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Essay on Youth in Hindi
Aaj ka yuva varg hindi essay
आज का युवा वर्ग
यौवन, जीवन की सर्वाधिक मादक अवस्था है और इस अवस्था में पहुँचा व्यक्ति युवक या युवा कहा जाता है। इस अवस्था को भोग रहा किसी भी देश का युवा वर्ग उसकी शक्ति ही नहीं, उसका भविष्य और सांस्कृतिक आत्मा का भी प्रतीक होता है। यदि समाज की तुलना किसी उद्यान से की जा सकती है, तो युवा वर्ग उस उद्यान का सुगन्धित पुष्प होता है। सामाजिक विरासत और सांस्कृतिक संजीवन नवयुवक की देह का ईंट-गारा बनते हैं। युवा वर्ग समाज का ऐसा जीवन्त निकष होता है, जिसके दर्पण में हम एक साथ, एक समय में और एक ही स्थान पर किसी समाज के अतीत, वर्तमान और भविष्य को साकार देख सकते हैं। वह जो कुछ है, उसका निर्माण युगीन समाज करता है और जो कुछ वह होना चाहता है, उसकी उचित परीक्षा के लिए यह देखना होता है कि पिछली पीढ़ी ने उसे कौन-सी सीढ़ी दी है, जिस पर चढ़कर वह अपने वर्तमान और भविष्य को व्यापक राष्ट्रीयता के सन्दर्भ में सँवार सकता है।
नवयुवक-वर्ग चुनौती उपस्थित होने पर अपना शीश हथेली पर रखकर खड़ा हो जाता है। वह अपनी कुर्बानी देने को हमेशा तत्पर रहा करता है। वह अतीत के गौरव से भरी बीती और भावी पीढ़ी के बीच की कड़ी बनता है। ऐसा बनने में ही उसके यौवन-भरे व्यक्तित्व की सार्थकता है।
नवयुवक के प्रति बड़ों के हृदय में मोह की भावना होना स्वाभाविक है। कुशल-क्षेम की उत्कृष्ट कामना का रहना भी अनिवार्य है। अतः वर्जना भी अपरिहार्य है। 'ऐसा मत करो' की भावना के पीछे सदा अधिकार और शासन का अभिमान ही नहीं होता, पथ-प्रदर्शन की भावना भी रहा करती है। इसी दृष्टि से 'आग से मत खेलो' कहने वाले माता-पिता अपने को बदल नहीं सकते। उन्हें अपनी अनुभूत बातें प्यारी होती हैं। उन बातों को जब नवयुवकों की स्वीकृति नहीं मिलती, तो उन्हें व्यथा होती है। यदि शऊर और सहानुभूति साथ-साथ चलते हैं, तो एक पीढ़ी की विरासत बिना शोर-शराबे, अगली पीढ़ी में समा जाती है। अगर परिस्थितियों में दबाव ज्यादा होता है, तो दोनों पक्ष बेचैन व व्यथित हो जाते हैं। तब आग्रह उग्र और संघर्ष अनिवार्य हो जाता है। प्रत्येक पीढ़ी को बदलाव की यह मानसिकता झेलनी पड़ती है।
ऐसा नहीं होता कि समूचा नवयुवक-वर्ग विद्रोही हो जाए। एक बड़ा वर्ग ऐसे लोगों का सदा रहता है, जो सहज बने रहने में विश्वास करता है। कहावत भी है कि "माँ पै पूत पिता पै घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा।" इस चलती लीक पर चलने वाले मुसाफिर कम धोखा खाते हैं। ऐसे भी व्यक्ति हैं जो हजारों वर्ष पुरानी लीक पर चलकर पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। ऐसे लोग कभी-कभी युवक-समाज के नेता बनकर भी जीवित रहते हैं। लेकिन जो पूरी तरह अनुकरण करता है, वह युवा नहीं है। नवयुवक-जीवन तो झरने का वेग है, पुष्प की सुगन्ध है, आकाश की ऊँचाई है सागर का विस्तार है और वह समाज का ऐसा क्षितिज है, जो तब तक आगे ही आगे चलता जाता है, जब तक कि पैरों में चलने की ताकत बनी रहती है। और इस झोंक में कई बार नवयुवक भटक भी जाया करता है। ऐसी ही स्थिति में बड़ों या पहली पीढ़ी के लोगों के अनुभव काम आया करते हैं।
मनुष्य-समाज की यात्रा निरन्तर चलती रहती है। वह कभी समाप्त नहीं होती। प्रत्येक आने वाली पीढ़ी अतीत और वर्तमान की सन्धि या बीच की कड़ी होती है। उसका संघर्ष अन्तर्दोह नहीं, अन्तर्मन्थन होता है। यदि हम इस स्थापना को मान लें तो युवा-स्वरों की भाषा समझने में निश्चय ही सरलता होगी। विज्ञान और तकनीकी के तेज विकास ने निष्कर्षों को तीव्रतर बना दिया है।
मान्यताओं के निष्कर्ष निकालने की गति जीवन की रफ्तार के मुकाबले तेज हो गई है। आज के भारतीय युवा वर्ग को विरासत में केवल एक विचार-दर्शन नहीं मिला, जिसकी परख करके वह आगे बढ़े। पिछली पीढ़ी को लगभग तीन पीढ़ियों के मनन, चिन्तन और संघर्ष को अपनी राजनीति का आधार बनाना पड़ा है। गांधीवाद, सर्वोदयवाद, समाजवाद और नक्सलवाद-इनमें से कोई भी वाद आज के युवा वर्ग की देन नहीं है। ये वाद तो पिछली पीढ़ी के आत्म-विरोधों और आन्तरिक न्यूनताओं की देन है। ऐसे तिराहों पर युवा वर्ग का कुछ चकित रह जाना स्वाभाविक ही है; पर कोरे भटकाव को स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।
आज का नवयुवक चौराहे पर खड़ा है-किधर जाये, किधर न जाये। प्रचलित वाद अब उसे बाँधकर नहीं रख सकते। प्रत्येक नए युग में नवयुवक को अपनी राह आप बनानी होती है, अपनी जीवन-गति का स्वयं निर्माण करना होता है। तभी इस नवयुवक-रूपी पुष्प की अपनी पंखुड़ियाँ और अपनी सुगन्ध होगी, जो कि आने वाले नवयुवक के लिए भी एक आदर्श और प्रेरणा का निरन्तर प्रवाहमान स्रोत बन सकेगी। अन्यथा भावी पीढ़ियाँ उसे भी कोसेंगी, ठीक उसी तरह कि जैसे आज की पीढ़ियाँ अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ियों को कोस रही हैं।
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