100+ Lokoktiyan in Hindi | 100+ हिंदी की प्रमुख लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ वाक्य प्रयोग

Dr. Mulla Adam Ali
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Proverbs in Hindi and their usage

Proverbs in Hindi

लोकोक्तियाँ क्या है और उनका प्रयोग : इस आर्टिकल में हिन्दी व्याकरण से संबंधित हिन्दी के प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ अर्थ सहित दिए गए हैं। लोकोक्तियाँ अर्थ और परिभाषा और उनका प्रयोग कैसे करें।

लोकोक्तियाँ (Proverbs)

Lokoktiyan in Hindi

(क)

लोकोक्तियाँ या कहावतें उन्हें कहते हैं, जो पूरे वाक्य के समान होती हैं, और साधारण अर्थ को छोड़कर कोई विशेष अर्थ प्रकट करती हैं। जैसे- अन्धों में काना राजा। इसका साधारण अर्थ तो यह है कि बहुत-से अन्धों में कोई काना राजा के समान है। पर कहावत के रूप में उसका विशेष अर्थ है- मूर्खों में थोड़ा पढ़ा-लिखा बड़ा विद्वान् समझा जाता है। इसी प्रकार दूसरी कहावतें भी विशेष अर्थ रखती हैं।

मुहावरों की भाँति लोकोक्तियों का प्रयोग भी भाषा को सुन्दर, सरस और अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए किया जाता है।

यहाँ नीचे कुछ अधिक उपयोगी और प्रचलित लोकोक्तियों के अर्थ और उनके प्रयोग पर प्रकाश डाला जाता है।

1. अन्त भले का भला = अच्छे काम का परिणाम अच्छा ही होता है-चाहे वह तुम्हें कितना ही बुरा कहे, उसका काम कर दो-अन्त भले का भला।

2. अन्धों में काना राजा = मूर्खों में थोड़ा पढ़ा-लिखा बड़ा विद्वान् समझा जाता है-गोपाल मैट्रिक पास होकर गाँव चला गया था। वहाँ गाँव वाले उसे विद्वान् समझने लगे। इसे ही अन्धों में काना राजा कहते हैं।

3. अन्धेर नगरी चौपट राजा = अधिकारी अयोग्य होने पर सब कामों में धाँधली मच जाती है-इस मिल में मालिक काम की ओर ध्यान नहीं देता और नौकर भी सारा दिन निकम्मे बैठे रहते हैं। इसे ही कहते हैं- अंधेर नगरी चौपट राजा।

4. अधजल गगरी छलकत जाए = थोड़े-से ज्ञान, धन या मान वाले मनुष्य बहुत अभिमान का प्रदर्शन करते हैं-रामगोपाल के पास पचास गज का मकान क्या हो गया, वह सब जगह भूमिपति होने की डींग मारता फिरता है। इसे ही कहते हैं-अधजल गगरी छलकत जाए।

5. अन्धा क्या चाहे दो आँखें = बिना प्रयास के मनचाही वस्तु मिल जाना-मोहन को बड़ी भूख लगी थी, सोहन ने कहा-भैया मोहन! रोटी खाओगे? तो वह बोला- अंधा क्या चाहे दो आँखें, यार खिला दो।

6. अन्धी पीसे कुत्ता खाय = धन कोई कमाये और उसका उपभोग कोई और करे-यहाँ बाबू कमाते-कमाते मर जाते हैं, बीवियों के तेल, पाउडर ही समाप्त नहीं होते। इसे ही कहते हैं- अंधी पीसे कुत्ता खाय।

7. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है = अपने घर कमजोर भी बहादुरी दिखाता है-बच्चू बाहर आओ तो तुम्हें मजा चखा हूँ। अपनी गली में तो कुत्ता भी शेर होता है।

8. अब पछताये होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत = हानि होने के बाद पछताने से कोई लाभ नहीं मित्र! पहले परिश्रम करते, अब फेल होकर रोने से क्या बनता है- अब पछताये होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।

9. अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग = सबकी अलग-अलग राय या अलग-अलग कार्य करना-कई विरोधी दल हैं। कोई किसी की नहीं सुनता, सबकी अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग है।

10. आम के आम गुठली के दाम = एक काम या वस्तु के दो लाभ होना (दुगुना लाभ)-पुरानी पढ़ी हुई पुस्तकें हमारे यहाँ बेचकर अधिक दाम प्राप्त कीजिए। इसे ही कहते हैं-आम के आम गुठली के दाम।

11. अशर्फियाँ लुटें कोयलों पर मोहर = थोड़ा बचाने की चिन्ता में अधिक नष्ट कर देना-राम कृपणता के कारण अपने नौकर को पूरा खाना नहीं देता, पर शराब पर हजारों रुपये यार दोस्तों में लुटा देता है। इसी को कहते हैं, अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।

12. आँख के अंधे गाँठ के पूरे = मूर्ख, परन्तु धनी-मनोहर मूर्ख तो है, पर धन कुबेर है। ऐसे ही लोगों के लिए कहा जाता है- आँख के अन्धे गाँठ के पूरे।

13. आप सुखी, जग सुखी = सुखी लोग दुखियों की अवस्था नहीं जान सकते-अरे भाई, सतीश की बात क्या करते हो? वह तो दिन-रात गुलछर्रे उड़ाता  है। वह तो समझता है, आप सुखी, जग सुखी।

14. आँख का अन्धा नाम नैनसुख = गुणों के विरुद्ध नाम होना-'करोड़ीमल' नाम तो अच्छा है, पर उसके पास पैसा एक भी नहीं। इसी को कहते हैं- आँख का अन्धा नाम नैनसुख।

15. आटे के साथ घुन भी पिस जाता है = अपराधी के साथ रहने वाला निरपराध भी मारा जाता है-बेचारा रामदास बिल्कुल निरपराध था; पर निरंजन जैसे जुआरी के साथ रहने से उसे भी सजा मिली। ठीक ही कहा गया है कि-आटे के साथ घुन भी पिस जाता है।

16. आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे = अधिक लोभ करने से हानि ही होती है- सुधीर दिल्ली की नौकरी छोड़कर बम्बई मिल का मैनेजर होने गया था। पर उधर मैनेजरी तो मिली नहीं, दिल्ली की नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा। इसी को कहते हैं-आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे।

17. आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाय = भविष्य की न सोचना-भविष्य की कठिनाई के लिए कुछ धन बचाकर रखना चाहिए। नहीं तो, कठिनाई भोगनी ही पड़ेगी। किसी ने ठीक ही कहा है- आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाय।

18. इस हाथ दे उस हाथ ले = दिया हुआ दान कभी निष्फल नहीं जाता, उसका सुफल अवश्य मिलता है-उपकार करना मनुष्य का धर्म है। उपकार में सुख प्राप्त होता है। गुरुजनों ने ठीक कहा है- इस हाथ दे, उस हाथ ले।

19. इस माया के तीन नाम; परसू, परसा, परसराम = ज्यों-ज्यों धन बढ़ता है त्यों-त्यों धनी का मान-सम्मान भी बढ़ जाता है-गणेश की जब से पाँच लाख की लाटरी निकली है, लोग उसको सम्मान से बुलाने लगे हैं। ऐसे ही लोगों के लिए कहा गया है- इस माया के तीन नाम; परसू, परसा, परसराम।

20. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया = परमात्मा की लीला विचित्र है-सुधीर के घर में तो कुहराम मचा हुआ है, और विवाह के कारण पड़ोस में ही शहनाई बज रही है। इसे ही कहते हैं- ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया।

21. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = अपना अपराध स्वीकार न करके उल्टा पूछने वाले को दोषी ठहराना-सुमित से जब मैं कलम के सम्बन्ध में पूछने लगा, तो वह अपना अपराध स्वीकार करने की जगह मुझ को ही आँखें दिखाने लगा। इसी को कहते हैं- उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

22. ऊँट के मुँह में जीरा = बड़े को थोड़ी वस्तु देना-अरे, इसका भला दो रोटियों से क्या होगा? यह तो इसके लिए ऊँट के मुँह में जीरे के समान है।

23. ऊँची दुकान फीका पकवान = आडम्बर अधिक और तत्त्व कम-सोचा था, 'अनुपमा' की मिठाई अच्छी होगी, क्योंकि नाम अनुपमा है; पर मिठाई तो किसी काम की नहीं निकली। इसी को कहते हैं- ऊँची दुकान फीका पकवान।

24. एक अनार सौ बीमार = एक वस्तु के अनेक ग्राहक (इच्छुक)- एक आदमी की जगह खाली है किस-किसको रखूँ? दशा तो ठीक वैसी ही है कि एक अनार सौ बीमार।

25. एक और एक ग्यारह = एकता में बड़ा बल है- गाड़ी कीचड़ से क्यों नहीं निकलेगी? जरा सब मिलकर हाथ तो लगाओ। सुना नहीं, एक और एक ग्यारह होते हैं।

Hamari Bhartiya Lokoktiyan

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26. एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा = एक तो स्वाभाविक दोष होना, तिस पर उसका किसी कारण से और भी बढ़ जाना-नन्दू पहले से ही घमण्डी था, अब तो उसे अपने नाना की सम्पत्ति मिल गई है घमण्ड क्यों नहीं करेगा? इसी को कहते हैं-एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा।

27. एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है = अच्छे मनुष्यों में यदि एक बुरा आदमी आ जाए तो वह सारे समाज को कलंकित कर देता है-किशोर के कुकृत्यों के कारण सारा कालेज लांछित हो रहा है। एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है।

28. एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत = स्वास्थ्य बहुत बड़ा धन है-खान-पान में समय और शुद्धता का ध्यान रखा करो; क्योंकि एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत।

29. एक हाथ से ताली नहीं बजती = लड़ाई में दोनों पक्ष कारण होते हैं-मैं कैसे यह स्वीकार करूँ, कि तुमने तो कुछ नहीं कहा, और रामलाल ने तुम्हें पीट दिया; क्योंकि एक हाथ से ताली नहीं बजती।

30. एक पंथ दो काज = एक ही उपाय से दो काम निकालना-हरिद्वार अवश्य जाऊँगा। क्योंकि पिताजी से मिलना है और गंगा में स्नान भी कर लूँगा। एक पंथ दो काज हो जाएँगे।

31. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर = जब किसी कठिन काम को करना ही है तो आने वाली विपत्तियों से डरना नहीं चाहिए-जब इस बंजर भूमि को खरीदा है, तो इसे उपजाऊ बनाने के लिए रुपया तो खर्च करना ही पड़ेगा। ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर?

32. ओस के चाटे प्यास नहीं बुझती = बड़े लक्ष्य के लिए विशेष प्रयत्न और काफी पैसे की आवश्यकता होती है, थोड़े से काम नहीं चलता-दो-चार हजार से तेल की मिल नहीं चलाई जा सकती है, ओस के चाटे प्यास नहीं बुझती।

33. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती = बेईमानी बार-बार नहीं फलती- आखिर महेन्द्र घी में मिलावट के अपराध में गिरफ्तार हो ही गया। ठीक ही कहा गया है-काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।

34. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली = आकाश-पाताल का अन्तर अरे भई, तुम सुरेश की बात करते हो? भला वह महेश की बराबरी क्या कर सकता है? कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।

35. कोयले की दलाली में हाथ काले = दुष्टों की संगति से कलंक लगता है-मनोहर जुआ बिल्कुल नहीं खेलता; पर किशोर का उसका बुरा साथ है। उसकी संगति के कारण ही तो पुलिस ने उसे भी फाँस लिया। कोयले की दलाली में हाथ काले होते ही हैं।

36. काम को काम सिखलाता है = काम करने से ही अनुभव बढ़ता है- संजय अभी तो कल का बालक है, तुम्हारे समान अनुभवी नहीं। काम करेगा तो अनुभव प्राप्त होगा ही; क्योंकि काम को काम सिखलाता है।

37. का वर्षा जब कृषि सुखाने = समय बीतने पर साधनों के मिलने से क्या लाभ-मुझे तो इस समय रुपयों की आवश्यकता है। 'विवाह' कार्य जब पूरा हो जाएगा तब आपके रुपये मेरे किस काम आयेंगे? का वर्षा जब कृषि सुखाने।

38. खोदा पहाड़ निकली चुहिया = अधिक परिश्रम करने पर भी कम फल की प्राप्ति होना-बड़ी आशा थी कि कुएँ से भरपूर पानी मिलेगा; पर यह तो एक ही पुर (चमड़े से निर्मित बड़ा थैला जैसा-जिससे सिंचाई का काम लिया जाता था) में सूख जाता है। यह तो वही कहावत हुई कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया।

39. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है = एक को देखकर दूसरा भी वैसी ही इच्छा या चेष्टा करता है-गोवर्धन अभी तक सज्जनता का बर्ताव करता था, पर जब से मोहन आया, उसका भी दिमाग चढ़ गया है। ठीक ही कहा गया है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।

40. खग ही जाने खग की भाषा = साथी ही साथी और पड़ोसी ही पड़ोसी का स्वभाव जानता है-अरे भाई, तुम्हीं गिरीन्द्र से बात करो, क्योंकि वह तुम्हारा मित्र है। तुम उसे अधिक जानते हो। कहा भी है-खग ही जाने खग की भाषा।

41. गागर में सागर भरना = विस्तृत बात को संक्षेप में कहना-पंकज ने दस पंक्तियों की कविता में ही सम्पूर्ण जीवन का मर्म भर दिया है। इसी को कहते हैं-गागर में सागर भरना।

42. गुड़ खाये गुलगुलों से परहेज = बनावटी परहेज-वाह, प्याज की पकौड़ियाँ तो खा लेते हो, प्याज नहीं खाते। तुम्हारे जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है कि गुड़ खाये, गुलगुलों से परहेज।

43. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास = किसी सिद्धान्त पर स्थिर न रहना-रामदास का क्या कहना? वे जब तुमसे मिलते हैं, तो तुम्हारे मन की बात कहते हैं और जब मुझसे मिलते हैं तो मेरे मन की कहने लगते हैं। उनका तो वही हाल है-गंगा गए गंगादास और जमुना गए जमुनादास।

44. घाट-घाट का पानी पीना = संसार का अनुभव प्राप्त करना-तुम रामअवतार का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, वह घाट-घाट का पानी पी चुका है।

45. घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध = घर में गुणी मनुष्य का मान न होना-अरे भाई, यहाँ मुझे कौन पूछने वाला है? दूसरों के लिए मैं चतुर चिकित्सक क्यों न होऊँ, पर यहाँ तो लोग मुझे बस वही गाँव का बालक किशोर ही समझते हैं। ऐसी ही स्थिति के लिए कहा गया है, घर का जोगी जोगना आन गाँव का सिद्ध।

46. चोर का साथी गिरहकट = सभी अपने जैसे साथी को ढूँढ़ लेते हैं-भूपेन्द्र दुराचारी तो था ही, अब बिल्ले गुण्डे से मिलकर वह भी गुण्डा बन गया है। किसी ने ठीक कहा है-चोर का साथी गिरहकट।

47. चिराग तले अँधेरा = विद्वान् बुद्धिमान के यहाँ भूल होना-दिल्ली राजधानी है; पर राजधानी में ही लूट और हत्या का बाजार गरम है। वाह, चिराग तले अँधेरा।

48. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए = बहुत कंजूस होना-सत्येन्द्र क्या किसी को कुछ देगा। उसका तो यह हाल है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।

49. चोर के पैर नहीं होते = पापी की बातें ठोस नहीं होतीं-घड़ी के सम्बन्ध में पूछताछ करते ही सोहन के हाथ-पैर फूल गए और वह कुछ का कुछ कहने लगा; किसी ने ठीक कहा है, चोर के पाँव नहीं होते।

50. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात = सांसारिक धन-सुख आदि स्थायी नहीं होते-अरे भाई, सँभलकर खर्च करो। इस प्रकार अपव्यय करने से इस कहावत को अवश्य चरितार्थ करोगे-चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।

महत्वपूर्ण लोकोक्तियां

मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ || Hindi Muhavare evam Lokoktiyan || IDIOMS AND PROVERBS || Hindi Grammar

51. छछूदर के सिर पर चमेली का तेल = किसी अयोग्य पुरुष को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके योग्य वह न हो-रमोला जैसी रूपवती और गुणवती कन्या का विवाह अनिल के साथ। यह तो वैसा ही हुआ, जैसे छहुँदर के सिर पर चमेली का तेल।

52. छाती पर साँप लोटना = ईर्ष्या से मन में जलन होना-मेरी पदोन्नति का समाचार पाते ही मानो गुरदास की छाती पर साँप लोट गया।

53. जैसा राजा वैसी प्रजा = यदि राजा अच्छा है तो प्रजा भी अच्छी होगी और यदि राजा में अवगुण हैं तो प्रजा में भी दोष आ जाएँगे इस शासन में भ्रष्टाचार खूब बढ़े हैं। क्यों न हो, जैसा राजा वैसी प्रजा।

54. जितने नर उत्तनी बुद्धि = सभी लोगों के विचार एक से नहीं होते तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है? विचारों में भिन्नता तो होगी ही; क्योंकि जितने नर उत्तनी बुद्धि।

55. जाको राखो साइयाँ, मार न सकिहै कोय = जिसका भगवान रक्षक है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता-सुखराम ने गुणाकर पर गोली चलाकर उसे मार डालने का भरपूर प्रयत्न किया, पर गुणाकर साफ बच गया। जाको राखो साइयाँ मार न सकिहै कोय।

56. जब तक साँस तब तक आस = जीवन के अन्त तक आशा बनी रहती है-हिम्मत क्यों हारते हो? शीघ्र डॉक्टर को बुलाकर दिखा दो। जब तक साँस तब तक आस।

57. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि = कवि की कल्पना का अन्त नहीं होता-सूरदासजी का श्रीकृष्ण छवि का वर्णन पढ़कर कहना पड़ता है-जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि।

58. जिसकी लाठी उसकी भैंस = सर्वत्र शक्तिशाली की विजय होती है-आखिर योगेन्द्र धन के बल से चुनाव जीत ही गया। किसी ने ठीक ही कहा है-जिसकी लाठी उसकी भैंस।

59. जैसी करनी वैसी भरनी = कर्मों के अनुसार फल मिलता है-गरीबों को सताने का परिणाम दुखद ही होता है। सुना नहीं-जैसी करनी वैसी भरनी।

60. जमात करामात = संगठन में ही शक्ति है-मिलकर काम करोगे, तो अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होगी। सदा स्मरण रखो, जमात करामात।

61. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं = अधिक बोलने वाले कुछ काम नहीं करते-तुम्हें भीम की बकवास पर ध्यान नहीं देना चाहिए। सुना नहीं, जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।

62. जल में रहकर मगर से वैर = जिसके आश्रित रहना, उसी से शत्रुता करना-कामिल की अब कुशल नहीं। हामिद उसे अवश्य नौकरी से अलग कर देगा। जल में रहकर मगर से वैर अच्छा नहीं होता।

63. जैसे को तैसा = जो जैसा करे उससे वैसा ही बदला लेना-नीरज ने दुष्ट रेणु को चकमा देकर ऐसा मारा कि अब वह नहीं उठ सकता। इसे ही कहते हैं जैसे को तैसा।

64. जैसा मुँह वैसी चपेट = समय और पात्र देखकर व्यवहार करना-अखिलेश ने विमलेश के साथ ठीक ही बर्ताव किया-जैसा मुँह वैसी चपेट।

65. नौ दिन चले अढ़ाई कोस = बहुत अधिक समय में बहुत कम काम करना-सारा दिन बीत गया, और तुम केवल एक ही बित्ते दीवाल की चिनाई कर सके, तुम तो ऐसे हो, नौ दिन चले अढ़ाई कोस।

66. तेते पाँव पसारिये जेती लम्बी सौर, जितनी चादर देखो उतने पैर फैलाओ = सामर्थ्य के अनुसार काम करो अथवा जेब देखकर उसी के हिसाब से खर्च करो-अरे भाई, विवाह में इतना रुपया क्यों खर्च करते हो? हर एक काम में सामर्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। बड़ों ने कहा है-जितनी चादर देखो उतने पैर फैलाओ।

67. डूबते को तिनके का सहारा = कठिनाई में थोड़ी-सी सहायता भी किसी का कल्याण कर देती है-रामनाथ की थोड़ी-सी सहायता भी मेरे लिए डूबते को तिनके का सहारा सिद्ध हुई।

68. थोथा चना बाजे घना = ओछे आद‌मी दिखावा अधिक करते हैं- मुझे तो अवधेश की बातें बकवास-सी लगती हैं; क्योंकि थोथा चना बाजे घना।

69. दूध का जला छाछ को फूंक-फूंककर पीता है = किसी काम में हानि उठाने वाला व्यक्ति दूसरे काम को भी करता हुआ डरता है, चाहे उसमें डर की सम्भावना न भी हो-जब से जयदयाल साधु - वेशधारी ठगों से ठगा गया, वह किसी भी भले मानस पर विश्वास नहीं करता। इसमें उसका भी क्या दोष? दूध का जला छाछ को फूंक-फूंककर पीता है।

70. दूर के ढोल सुहावने = दूर की अथवा अप्राप्त वस्तु अच्छी मालूम होती है-तुम व्यर्थ ही मथुरा के पेड़ों की प्रशंसा करते हो। मेरी समझ में तो वे किसी काम के नहीं होंगे। दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

71. दोनों हाथों में लड्डू = दोनों ओर से लाभ-माताप्रसाद जी का क्या कहना, जब से उनके बड़े भाई प्रदेश के मंत्री पद पर प्रतिष्ठित हुए हैं उनका सम्मान और आय दोनों बढ़ गए। अब तो उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं।

72. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम = अस्थिर विचार वाला मनुष्य सदा हानि उठाता है-मैं तो केवल सोचता रह गया। न विशारद की परीक्षा का फार्म भर सका और न इण्टरमीडिएट का ही। मेरा हाल तो वही हुआ कि दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।

73. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का =  जिसका कोई निश्चित स्थान अथवा मत न हो, वह न तो इधर का रहता है न उधर का शिवप्रसाद भी कोई आदमी है। न कोई उसका सिद्धान्त न कोई आदर्श। उसका हाल तो ठीक वैसा ही है, जैसे धोबी का कुत्ता घर का न घाट का।

74. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी = ऐसी शर्त पर काम स्वीकार करना जो पूरी न हो सके अर्थात् काम करने से इन्कार कर देना-उसने मेरी कन्या से अपने बेटे के विवाह की जो शर्त रखी है, वह बड़ी विचित्र है। वह चाहता है कि मैं उसके बेटे को अमरीका पढ़ने के लिए भेजें। इसका तो यही अर्थ है-वह इस सम्बन्ध को करना ही नहीं चाहता; क्योंकि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।

75. नाच न जाने आँगन टेढ़ा = काम करने की विधि न जानने पर इधर-उधर के बहाने बनाना-सूरदास जी के पदों का अर्थ तो सत्येन्द्र जी को आता नहीं, कहते हैं पद अशुद्ध है। वाह! नाच न जाने आँगन टेढ़ा।

महत्वपूर्ण लोकोक्तियाँ, अर्थ एवं उनका वाक्य प्रयोग

76. नौ नकद न तेरह उधार = जो चीज तुरन्त मिल जाए वही अच्छी है-लाओ भाई, पच्चीस न सही बीस ही रुपये दे दो। पर मैं अभी लूँगा। कम तो जरूर हैं, पर नौ नकद न तेरह उधार।

77. नेकी कर कुएँ में डाल = उपकार करके उसे जताना नहीं चाहिए-तुमने मोहन की पढ़ने में सहायता की, किन्तु वह इसका उपकार नहीं मानता और तुम बार-बार कहते फिर रहे हो, अरे भाई! नेकी कर कुएँ में डाल।

78. पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय = धन-दौलत किसी के पास नहीं टिकते-क्यों चिन्ता करते हो? धन का यही हाल है, आज है कल नहीं; क्या सुना नहीं-पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय।

79. पैसा पैसे को खींचता है = पैसे से ही पैसा कमाने के साधन जुटते हैं-रामदास धनी तो है, व्यापार करते ही उसकी मोटर भी आ गई। लोगों ने ठीक ही कहा है कि पैसा पैसे को खींचता है।

80. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं = परतन्त्रता में दुःख ही दुःख हैं-जब से नौकरी की, एक मिनट के लिए अवकाश नहीं मिलता। न खाने-पीने का निश्चित समय है, न सोने-बैठने का। सच है-पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।

81. फटी न जिसके पाँव बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई = सुखी आद‌मी दूसरे के कष्टों का अनुमान नहीं लगा सकता-तुम क्या जानोगे कि आजकल मुझ गरीब पर क्या बीत रही है; क्योंकि फटी न जिसके पाँव बिवाई, वह क्या जाने परी पराई।

82. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = अयोग्य मनुष्य किसी कीमती वस्तु की कद्र नहीं करता-तुम इस कश्मीरी सेब को बुरा बताते हो। तुमने कभी खाया भी है? बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद।

83. बिन सेवा मेवा नहीं = परिश्रम से ही अच्छा फल मिलता है-कष्ट उठाकर काम करोगे तो ही फल अच्छा होगा क्योंकि बिन सेवा मेवा नहीं।

84. बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय = जो हो गया सो हो गया, आगे के लिए सँभल जाना चाहिए-बच्चो पिछली दुःखप्रद बातों की चर्चा छोड़ दो, अब तो भविष्य का सुन्दर कार्यक्रम बनाओ। क्योंकि गुरुजनों का कथन है कि बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय।

85. बूंद-बूंद सों घट भरे टपकत रीतो होय = थोड़ा-थोड़ा करने से बड़े बड़े काम हो जाते हैं; थोड़ी-थोड़ी हानि होते रहने से एक दिन सारा काम बिगड़ जाता है-प्रतिदिन नियमपूर्वक लिखते जाओ, एक न एक दिन तुम्हारा यह काव्य अवश्य पूरा हो जाएगा; क्योंकि बूंद-बूंद सों घट भरे टपकत रीतो होय। (2) इस तरह मजा उड़ाते रहोगे, तो यह छोटी-सी पूँजी कब तक चलेगी; क्या सुना नहीं कि बूंद-बूंद सों घट भरे टपकत रीतो होय।

86. बेकार से बेगार भली या खाली से बेगार भली = निकम्मा बैठने से कुछ करना ही अच्छा है-पुलिस के लोग मजदूरी तो बहुत कम देते हैं, पर रमेश यह सोचकर कार्य में जुट गया कि बेकार से बेगार भली।

87. बिल्ली के सराहे छीका नहीं टूटता = गालियों से श्रेष्ठ व्यक्ति की कोई हानि नहीं हो सकती-रंजन की गालियों से महात्मा जी का क्या बिगड़ा; क्योंकि बिल्ली के सराहे छीका नहीं टूटता।

88. भागते चोर की लँगोटी सही = जहाँ कुछ भी मिलने की आशा न हो वहाँ से कुछ थोड़ा-सा मिल जाना भी ठीक है-मामाजी ने कुछ भी सहायता नहीं की। जब चलने को हुआ, तो कुछ सादी कापियाँ देकर बोले, लो लिखने के काम आएँगी। मैंने यह सोचकर ले लीं कि भागते चोर की लँगोटी ही सही।

89. भैंस के आगे बीन बजाय, भैंस खड़ी पगुराय = मूखौं के आगे अच्छे-अच्छे उपदेश करना भूल है-मैं तुम्हें अपनी कविता सुनाकर क्या करूंगा; तुम्हारी समझ में तो आएगी नहीं। मेरा तुम्हें कविता सुनाना ठीक वैसा ही होगा, जैसे भैंस के आगे बीन बजाय, भैंस खड़ी पगुराय।

90. मुँह में राम बगल में छुरी = ऊपर से मित्रता, मन में शत्रुता-श्याम पर विश्वास करके राम उसके साथ घूमने गया था; किन्तु श्याम ने एकान्त में ले जाकर राम का काम तमाम कर दिया। उसे क्या पता था कि श्याम के मुँह में राम बगल में छुरी है।

91. माया को माया मिले कर कर लम्बे हाथ = धन धनी के पास ही जाता है-रामनरेश के पास यों ही धन क्या कम था ! अब तो उसकी लाटरी भी निकल आई है। क्यों न हो, माया को माया मिले कर कर लम्बे हाथ।

92. मेरे मन कछु और है, साईं के कछु और = मनुष्य नई-नई कल्पनाएँ करता है, और योजनाएँ बनाता है; परन्तु भगवान और ही ढंग से उसका भविष्य पलट देते हैं-नरेन्द्र सोचता था कि उसके बेटे का विवाह हो जाने पर उसके दिन अच्छे कटेंगे। पर बहू ऐसी मिली, कि घर में रोज महाभारत मचा रहता है। बेचारे ने क्या सोचा था, पर क्या हो गया। इसी को कहते हैं, मेरे मन कछु और है, साईं के कछु और।

93. रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना = उतना ही कमाना जितना खर्च के लिए काफी हो-अरे भाई मेरा हाल क्या पूछते हो? यहाँ तो बस रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना है।

94. रोपे पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय = बुरे कार्य का फल अच्छा कैसे हो सकता है-उपेन्द्र जवानी में तो बुरे कामों से बाज नहीं आया, अब बुढ़ापे में दुःख भोग रहा है। इसे ही कहते हैं-रोपे पेड़ बबूल के आम कहाँ से खाय। 95. लातों के भूत बातों से नहीं मानते = नीच लोग डण्डे के भय से ही काम करते हैं-रामप्रकाश जी, आप इस दुष्ट से व्यर्थ ही विनय प्रार्थना कर रहे हैं। यह इस प्रकार मानने वाला नहीं; क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

96. लोहे से लोहा कटता है = शत्रु को शत्रु से नष्ट करवाना चाहिए-तुम गणेश से पार न पाओगे। उससे तो बस नरेश को भिड़ा दो। अकल ठिकाने लग जाएगी; क्योंकि लोहे से लोहा कटता है।

97. विद्या होवे कण्ठ, रुपैया होवे गण्ठ = याद की हुई विद्या और अपने पास सुरक्षित रखा हुआ धन ही मनुष्य के काम आते हैं-विदेश जा रहे हो, विदेशी मुद्रा को उचित रूप से सुरक्षित रखो नहीं तो कष्ट उठाओगे। कहना याद रखना, विद्या होवे कण्ठ, रुपैया होवे गण्ठ।

98. विषरस भरा कनक घट जैसे = धूर्त लोग बातें तो मीठी करते हैं, परन्तु उनके मन में बुरा करने और ठगने की बात रहती है, अथवा शरीर से सुन्दर परन्तु काम खोटे-संदीप सिंह कितना सज्जन दिखाई देता था; किन्तु आज वह डाका डालते पकड़ा गया। इसे ही कहते हैं, विषरस भरा कनक घट जैसे।

99. विषस्य विषमौषधम् = लोहा लोहे को काटता है, कौटा कौटे से ही निकलत है-शुकदेव सज्जनता से मानने वाला नहीं। उसके साथ तो 'विषस्य विषमौषधम् का-सा ही बरताव करना चाहिए।

100. समय पाय तरुवर फलै केतिक सींचो नीर = कार्य का फल तत्काल नहीं मिलता, उसमें समुचित समय अवश्य लगता है - तब तुम्हें यथासमय फल अवश्य प्राप्त होगा। तरुवर फलै केतिक सींचो नीर। नहीं जब तुमने उचित प्रयास किया घबराते क्यों हो?

RBSE Class 10 Hindi व्याकरण लोकोक्तियाँ

लोकोक्तियाँ क्या है

101. साँच को आँच नहीं = सच्चे मनुष्य को भय नहीं होता-मैं पुलिस से क्यों डरूँ? मैंने कोई बुरा काम नहीं किया, सौच को आँच नहीं।

102. सिर मुँड़ाते ही ओले पड़े = काम के शुरू करते ही विघ्नों का आ पड़ना-धुरन्धर ने अभी अनाज का व्यापार आरम्भ ही किया था कि मुनीम कई हजार रुपये लेकर भाग गया। बेचारे को सिर मुँड़ाते ही ओले पड़े।

103. साँप भी मर जाए लाठी भी न टूटे = काम भी हो जाए और हानि भी न उठानी पड़े-भोगीराम को उसकी दुष्टता का ऐसा मजा चखाओ कि बदनामी भी न हो, और दण्ड भी मिल जाए। बस यही समझो कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

104. हाथ पर दही नहीं जमता = सभी कार्यों के होने में कुछ तो समय लगता ही है-पच्चीस फार्म वाला ग्रन्थ एक ही दिन में कैसे कम्पोज हो जाएगा। आपने सुना है, हाथ पर दही नहीं जमता।

105. हाथ कंगन को आरसी क्या = प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकत नहीं-हाथ में लेकर साड़ी देखिए, कपड़ा कितना मुलायम है। मेरी बात की सच्चाई आपको स्वयं मालूम हो जाएगी। हाथ कंगन को आरसी क्या?

106. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और = जो कहे कुछ और करे कुछ-नेताओं की बातों पर विश्वास मत करो क्योंकि हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और होते हैं।

107. होनहार विरवान के होत चिकने पात = बचपन में ही (भविष्य में) श्रेष्ठ बनने वाले व्यक्ति के गुण दिखाई दे जाते हैं-देशबन्धु चितरंजनदास जी को बाल्यावस्था में ही देखकर किसी ने कहा था कि यह बालक बड़ा होकर देश का महान् पुरुष बनेगा। क्यों न हो, होनहार विरवान के होत चिकने पात।

(ख)

108. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता = संगठन के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती-जब तक तुम सब मिलकर काम नहीं करोगे, काम समय पर समाप्त नहीं होगा क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

109. अन्धे के हाथ बटेर लगना = किसी को बिना परिश्रम के कोई अच्छी वस्तु प्राप्त हो जाना-तुम सतीश की गाय की प्रशंसा तो करते हो, पर क्या यह भी जानते हो कि वह अन्धे के हाथ बटेर लगी है। उसके मामा गाय को पालने में असमर्थ होने के कारण उसे सौंप गए हैं।

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110. अटका बनिया देय उधार = दबाव पड़ने पर ही कई व्यक्ति काम करते हैं-भूपेन्द्र तुम्हारी बात अवश्य मानेगा। उसका तुमसे वास्ता तो पड़ना है। इसी को कहते हैं, अटका बनिया देय उधार।

111. अघेला न दे अधेली दे = जब कोई यों तो कुछ न दे, पर फँसने पर बहुत अधिक दे दे-सुरेन्द्र पहले तो एक पैसा भी खर्च करने को तैयार नहीं था, पर जब वह पकड़ा गया तो हजारों खर्च करने पर तैयार हो गया, इसी को कहते हैं अधेला न दे अघेली दे।

112. अन्त भला सो भला = जिसका परिणाम अच्छा है वह सर्वोत्तम है-परोपकार का फल अच्छा ही होता है; क्योंकि श्रेष्ठों का कथन है, अन्त भला सो भला।

113. अन्धा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को दे = जो मनुष्य स्वार्थी होता है वह अपने ही लोगों का पक्षपात करता है-रामप्रताप जैसे लोगों के लिए ही कहा गया है कि अन्धा बाँटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को दे। क्योंकि जब से वे जिले के मजिस्ट्रेट हुए हैं, उन्होंने अपनों को ही नौकरियाँ दिलाई हैं।

114. अपना पैसा खोटा तो परखने वाले का क्या दोष = अपना ही आदमी जब बुरा हो तो आलोचना-प्रत्यालोचना करने वालों का क्या दोष-भई, बहू को दोष क्यों देते हो? हमारा बेटा ही जब हमारा ख्याल नहीं रखता तो इसमें बेचारी बहू का क्या दोष? अपना पैसा खोटा तो परखने वालों का क्या दोष।

115. अपना हाथ जगन्नाथ या अपनी करनी पार उतरनी = अपने पुरुषार्थ से ही मनुष्य को सफनता प्राप्त होती है-तुम जब पढ़ोगे, तभी परीक्षा में उत्तीर्ण हो सकोगे। सुना नहीं कि अपनी करनी पार उतरनी।

116. आधा तीतर आधा बटेर = स्थिति का डावांडोल होना बेचारे नरेन्द्र की तो कार्यालय में आधा तीतर आधा बटेर की स्थिति है। वह क्लर्की तो करता ही है, चपरासी का भी काम उसी को करना पड़ता है।

117. आप काज महा काज = अपना कार्य ही अधिक महत्त्वपूर्ण होता है-मोहन को गणित बाद में सिखाना, पहले अपना पाल याद कर लो। तुमको सोचना चाहिए कि आप काज यहा काज।

118. आप मरे जग परलै = अपना नाश होने पर संसार को समाप्त मानवा-अरे भाई, बाढ़ में सब कुछ दूब जाने से मुझे तो ऐसा लगता है, मानो सारा संसार ही प्रलय की चपेट में आ गया है। किसी ने सच कहा है-आप मरे जग परतै।

119. आ बैल मुझे मार = जान-बूझकर विपत्ति मोल लेना-तुम रात के समय बातें में क्यों गए? तुम्हें पता होना चाहिए, कि थाने में क्या होता है। तुम्हारा थाने में जाना जैसा रहा जैसे आ बैल मुझे मार।

120. आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास = जब कोई किसी अच्छे कार्य के लिए कहीं जाता है, किन्तु व्यर्थ के कामों में फँस जाता है आए थे कर्मचारियों को सुधारने पर बाबू साहब स्वयं उनके फन्दे में फँस गए। इसी को कहते हैं-आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास।

121. आगे नाथ न पीछे पगहा = पूर्ण स्वतन्त्र धीरेन्द्र के साथ क्यों इधर-उधर घूमते हो? वह तो पूर्ण स्वच्छन्द है। उसके तो आगे नाथ न पीछे पगहा।

122. तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले = जब खर्चे कोई और करे पर जलन किसी और को होती हो-रामदीन तो मोहन की पढ़ाई में अपनी जेब से पैसे खर्च कर रहा है पर बुरा लग रहा है उसके चचेरे भाई की। इसी को कहते हैं-तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले।

123. तीन लोक से मथुरा न्यारी = जब कोई वस्तु या व्यक्ति निराले ढंग का होता है। गणेश का रंग-ढंग सबसे निराला है। ऐसे लोगों के लिए कहते हैं, तीन लोक।से मथुरा न्यारी।

124. तुरत दान महा कल्याण = जो काम करना हो, उसे शीघ्र कर डालना चाहिए इसी में भलाई होती है-सेठजी, जो सहायता करनी हो, अभी कर दीजिए, क्योंकि तुरत दान महा कल्याण।

125. तबेले की बला बन्दर के सिर = अपराध तो कोई और करे, पर फैसे कोई और-वाह, शिकायत तो प्रिंसिपल के आगे मोहन ने की, और दोष मेरे सिर मढ़ा जा रहा है। इसी को कहते हैं-तबेले की बला बन्दर के सिर।

126. तीन में न तेरह में, मृदंग बजाये डेरे में = जो मनुष्य किसी ओर नहीं होता, वह निश्चिन्त रहता है-रामदास बड़े मजे में है। उसका स्वभाव ऐसा है, कि वह कभी इधर की उधर नहीं लगाता उसके स्वभाव के सम्बन्ध में तो यही कहना पड़ता है कि वह तीन में न तेरह में मृदंग बजाये डेरे में।

127. दिन दूनी रात चौगुनी होना = हर प्रकार से उन्नति होना-स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

128. दीवारों के भी कान होते हैं = गुप्त मन्त्रणा सदा एकान्त में ही करनी चाहिए-अरे भाई, धीरे बोलो, कोई सुन लेगा, क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं।

129. दूध का दूध पानी का पानी = वास्तविक और सच्चा न्याय करना-राधा को कलंकित करने के लिए, किसी ने क्या नहीं किया? परन्तु आखिर सत्य प्रकट होकर ही रहा। राधा निष्कलंक थी, और निष्कलंक ही मानी गई। इसी को कहते हैं-दूध का दूध पानी का पानी।

130. द्रौपदी का चीर होना = अन्त न मिलना-आखिर, तुम कब आओगे? तुम्हारे आने की तारीख तो द्रौपदी का चीर होती जा रही है।

131. दो नावों पर पैर रखना = दोनों पक्षों में रहना-भई, या तो कांग्रेस की मदद करो, या कम्युनिस्टों की। दो नावों पर पैर रखना अच्छा नहीं होता।

132. दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते = मुफ्त की चीज में अवगुण नहीं देखे जाते-कौन-सा तुमने इस ट्रांजिस्टर को मोल खरीदा है, जो इसकी आवाज के सम्बन्ध में छिद्रान्वेषण कर रहे हो? अरे भाई दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते।

133. देखें ऊँट किस करवट बैठता है = देखना है, परिणाम क्या निकलता है-दिनेश को सबक सिखाने के लिए चाल तो चल दी है फिर भी पता नहीं ऊंट किस करवट बैठ जाए।

134. नया नौ दिन पुराना सौ दिन = पुरानी वस्तु ही स्थिर रहती है, नई नहीं-तुम्हारा नया कोट एक साल में फट गया; पर मेरे पुराने कोट में अभी दाग भी नहीं पड़ा। इसी को कहते हैं-नया नौ दिन पुराना सौ दिन।

135. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी = बिना कारण काम न होना-विमलेश को स्कूल से निकाल दो, सब झंझट ही खत्म हो जाएगा। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

136. नाम बड़े पर दर्शन छोटे = जब प्रसिद्धि तो अधिक हो, किन्तु तत्त्व कुछ भी न हो-सुरेश यह समझकर रामपाल के पास गया था कि वे बड़े दानी हैं और उसकी सहायता अवश्य करेंगे। पर सहायता करने की कौन कहे, उन्होंने तो उससे बात भी न की। राम! राम ! नाम बड़े पर दर्शन छोटे।

137. नौ सौ चूहे खाय के बिल्ली बैठी तपके = जब कोई अधिक पाप करने के पश्चात् पुण्य का दिखावा करता है-जीवन-भर तो लोगों को सताता रहा, अब भजन-भाव में लगा है। इसीको तो कहते हैं, नौ सौ चूहे खाय के बिल्ली बैठी तपके।

138. न सावन सूखा न भादों हरा = सर्वदा एक-सी स्थिति में रहना-भाई, मेरा हाल क्या पूछते हो? वही जो पहले था, अब भी है। न सावन सूखा न भादों हरा।

139. निन्यानवे के फेर में पड़ना = अधिक लालच करना - मातादीन को आजकल किसी से भी मिलने-जुलने का अवकाश नहीं। आजकल वे निन्यानवे के फेर में पड़े हैं।

140. पाँचों उँगलियाँ घी में होना = अत्यधिक लाभ होना-रामदीन का भाई जब से डिप्टी कलक्टर हुआ है, उसकी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं।

141. पेट में दाढ़ी होना = अत्यधिक चालाक होना-रामनरेश बालक तो है पर उसके पेट में दाढ़ी है।

142. पढ़े फारसी बेचें तेल, यह देखो कुदरत का खेल = जब कोई अधिक शिक्षित व्यक्ति भाग्यवश बेकार-सा रहता है-राजेश पी-एच० डी० है, पर बेचारा दुर्भाग्य के कारण मिल में क्लर्की करता है। इसको कहते हैं पढ़े फारसी बेचें तेल ।

143. प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं = अधिकार और ऐश्वर्य होने पर किसे गर्व नहीं होता-सुधीन्द्र को तहसीलदारी क्या मिली उसका मिजाज ही बदल गया। अब तो किसी से सीधे मुँह बात ही नहीं करता। अरे भाई प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं।

144. सारी लंका ढा देना = सब कुछ नष्ट कर देना-प्रकृति ने यमन में भूकम्प से ऐसा महानाश किया मानो सारी लंका ही ढादी हो

145. हरिश्चन्द्र होना = बहुत बड़ा सत्यवादी बनना-तुम तो बड़े सत्यवादी बने हो मानो सत्य हरिश्चन्द्र हो गये हो।

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