Om Prakash Valimiki Book Joothan The agony of a Dalit, Hindi Autobiography, Hindi Atmakatha, Hindi Dalit Sahitya.
Joothan Book by Om Prakash Valmiki
जूठन में वर्णित दलित की आत्मव्यथा
जूठन : एक दलित की पीड़ा
ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' में आर्थिक, दारिद्रय, सामाजिक उपेक्षा, अवमानजन्य स्थितियाँ, अभावग्रस्तता, प्रतिकूलता से गुजरते-गुजरते लेखक को जो कटु, तिक्त अनुभव आया उसका यथार्थ चित्रण 'जूठन' में किया है। भारतीय समाज में वर्णव्यवस्था, छुआ-छूत, जातिभेद का जीता-जागता चित्रण 'जूठन' में किया है।
इस आत्मकथा में एक चूहड़ा परिवार का भोगा हुआ यथार्थ चित्रण है। जिसके नायक ओमप्रकाश वाल्मीकि हैं। उनकी पारिवारीक स्थिति सभी दृष्टि से अभावग्रस्त है। गाँव में तगाओं के और चूहड़ों के अलग-अलग मुहल्ले हैं चूहड़ों के घरों की चारों तरफ गंदगी भरी है। उनकी गलियों में घूमते सूअर, नंग धडंग बच्चे, कुत्ते, रोजमर्रा के झगडे यह वातावरण जिसमें लेखक का बचपन बिता । लेखक कहते हैं "साहित्य में नर्क सिर्फ कल्पना है। हमारे लिए बरसात के दिन किसी नारकीय जीवन से कम न थे हमने इसे साार रुप में जीते-जी भोगा है।" जैसे महाराष्ट्र में सवर्णों के मुहल्ले अलग हैं और दलितों के अलग हैं। आज भी हम देखते हैं ग्रामों में दलित बस्तियाँ सभी दृष्टि से अभावग्रस्त हैं। आजादी मिलकर इतने साल होने के बावजूद भी दलित मुहल्लों में ज्यादातर विकास नहीं हुआ। आज भी उन्हें नरकीय जीवन जीना पडता है। आज केवल विकास की आस लगाएँ दलित लोग बैठे हैं।
लेखक के सभी सदस्य तगाओं के यहाँ साफ-सफाई से लेकर खेती-बाडी, मेहनत-मजदूरी सभी काम रात-बेरात करते हैं। इतना काम करने के बावजूद भी गाली-गल्लौच करते हैं और ठीक से अनाज एवं पैसा नहीं देते। सामाजिक स्तर पर चूहड़ों का चहू-ओर से शोषण होता है। आज भी पूरे भारत वर्ष में शैक्षिक, सामाजिक परिवर्तन होने के बावजूद भी दलितों को हिन दृष्टि से देखा जाता है उन पर अन्याय, अत्याचार किया जाता है क्योंकि उनका जन्म निम्न जाति में हुआ है, यह आज का यथार्थ है।
लेखक के पिताजी की आशा थी बेटा पढे-लिखे इसलिए मास्टर हरफूल सिंह के सामने गिड़गिड़ाकर स्कूल में नाम लेने को कहते हैं। लेखक को स्कूल में दूर बैठना पड़ता है। त्यागियों के बच्चे 'चूहड़े का' कहकर पुकारते थे। तमाम शिक्षक त्यागी थे। प्यास लगी तो हैंडपंप के पास खड़े रहकर किसी के आने का इंतजार करना पडता था। परीक्षा के दिनों में प्यास लगने पर गिलास से पानी नहीं पी सकता था। हथेलियों को जोडकर पानी पीना पडता था। पिलाने वाला चपरासी बहुत ऊपर से पानी डालता था। "मास्टर लोग भी हैंडपंप को छूने पर सजा देते थे।" आज भी देहातों में इस प्रकार की स्थिति नजर आती है। जाति का छोटा पन कदम-कदम पर छलकता था। स्कूल में मास्टर लोग बहुत पीटते थे। एक दिन हेडमास्टर कालीराम ने मुझे अपने कमरे में बुलाकर पूछा क्या नाम है तेरा ? मैंने कहा, 'ओमप्रकाश' दूसरा सवाल था। चूहड़े का है ? ठिक है सामने शीशम का पेड है। उसकी टहनियाँ तोड़कर झाडू बना ले। पूरा स्कूल ऐसा चमका जैसा सीसा । तेरा तो यह खानदानी काम है। बाकी बच्चे पढ रहे थे और मैं झाडू मार रहा था। लगातार दो दिन झाडू मारता रहा तीसरे दिन मैं कक्षा में जाकर चुप-चाप बैठ गया। थोडी देर बाद मास्टर आये मुझे कक्षा से खींचकर बाहर लाया और चीखकर बोल, "जा लगा पूरे मैदान में झाडू नहीं तो, -- में मिर्ची डालके स्कूल से बाहर निकाल दूँगा।"
- बेवले ए.जे.