बाल कविता: पापा सच-सच मुझे बताना

Dr. Mulla Adam Ali
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Papa Sach-Sach Mujhe Batana

पापा सच-सच मुझे बताना हिंदी कविता

पापा सच-सच मुझे बताना हिंदी कविता : बचपन सबके लिए यादगार होता है, हर कोई अपने बचपन के दिन याद करके खुश हो जाता है, आज ऐसी ही कविता एक बच्चा अपने पिताजी से पूछ रहा है कि पापा आपने बचपन के बारे में बताओ सच सच। डॉ. परशुराम शुक्ल की प्रतिनिधि बाल कविता संग्रह से संग्रहित बचपन पर खूबसूरत बाल कविता पापा सच-सच मुझे बताना, पढ़े बाल कविता कोश में ये कविता और शेयर करें।

Bachpan Ke Khel Bal Kavita

पापा सच-सच मुझे बताना

पापा सच-सच मुझे बताना।

कुछ भी मुझसे नहीं छिपाना।

मेरे जैसे जब बच्चे थे,

तब के अपने हाल सुनाना।

धींगा-मस्ती, धमा-चौकड़ी,

हल्ला-गुल्ला शोर मचाना।

और तुम्हें अच्छा लगता था,

छत पर जाकर पतंग उड़ाना?

दादाजी जब काम बताते,

करते थे क्या नहीं बहाना ?

मेरे भीतर देखो अपना,

बचपन का वह रूप पुराना ।।


- डॉ. परशुराम शुक्ल

बाल साहित्यकार,

भोपाल (मध्यप्रदेश)

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