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Hindi Nibandh Vriksharopan ka Mahatva
Importance of Tree Plantation Essay in Hindi
वृक्षारोपण : आवश्यकता और महत्त्व
आज पर्यावरण के प्रदूषण की चर्चा चारों ओर सुनी जा सकती है। प्रदूषण के निरन्तर बढ़ाव को देखते हुए विश्व का प्रत्येक छोटा-बड़ा राष्ट्र तो आज अपनी सीमा में अत्यधिक चिन्तित है ही सही, संयुक्त राष्ट्र संघ तक में इस समस्या पर न केवल चिन्ता प्रगट की जा चुकी है, बल्कि इसके कारणों और रोक के उपायों तक पर भी विचार किया जा चुका है। उन उपायों में वृक्षारोपण के उपाय को सभी ने एक स्वर में प्रमुखता प्रदान की है। इसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपाय माना है। यह एक निखरा हुआ तथ्य है कि पर्यावरण के अत्यधिक दूषित या प्रदूषित हो जाने की समस्या उसी दिन से प्रारम्भ हो गई, जब मानव ने निर्दय बनकर प्रकृति के सुकुमार और निरीह प्रहरी वृक्षों, उनके जंगलों को अपने आर्थिक लाभों के लिए अन्धाधुन्ध काटना आरम्भ कर दिया था। प्रदूषण के अन्य अनेक कारण भी हो सकते हैं और हैं भी, पर सबसे प्रमुख और बड़ा कारण वृक्षों-वनों का अभाव होते जाना ही माना जाता है। इस अभाव की पूर्ति के लिए ही आज वृक्षारोपण का महत्त्व सभी स्वीकार कर रहे हैं।
मानव जाति अपने उद्भव-काल से ही प्रकृति-प्रेमी और प्रकृति पर आश्रित रही है। आदिम काल में मानव जब वन्य जीवन व्यतीत करता था, तो सभी प्रकार के वन्य या प्राकृतिक उपादान ही उसके जीवन जीविका के एकमात्र साधन थे। उनमें अनेक प्रकार के फल-फूलों के साथ-साथ ऊर्जा और ईंधन की समस्या के समाधान के स्रोत भी वृक्ष ही थे। आज ज्ञान-विज्ञान की प्रगति के बल पर यद्यपि मनुष्य पहले की तरह प्रकृति या वनों-वृक्षों का आश्रित नहीं रह गया, परन्तु प्रदूषण की विकराल समस्या, बाढ़-सूखा आदि ने यह प्रमाणित कर दिया है कि आज भी मानव प्रकृति के आश्रय से मुक्त नहीं हो सका और न कभी हो ही सकता है। प्रकृति उस पर सदा हावी रही है और रहेगी। वृक्ष प्रकृति का सुकुमार पुत्र और मानव का निरपेक्ष उपकारक है, इसमें कोई सन्देह नहीं। फिर भी हम उनके उद्भव-स्थलों-वनों को अपने आर्थिक लाभ के लिए निरन्तर काटते हुए न केवल अपने, बल्कि अपनी ही भावी पीढ़ियों और समूची मानवता के भविष्य को अन्धकारमय बनाने पर तुले हैं। है न घोर विडम्बना और मानवीय दृष्टि से हीनता की बात !
वनों-वृक्षों के अन्धाधुन्ध कटाव का ही यह परिणाम है कि आज हम शुद्ध वायु में साँस तक नहीं ले पाते। परिणामस्वरूप अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों का शिकार होते जाते हैं। वनों-वृक्षों को काटने वाले उन वृक्षों को भी नहीं छोड़ते कि जिनका रहना मनुष्य की रक्षा के लिए बहुत आवश्यक है, जो वायुमण्डल के प्रदूषण को मात्र अपने अस्तित्व से ही समाप्त करने की क्षमता रखते हैं। वायु का झोंका पाकर जिनका हिलना-डुलना ही वातावरण को शुद्ध करने में समर्थ था, लालची मानव उनको भी काटकर अपनी लालच की आग में भस्म करता जा रहा है। दिल्ली को ही लीजिए। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय तक इसके आस-पास बाग-बगीचों और सघन वनों की भरमार थी, आज वृक्ष शायद ढूँढ़े से भी न मिले। वनों के कटाव के कारण मानव के साथी अनेक पशु-पक्षियों की जातियाँ-प्रजातियाँ नष्ट हो चुकीं व होती जा रही हैं। नदियों के उद्गम स्थलों व पर्वतों-पठारों से वृक्षों के कटाव के कारण वहाँ के धरातल और मिट्टी कट-बहकर नदियों के मुहाने पाट रही हैं। इससे बाढ़ तो पहले की तुलना में अधिकाधिक विनाश-लीला प्रस्तुत करने ही लगी है, उससे दूर-दराज के वासियों को तो हानि है ही, आस-पास की आबादियों के अस्तित्व तक समाप्त हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है। अनेकविध औषध वनस्पतियाँ-वृक्ष अतीत की कहानी बन चुके हैं। वनों-वृक्षों के अन्धाधुन्ध कटाव के इस भयावह माहौल में अनेविध बम्बों के परीक्षण, कल-कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला जहरीला धुआँ, सभी कुछ तो मारक-ही-मारक है। वन-वृक्ष ही इन सबसे, और ऊपर बताए विनिष्ट माहौल आदि से जीव-जन्तुओं की रक्षा कर पाने में समर्थ हैं-हो सकते हैं। इस तथ्य की मुक्त भाव से स्वीकृति निश्चय ही वृक्षारोपण की आवश्यकता और महत्त्व को उजागर कर देती है।
वृक्षारोपण अनेक कारणों से आज मानव जीवन की एक प्राथमिक आवश्यकता है। वातावरण और वायुमण्डल को शुद्ध बनाने की आवश्यकता भी स्पष्ट है। प्रकृति के सुकुमार और सुगन्धित बालक वृक्ष ही अपने साथियों के साथ मस्ती में झूम और लहराकर वायुमण्डल को शुद्धता प्रदान कर सकते हैं। वृक्ष हमारे नगर-ग्राम जीवन और वातावरण की शोभा-सौन्दर्य बढ़ाने वाले प्राकृतिक उपकरण भी हैं। जीवन के सत्यं-शिवं-सुन्दरं की रक्षा के लिए भी वृक्षों का कटाव रोकना और नए-नए वृक्षों का आरोपण बहुत आवश्यक है। वृक्ष फल और छाया तो देते ही हैं, ऊर्जा के स्रोत भी हैं। भारत के ग्रामों में आज भी खाना आदि बनाने के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इमारतों, फर्नीचर आदि के निर्माण के लिए भी लकड़ी की आवश्यकता रहती है, जिसके स्रोत वृक्ष ही हैं। इन सबसे बढ़कर वृक्षारोपण इसलिए आवश्यक है कि प्रकृति के वातावरण में एक सहज स्वाभाविक सन्तुलन बना रह सके। यह सन्तुलन ही भूमि-कटाव, बहाव, अनावृष्टि या आवश्यकता से अधिक वृष्टि से मानव जाति की रक्षा कर सकता है। अनेकविध संघात्मक परीक्षणों से वायुमण्डल में भर जाने वाले दूषित तत्त्वों, कल-कारखानों से निकलने वाले दूषित धुएँ और विषैली गैसों का शोषण कर वायुमण्डल एवं वातावरण को शुद्ध व पवित्र बनाए रखने की अद्भुत शक्ति वृक्षों में रहा करती है। वृक्षों-वनों के आरोपण से ही विनष्ट हो रही पशु-पक्षियों की अनेक जातियों-प्रजातियों की रक्षा भी सम्भव हो सकती है। फूल-फल, अनेकविध औषधियों और साँसों की शुद्धता के मात्र स्रोत तो वृक्ष हैं ही सही। अतः उनकी रक्षा और नव-रोपण आवश्यक है।
यह बात न तो सम्भव और न व्यावहारिक ही है कि वृक्षों-वनों का कटाव होना ही नहीं चाहिए। ऐसा कभी किसी युग में हुआ भी नहीं। आवश्यकता इस बात की है कि पुराने वृक्षों की कटान और नए पौधों के आरोपण में एक स्वाभाविक सन्तुलन लाया जाए। आज के निरन्तर शुष्क एवं नीरस हो रहे जीवन के लिए सन्तुलन बहुत आवश्यक है। अनुचित है अन्धाधुन्ध कटाई और पुनः आरोपण का अभाव। इसे एक शुभ लक्षण कहा जाएगा कि आज सारे विश्व का ध्यान व्यक्ति और समूह सभी स्तरों पर वृक्षारोपण के महत्त्व की ओर पूर्णतया आकर्षित हो चुका है। तभी तो आज सारे विश्व में पर्यावरण-रक्षा-वर्ष, मास, सप्ताह या दिन आदि मानाए जाते हैं। व्यक्ति और समूह के स्तर पर वृक्षारोपण का कार्य देश-विदेश सभी जगह पर निरन्तर होने लगा है। प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह इस सुकार्य में यथाशक्ति हाथ बँटाए। जहाँ भी खाली और सुरक्षित स्थान मिले, वहाँ वृक्षारोपण किया जाए। उसके विकसित होने का ध्यान भी रखा जाना बहुत आवश्यक है।
लोग अपने घरों की शाक-वाटिकाओं और सड़कों के किनारों पर वृक्षारोपण कर सकते हैं। किसान खेतों के किनारों पर वृक्ष उगाकर दुहरा-तिहरा लाभ उठा सकते हैं। शहरों में सुरक्षित हरी पट्टियों पर वृक्षों के झुण्ड उगाए जा सकते हैं। यह सब हमें अन्य किसी के लिए नहीं, अपने, अपने परिवारी-जनों और भावी पीढ़ियों, राष्ट्र-जनों और उससे आगे बढ़कर सारी मानवता की रक्षा के लिए करना है। अपनी रक्षा में सबकी रक्षा और सबकी रक्षा में अपनी रक्षा का साधन और कारण छिपा रहा करता है। इस तथ्य को यदि आज न समझा गया, तो भविष्य हमें कभी माफ नहीं करेगा। हम उसके सर्वनाश का कारण जो बनेंगे।
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