युवा पीढ़ी की मानसिकता का दस्तावेज : निष्कवच

Dr. Mulla Adam Ali
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Nishkavach - Hindi book by - Rajee Seth, A document of the mindset of the young generation.

Nishkavach Hindi Novel by Rajee Seth

Nishkavach Hindi Novel by Rajee Seth

राजी सेठ का उपन्यास निष्कवच

युवा पीढ़ी की मानसिकता का दस्तावेज : निष्कवच

समकालीन हिन्दी कथा साहित्य को प्रभावित करने वाले विमर्शों में दलित विमर्श एवं नारी विमर्श प्रमुख हैं। आज की लेखिकाएँ अपने देखे भोगे यथार्थ को अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हैं। समकालीन हिन्दी कथा लेखिकाओं में राजी सेठ को विशिष्ठ स्थान प्राप्त है।

लगभग तीस वर्षों से कथा साहित्य को हरा-भरा करने वाली राजी सेठ का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। राजी जी का 'राज' हिन्दी कथा साहित्य में तब खुलता है जब 'निष्कवच' जैसा सशक्त और उच्च कोटि का उपन्यास हमारे सामने आता है। प्रस्तुत उपन्यास वर्तमान युवा पीढ़ी की मानसिकता का दस्तावेज है। भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा 1995 ई. में प्रकाशित 'निष्कवच' में दो प्रकार के वृत्तांत हमें दिखाई देते हैं। इन दोनों वृत्तांतों में आज के मानवीय मूल्यों की डगमगाहट को चित्रांकित किया गया है। युवा पीढ़ी की मानसिकता, आशा, निराशा, उनके तनाव, दर्द, व्यथा, आकांक्षाओं तथा अभिलाषाओं को पहचानने का प्रयास इस उपन्यास में बड़े ही मार्मिक अंदाज़ के साथ किया है।

कथा लेखिका ने युवा पीढ़ी की मानसिकता, संवेदना तथा उनकी अन्य समस्याओं को हमारे सामने उजागर किया है। इस युवा पीढ़ी को ही उन्होंने 'निष्कवच' कहा है, जो निरंतरप्रहार से आहत होती है। राजी जी ने युवा पीढ़ी के प्रति, उनके माता- पिता द्वारा किये जा रहे व्यवहार को ओर उनके विभिन्न प्रकार की समस्याओं को समझने और बदलने की आवश्यकता पर इस कृति में जोर दिया है। उनकी धारणा है कि माता-पिता का प्रथम कर्त्तव्य यह है कि वे बदलते हुए परिवेश के अनुसार अपने आपको ढालें। पुराने मूल्यों तथा पुरानी मान्यताओं से जुड़े रहने पर आज की युवा पीढ़ी की वेदना और उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ समझौता तो कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में करना ही होगा जिससे कि पीढ़ियों के बीच की खाई को पाटा जा सकता है तभी जाकर युवा पीढ़ी के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा और उनके उज्वल भविष्य की कामना पूर्ण होगी।

इस उपन्यास के प्रथम वृत्तांत की नायिका 'नीरा' है। जो रिश्तों के प्रति अनादर का भाव रखती हे और पढ़ाई-लिखाई के प्रति अनिच्छा का भाव। इतना ही नहीं अपनी माँ के साथ उसका व्यवहार भी कुछ खास नहीं दिखाई देता है और वह कहती है कि- "सच तो यह है कि वह मुझे कभी अपनी माँ ही नहीं लगती।" नीरा का प्रारंभिक जीवन अत्यंत दुःखद रहा है। उसके पिता का व्यवहार अपने परिवार के प्रति इतना खराब रहता है कि वह एक दिन अपनी गर्भवती पत्नी और बच्चों को घर छोड़कर धन, आभूषण लेकर भाग जाता है। उसकी पत्नी विवश और लाचार हो जाती है और अपनी बेटी 'नीरा' को पढ़ाने के उद्देश्य से दिल्ली में रह रही अपनी बहन के पास बेटी को भेज देती है। ऐसी स्थिति में 'नीरा' प्रायः इस सोच में डूबी रहती है कि उसकी माँ उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसे वहाँ पर भेजी है। तब जाकर वह अपने मौसेरे भाई विशाल से कहती है कि "मैं कुछ भी नहीं हूँ उनके लिए। जब जहाँ चाहा, ठेल दिया।"

'नीरा' एक विघटित परिवार की संतान है। शायद इसीलिए वह स्वार्थी और कठोर बन गई है। उसके मन मस्तिष्क में नकारात्मक ऊर्जा घर कर गई है। स्वभाव से भी वह खूब आक्रामक है, इसके लिए उसके माता-पिता ज़िम्मेदार हैं। यदि 'नीरा' के घर का वातावरण अच्छा रहता तो वह इस प्रकार आक्रामक और विद्रोही लड़की नहीं होती। पढ़ाई-लिखाई के प्रति अरुचि रखने वाली वह विशाल से कहती है कि -- "पर तुम तो जानते ही हो कि मुझे किताबों का शौक नहीं है, आय लाइक ह्यूमन बीइंग्स।"

'नीरा' विशाल के दोस्त बासू के प्रति आकर्षित होती है। बासू पहले तो नीरा से विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, क्योंकि उसका स्वभाव भी विद्रोही, रोबैल तथा परंपरावादी था। वह ऐसे स्वभाव का नवयुवक था कि कभी भी वैवाहिक बंधन से मुक्त हो सकता था। इसलिए बासू नीरा से कहता है कि.. "शादी अभी उसे विश्वास लायक चीज़ नहीं लगती।" लेकिन कुछ दिनों के बाद बासू नीरा के प्रेम में इतना अनुरक्त हो जाता है कि वह एक क्षण भी उससे विलग होना नहीं चाहता। 'नीरा' के साथ रहने के लिए वह विवश और मजबूर हो जाता है। तभी 'नीरा' बासू का तिरस्कार करते हुए विशाल से कहती है-- "हमेशा ऐसे ही बिहेव करता रहता है, जैसे मैं ही उस पर लदी जा रही हूँ.... तिकड़मी ब्रूट।" इस बात से बासू का दिल अत्यंत आहत और टूट जाता है तथा अपने व्यवहार के प्रति वह पश्चात्ताप करने लगता है।

'निष्कवच' उपन्यास में तब कथा और रोचक मोड़ लेती है जब विदेश से चावला दंपत्ति 'चावला इंडस्ट्रीज' स्थापित करने के उद्देश्य से भारत आते हैं। उनके साथ उनका इकलौता बेटा रमण जो व्यवसाय से इंजीनियर है। वह भी इस इंडस्ट्रीज को स्थापित करवाने में अपने माता-पिता के साथ हाथ बंटाना चाहता है। नये वर्ष की शुभ बेला पर बासू और नीरा को एक साथ नृत्य करते हुए चावला दंपत्ति जब देखते हैं तो वे लोग नीरा के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और अपने पुत्र रमण के विवाह के लिए उसे वरण करते हैं। इसके लिए वे लोग विशाल के माता-पिता से 'नीरा' का हाथ मांगते हैं। विशाल नीरा को समझाता है कि वह बासु के प्यार को ठुकराये। लेकिन विशाल को ऐसा आभास होता है कि 'नीरा' रमण के साथ शादी हेतु लिप्त हो चुकी है और अब वह सदा प्रसन्न रह रही है। वह अपने भविष्य के प्रति काफी सचेष्ट हो गई है। वह इतनी खुश है कि चावला दंपत्ति सहित अपने परिवार वालों को खीर बनाकर खिलाती है। विशाल दुःखी होकर नीरा को समझाने की कोशिश करता है तब नीरा विशाल से कहती है कि बासू मुझे शीघ्र ही भूल जायेगा जैसे मैं उसे भूल जा रही हूँ।

इस प्रकार प्रथम वृत्तांत में मूल्यों की डगमगाहट दिखाई देती है। इस उपन्यास के अंतर्गत रूढिगत मूल्यों ओर नये जीवन मूल्यों के बीच चल रहे संघर्ष को चित्रित किया गया है। 'नीरा' के व्यवहार से स्पष्ट होता है कि वह परंपरावादी समाज में रहते हुए गलतियों को करना अपना अधिकार मानती है।

'निष्कवच' उपन्यास के दूसरे वृत्तांत में अमेरिका में रह रहे अप्रवासी भारतीयों की दुर्दशा का चित्रण कथा लेखिका ने बड़ी ही जागरूकता पूर्वक किया है। इस वृत्तांत के अंतर्गत कथानायक अपने दोस्त प्रशांत के आग्रह पर विदेश जाना चाहता है। इसलिए वह अपने माता-पिता से अपना निर्णय सुनाता है। लेकिन उसके इस निर्णय से उसके पिताजी सहमत नहीं होते हैं। फिर भी घर से विद्रोह कर वह अमेरिका चला जाता है। परंतु जिस दोस्त प्रशांत ने उसे अमेरिका बुलाया था उसका ही खुद का ठिकाना नहीं था ओर वह एक दिन किसी काली कलूटी लड़की के प्रेम में फंसकर शिकागो चला जाता है और अपने अपार्टमेंट का किराया चुकाना भी दोस्त के जिम्मे मढ देता है। एक रात तलघर से जब वह गुज़र रहा था तब एक लंबा चौड़ा हब्शी उसकी नाक पर जोर से घूँसा मार कर उसके सब पैसे छीन लेता है। और उसे घायलावस्था में बेहोश छोड़कर चला जाता है। तत्पश्चात जेनिथ फोटोग्राफर की जूनियर पार्टनर 'मार्था' लामक लड़की उसे घायल देखकर उसे अपने स्टूडियों में उठावा लाती है। उसकी नौकरी और रहने का प्रबंध भी करती है। वह भी उसके साथ रहने लगती है।

'मार्था' एक विद्रोही लड़की है इसलिए अपनी जरूरतों के बीच कमोबेश पश्चिमी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। नायक चूंकि अपने जीवन में असफल रहा है, अतः पीड़ा निर्वासन में होने के कारण वह सब कुछ तो चुप-चाप सहन कर लेता है। नायक इस बात को देखता है और विचार करता है कि भारत में बच्चों के साथ उनके माता-पिता का रवैया हमेशा एक समान रहता है। लेकिन पश्चिमी देशों में बच्चे जब 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें अपने पैरों पर किस तरह से खड़ा होना पड़ता है। वहाँ लगाव और संस्कार जैसी बातें नहीं होती हैं।

इस उपन्यास का कथानायक अपने माता-पिता से विद्रोह कर शीघ्र ही अमेरिका में धनाढ्य होने गया था, लेकिन उसे वहाँ पर सफलता प्राप्त नहीं होती है। इस लिए वह असफल होकर भारत वापस नहीं आना चाहता है। वह 'मार्था' के साथ तीन साल तक रहता है। वह अपने हृदय की बात किसी से बयां नहीं कर सकता। वह कहता है कैसे कहता कि किन चीज़ों से टकरा रहा हूँ। अक्सर रात बाहर वितानी पड़ती है। दिन में कैंडी बेचनी पड़ती है। थोड़े से सेंट्स का जुगाड़ करने के लिए कारों में पेट्रोल भरना पड़ता है। होटलों में क्राकरी धोनी पड़ती है। फुटपाथ पर कश्मीरी मफ़्लर और गुजरातियों की बनाई हुई कौस्टयूम ज्वेलरी बेचनी पड़ती है।

कथानायक अपने इस नरकीय जीवन को जब बिता रहा था तब उसका दोस्त वसीम उसे कुछ दिनों के लिए भारत आने की दावत देता है। तीन साल के बाद वह अपने देश और अपने परिवार के लोगों के बीच वापस आता है। वहाँ का पारिवारिक जीवन, रिश्ते-नाते, परिचितों की आत्मीयता, पास-पड़ोसी के साथ परस्पर आपसी प्रेम तथा सैर की पुरानी बातें उसके मनःपटल पर अंकित हो जाती हैं। और वह अपने निर्णय पर पश्चात्ताप करने लगता है। विदेश में रहकर भी वह हमेशा भारत आने के लिए सोचा करता था लेकिन अपनी असफलता के परिणामस्वरूप वह भारत वापस नहीं आ पाता है। अपनी हार वह किस प्रकार से स्वीकार करें अतः असमंजस में पड़ जाता है और पुनः यह निर्णय लेता है कि वह अमेरिका जायेगा।

इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि 'निष्कवच' उपन्यास के प्रथम वृत्तांत में अपने घर में ही अजनबीपन से असंतुलन मूलक बेचैनी एवं भटकाव के चलते नीरा घुटन महसूस करती है तो दूसरे वृत्तांत में अपनी धरती, अपनी भाषा, मिट्टी और धूप से अलग हुए नवयुवक की कारुणिक गाथा को कथा लेखिका राजी सेठ ने चित्रांकित किया है और बतलाया है कि नई पीढी न केवल सोचने पर विवश होती है बल्कि अपने किये पर पश्चात्ताप भी करती है।

- गोरख नाथ तिवारी

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