभी की तरह ही मेरी जीवनाकांक्षा भी बड़ी अद्भुत है। अद्भुत ही नहीं, वह रोमांचकारी भी है। यदि मुझे छः मास की छुट्टी मिल जाए और दस-बीस हजार रुपये मिल जाएँ तो मैं अपनी उस आकांक्षा को पूर्ण करने का प्रयत्न करना चाहता हूँ। वह जीवनाकांक्षा है हिमालय-दर्शन।

उत्तरी सीमांचल का निर्माण करने वाला हिमालय संसार का सबसे ऊँचा पर्वत है। हमारा परम सौभाग्य है कि वह हमारे देश ही में स्थित है। मेरे मन में तरंगें उठती रहती हैं कि मैं एक बार अपनी आँखों से उसे आदि से अन्त तक देखूँ, एकदम निकट से देखूँ और अपनी आकांक्षापूर्ति का सुख भोगूँ।

हिमालय की लम्बाई 1,500 मील और चौड़ाई प्रायः 150 मील है। माउंट एवरेस्ट उसकी सबसे ऊँची चोटी है। यही नहीं, एवरेस्ट ही संसार की सबसे ऊँची चोटी भी है। इसकी अन्य चोटियाँ हैं कंचनजंघा, कामेट, अन्नपूर्णा, नन्दादेवी, नंगा पर्वत आदि। छोटी-मोटी चोटियों की तो गिनती ही नहीं।

हिमालय का हर एक शिखर अपनी आँखों से देखने के स्वप्न मेरे मन में छाए रहते हैं। वे मुझे नित्य आमन्त्रित करते रहते हैं। हिमखण्डित शिखरों को अपने नयनों से देखने की कल्पनामात्र से मुझे रोमांच हो जाता है। कल्पनाओं से मेरी चेतना वहीं मँडराती रहती है।

हिमालय की चोटियाँ, उपत्यकाएँ, झरने, नदी-नाले, ऊँचे वृक्ष, भयंकर घाटियाँ, बियाबान जंगल तथा हिंस्र पशु-संकुल वन अपनी आँखों से देखने को जी चाहता है। चाहता हूँ कि उसी का एक अंग बन हमेशा उसे देखता और उसकी समीपता पाता रहूँ।

हिमालय पर अनेक नगर भी बसे हुए हैं। उन सबको देखकर नयन और मन को तृप्त करने की लालसा मेरे मन में हमेशा उठती रहती है। मैं हिमालय-दर्शन केवल पद-यात्रा करके पूर्ण करने की कामना करता हूँ। हिमालय पर स्थित प्रसिद्ध नगर हैं-श्रीनगर, जम्मू, शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, डलहौजी, मसूरी, श्रीनगर-गढ़वाल, नैनीताल, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग, गंगटोक, कंचनजंघा, काठमांडू आदि। जैसे सभी मुझे अपना आह्वान करते हुए प्रतीत होते हैं। इन सबकी रम्यता के बारे में पढ़-पढ़कर तो मेरा मन हर समय वहीं पहुँचा रहता है।

ओह! वह दिन कब आएगा, जबकि मैं इन सबको देख पाऊँगा और अपने मित्रों को इन नगरों की शोभा का वर्णन सुना सकूँगा। उनमें से कुछ नगर तो मैं देख भी चुका हूँ। परन्तु मैं तो सभी को एक बार की यात्रा के क्रम में देखने की आकांक्षा करता हूँ, ताकि उसकी गरिमा का एक समग्र चित्र बन सके। मेरी इच्छा एक साथ साकार हो सके।

हिमालय से सतलुज, व्यास, रावी, चिनाब, जेहलम, सिंधु, गंगा-यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि अनेक बड़ी नदियाँ निकलती हैं। अगणित छोटी नदियाँ भी हिमालय से निकलती हैं। मेरे मन में रह-रहकर यह इच्छा उठती रहती है कि मैं इन सबके निकास को अपनी आँखों से देखूँ। इन नदियों के तटों पर उगे बड़े चीड़, देवदार, अमलतास, कैल, कैथ आदि नाना प्रकार के वृक्षों को देखकर अपने नयन तृप्त करने को मेरा मन तरसता है। मेरी आकांक्षा है कि बादाम, अखरोट, नेवजा, सेब, नाशपाती, खुबानी के पेड़ों और बागों को देखूँ। केसर की क्यारियों को देखूँ और सूर्योदय के समय पिघली चाँदी वाले हिमशिखरों को निहारूँ, सूर्यास्त के समय पिघले स्वर्ण वाले हिमशिखरों की शोभा को निहारकर उस लीलामय की अद्भुत लीला का गुणगान करूँ। जाने कब पूरी होगी मेरी आकांक्षा !

हिमालय भारतमाता का मुकुट है। इस मुकुट के एक-एक मोती, अर्थात् भाग को एक साथ देखने की मेरी कामना है। इस पद-यात्रा में सम्भव है मैं किसी खड्डु में, किसी हिमनद में या किसी खाई में गिर पहुँ, सम्भव है मैं किसी तेज नाखूनों वाले सिंह या बाघ के पंजे का शिकार बन जाऊँ, या सम्भव है चलते-चलते पैरों में छाले पड़ जाएँ, बिवाइयाँ फट जाएँ, या शरीर थकान से चूर-चूर हो जाए; सम्भव है कहीं सर्दी से शरीर जम भी जाए; परन्तु मुझे इन बातों का तनिक भी भय नहीं। हिमालय-दर्शन मेरे जीवन का एक रोमांचकारी मधुर स्वप्न है, जो मेरे मन से नहीं जाता। यदि मुझे ऐसा सौभाग्य मिला, तो मैं अपनी यात्रा का सम्पूर्ण वृत्तान्त एक पुस्तक के रूप में लिखूँगा। अपने जीवन को धन्य, सफल और सार्थक मानूँगा। दूसरों के लिए उदाहरण और प्रेरणा भी प्रस्तुत कर सकूंगा। जाने कब पूरी हो पाएगी यह महत्त्वाकांक्षा।

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