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Role of Women in Nation Building Essay in Hindi
Rashtra nirman me nari ka yogdan Essay in Hindi
राष्ट्र-निर्माण में नारी का योगदान
इस देश में नारी को देवी, श्रद्धा, अबला जैसे सम्बोधनों से सम्बोधित करने की परम्परा अत्यन्त प्राचीनकाल से चली आ रही है। नारी के साथ इस प्रकार के सम्बोधन या विशेषण जोड़कर उसे या तो हमने पूजा की चीज बना दिया, या फिर अबला के रूप में मात्र भोग्या और चल सम्पत्ति समझ लिया। उसका एक रूप शक्ति का भी है, इसका स्मरण हम औपचारिकतावश कभी-कभी ही किया करते हैं, जबकि आवश्यकता इसी बात के उजागरण की सर्वाधिक और हमेशा रही है। उसे हम अपने पुरुष-प्रधान समाज की हीन मानसिकता ही कह सकते हैं, अन्य कुछ नहीं। इस हीनता के परिणामस्वरूप ही हमारे सामने अक्सर इस प्रकार के प्रश्न उठते या उठाए जाते रहे हैं कि नारी का समाज के विकास या राष्ट्र के निर्माण में क्या योगदान है अथवा हो सकता है? इस प्रकार के प्रश्न उठाते समय पता नहीं क्यों हम अपने अस्तित्व के कारण की बात भूल जाते हैं। भूल जाते हैं कि नारी मातृ-सत्ता का नाम है, जो हमें जन्म देकर पालती-पोसती और इस योग्य बनाती है कि हम जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकें। उसी के व्यक्तित्व पर नुक्ताचीनी करने वाले प्रश्न भी उठा सकें।
मनुष्य को किसी विशेष भू-भाग, सांस्कृतिक क्षेत्र और राष्ट्रीयता ने भावनात्मक सन्दर्भ में जन्म देकर उसे अपने पाँव पर खड़े करना क्या समाज-निर्माण विकास और राष्ट्र निर्माण का अंगीभूत बल्कि मूलभूत कार्य नहीं है? बहिन के रूप में पुरुष या मनुष्य मात्र को अपने स्नेहिल छाया से अभिभूत किए रहना कम समाज-राष्ट्र-सेवा या निर्माण कार्य है? पत्नी के रूप में समाज को पितृ ऋण से मुक्त कराना, घर-गृहस्थी की देखभाल करना, समाज और राष्ट्र के निर्माण करने वाले अन्य कार्यों से क्या कम महत्त्वपूर्ण है? निश्चय ही नहीं है। फिर आज तो नारी पुरुष के समान ही सक्षम होकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा और कार्य क्षमता का सुघड़ परिचय दे रही है। वह हिमालय की उन्नत चोटियों पर भी चढ़ रही है और उपग्रहों के माध्यम से अन्तरिक्ष की यात्रा कर मानव विकास के लिए विविध प्रकार के अनुसन्धानों में भी दत्तचित्त है। भारत ही नहीं, विश्व स्तर का ऐसा कौन सा क्षेत्र है, जहाँ आज नारी के सुदृढ़ कदम नहीं पड़ रहे? इसके अतिरिक्त समाज या राष्ट्र निर्माण में और कौन-सा योगदान होता है, जिसकी अपेक्षा हम नारी से रखते हुए इस प्रकार के प्रश्न उछालते रहते हैं?
सारे विश्व की बात जाने दीजिए। अपने देश भारत के ही निर्माण-विकास के इतिहास की सुदूर तक की परम्परा पर दृष्टिपात कीजिए। कोई भी ऐसा युग या कालखण्ड नहीं मिलेगा, जहाँ नारी का नव निर्माण में सहयोग उपलब्ध न हुआ हो। वैदिक काल में पवित्र वैदिक ऋचाओं की द्रष्टा और आम जन को भी उनका साक्षात्कार कराने वाली अनेक नारियाँ हुई हैं। वैदिक काल की समुन्नत सभ्यता के विकास में, आर्यावर्त जैसे महान् राष्ट्र के निर्माण की परिकल्पना में निश्चय ही गार्गी, मैत्रेयी, अरुन्धती जैसी महान् नारियों का विशिष्ट योगदान रहा है। इस तथ्य से कौन इनकार कर सकता है। उस समय तप और मानव विकास के कार्यों में निरत आश्रम-सभ्यता (जिसे आर्य सभ्यता के निर्माण और विकास का मूलभूत कारण स्वीकारा जाता है) का संचालन और व्यवस्था उपर्युक्त और उन्हीं जैसी अनेक नारियों ने ही तो की थी। तभी तो आज भी उन्हें आदरणीया और प्रातः स्मरणीया माना जाता है।
वैदिक काल के बाद भी जिस भारतीय राष्ट्र और सभ्यता के निर्माण-विकास का कार्य चलता रहा, उसमें भी नारियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, यद्यपि अधिकांश नाम अब विलुप्त हो चुके हैं। मानव-हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाली वे नारियाँ निश्चय ही महान् थीं। पौराणिक काल में भी अनेक नाम सुनने को मिलते हैं। महाराज दशरथ के युद्ध के अवसर पर उनके सारथि का काम करने वाली कैकेयी द्वारा रथ-चक्र की कील निकल जाने पर अपनी अँगुली को कील के स्थान पर ठोंक उन्हें रण से विमुख न होने देना क्या राष्ट्र-रक्षा, सेवा और निर्माण नहीं है? मध्यकाल में भी ऐसी नारियों की कमी नहीं रही जिन्होंने हर प्रकार से अपने-आपको राष्ट्र और मानवता के लिए अर्पित कर दिया था। मध्यकाल की नारी को पुरुष ने कई कारणों से यद्यपि मात्र भोग्या बनाकर रख दिया था, फिर भी उनकी ऊर्जस्विता अनेक बार प्रकट होती रही। रज़िया सुल्तान, बीबी चाँद, जीजाबाई, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। यह क्रम निरन्तर आगे बढ़ता जाता है। हमारे स्वतन्त्रता-संघर्ष के दिनों में भी नारियाँ-राजकुमारी अमृतकौर, सरोजिनी नायडू, अरुणा आसफ अली, विजयलक्ष्मी पण्डित, आजाद हिंद फौज में एक पूरी नारी-पल्टन का नेतृत्व करने वाली कैप्टन लक्ष्मी तथा क्रान्तिकारियों को सहयोग देने वाली नारियों की एक लम्बी सूची प्रस्तुत की जा सकती है; जिन्होंने राष्ट्र-निर्माण, विकास और रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। इस प्रकार हमारा कहने का अभिप्राय यह है कि कम-से-कम इस देश की नारी ने हमेशा राष्ट्र-निर्माण और रक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
आज का भारत नव-निर्माण और चहुँमुखी प्रगतियों के जिस दौर से गुजर रहा है, निश्चय ही भारतीय नारी उन सबमें महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही है। काम-काज की दृष्टि से घर-द्वार की दहलीज लाँघकर कभी नारी का क्षेत्र शिक्षिका अथवा नर्स बनकर जाने तक ही सीमित था; पर आज वह हर क्षेत्र में सक्रिय है। वह घर-परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व निर्वाह के प्रति भी निश्चय ही सजग है। यह सखेद स्वीकार करना पड़ता है कि देश का तथाकथित प्रगतिशील पुरुष-समाज अभी तक नारी के प्रति अपना परम्परागत दृष्टिकोण पूर्णतया बदल नहीं पाया। कहीं-कहीं तो वह आज भी मध्ययुगीन मानसिकता से ग्रस्त हो उसे मात्र भोग्या ही मान रहा है। अवसर पाकर उसकी कोमलता से अनुचित लाभ उठाने की दिशा में सचेष्ट रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि अपनी इस मानसिकता से छुटकारा पाकर वह नारी को निर्भय और मुक्तभाव से काम करने के अवसर प्रदान करे। निश्चय ही वह निर्माणात्मक कार्यों में पुरुष से भी अधिक सफल प्रमाणित हो सकती है।
यह एक प्राकृतिक तथ्य है कि कोमल-कान्त होने के साथ-साथ अपने स्वभाव में नारी अधिक कर्मठ और सहनशील हुआ करती है। उसमें धैर्य भी अधिक रहता है और वस्तुओं-बातों को समझने-बूझने की क्षमता भी अधिक होती है। इसका जितना भी अधिक सद्भावनापूर्ण सदुपयोग हम विभिन्न कार्य-क्षेत्रों में करने का प्रयत्न करेंगे, उतनी ही अधिक वह राष्ट्र-निर्माण के कार्यों में सहायक सिद्ध होगी, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षा आदि का अधिक से अधिक विकास कर, नारी-जाति में व्याप्त अशिक्षा और आत्मविश्वास के अभाव को दूर करके उसे मुक्त आकाश दिया जाए। उसकी क्षमताओं को उजागर किया जाए। पुरुष-समाज की नारी के प्रति समस्त हीनताओं का परिहार हो। तब कोई कारण नहीं कि सम्मान, स्नेह और आत्मविश्वास से भरी नारी राष्ट्र-निर्माण में पुरुष-समाज से भी अधिक सहायक सिद्ध न हो। वह हर प्रकार से समर्थ है, यह अच्छी तरह से प्रमाणित हो चुका है।
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