समय का सदुपयोग पर निबंध | Samay Ka Sadupyog Nibandh

Dr. Mulla Adam Ali
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Value of Time Essay in Hindi

Samay Ka Sadupyog Nibandh

Samay Ka Sadupyog Essay in Hindi

समय का सदुपयोग

समय क्या है? उसका सदुपयोग क्यों आवश्यक है? सोचने की बात है! समय का वास्तविक अर्थ है-जीवन के उपलब्ध क्षण। समय अनवरत गतिशील है। समय की यह गतिशीलता ही जीवन है। जड़ घड़ी की टिक टिक हमें यही कुछ कहती है। उसकी निरन्तर सरकती हुई सुइयाँ यह चेतावनी दे रही हैं- "समय चला जा रहा है, कुछ कर लो, कुछ कर लो।" जो क्षण एक बार चला गया, वह कभी लौटकर नहीं आता। देखते या समय की प्रतीक्षा करते रहने से जीवन यों ही बीत जाता है। क्योंकि समय कभी आया नहीं करता, बल्कि मात्र जाया करता है।

एक बार एक व्यक्ति ने महात्मा गांधी से पूछा- "जीवन में ऊँचा उठने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले क्या चाहिए? शिक्षा, शक्ति या धन?"

गांधीजी ने उत्तर दिया- "ये वस्तुएँ जीवन में उठने में सहायक अवश्य होती हैं, किन्तु मेरे विचार में एक वस्तु का महत्त्व सबसे अधिक है, वह है-समय की परख। प्रत्येक वस्तु का कोई समय होता है, उसे करने या न करने का। यदि आपने समय को परखने की कला सीख ली है, तो पुनः आपको किसी प्रसन्नता या सफलता की खोज में मारे-मारे भटकने की आवश्यकता नहीं, वह स्वयं आकर आपका द्वार खटखटाएगी।"

गांधीजी के इस कथन से दो निष्कर्ष निकलते हैं-प्रथम यह है कि हमें समय का मूल्य और महत्त्व समझना चाहिए। दूसरे यह है कि समय के अनुसार काम करना चाहिए। जीवन की यही कुंजी है। कहावत भी है कि एक क्षण का पिछड़ा, सैकड़ों कोस पीछे रह जाता है। जो लोग निरन्तर असफल होते हैं, रहा करते हैं; प्रायः प्रतिकूल परिस्थितियों को बुरा-भला कहने लगते हैं। वस्तुतः बड़ी असफलता का कारण दुर्भाग्य नहीं होता, अपितु समय को गलत समझने, उसके तेवर को ठीक प्रकार न पहचान पाने की भूल होती है। यूनान के सबसे बड़े दार्शनिक अरस्तू ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा-"प्रत्येक व्यक्ति को उचित समय पर, उचित व्यक्ति से, उचित मात्रा में, उचित उद्देश्य के लिए, उचित ढंग से व्यवहार करना चाहिए।"

वस्तुतः एक-एक क्षण से प्रत्येक प्राणी का सम्बन्ध रहता है। एक-एक पल के संयोग से ही जीवन बनता है, एक-एक पल के बीतने के साथ-साथ जीवन घटता भी जाता है। शेक्सपीयर का कथन है- "There is a tide of time." जो व्यक्ति उस क्षण विशेष से चूक जाता है, कभी सफल नहीं हो पाता। किन्तु प्रत्येक व्यक्ति उसके महत्त्व को नहीं समझता। अधिकतर व्यक्ति सोचते हैं कि 'कोई अच्छा समय आएगा, तो काम करेंगे।' इसी उधेड़-बुन में वे जीवन के अनेक अमूल्य क्षण खो देते हैं। वे दिनों, मासों और वर्षों को किसी शुभ क्षण की प्रतीक्षा में बिता देते हैं; किन्तु ऐसा समय किसी के जीवन में कभी नहीं आता, जब बिना हाथ हिलाए संसार की बहुत बड़ी सम्पत्ति छप्पर फाड़कर उसके हाथ लग जाए। समय को तो अपनी परख, अपनी प्रबल इच्छा-शक्ति से लाना और परिश्रम से शुभ बनाना पड़ता है। वास्तव में पुरुष जिस समय को चाहे शुभ क्षण बना सकता है। आवश्यकता है समय की परख करके उचित परिश्रम करने की।

जो व्यक्ति आलस्यवश समय को नष्ट कर देते हैं, समय उन्हें नष्ट कर देता है-इस महामन्त्र को सुन-समझकर भी हम भारतवासी समय के मूल्य को नहीं समझते। प्रायः प्रत्येक कार्य देरी से करते हैं। कहीं किसी ने आपत्ति की तो उत्तर देते हैं-"यह हिन्दुस्तानी समय है।" परन्तु यह बात भारत और सहज मानवीय गौरव के प्रतिकूल है। समय पर काम करने का गुण हमें पश्चिम से सीखना चाहिए।

हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्रप्रसाद ने अपने इंग्लैण्ड के संस्मरणों में लिखा है-

"वहाँ के लोग समय का मूल्य खूब जानते हैं। इसलिए जो काम हो, उसे इतनी जल्दी करते हैं कि मानो सभी दौड़ते ही दीखते हैं। सड़कों पर आप बहुत कम लोगों को, जो स्वस्थ हैं, उस आराम की चाल से चलते हुए देखेंगे, जिस चाल से हमारे नवयुवक भी प्रायः चला करते हैं; और स्त्रियाँ तो धीरे-धीरे चलना जानती ही नहीं। रेल के स्टेशन पर जाइए, आपको टिकट इतनी जल्दी मिलेगा कि आपके मुँह से स्टेशन का नाम निकला कि टिकट सामने मौजूद है। समय बचाने के ख्याल से टिकट देने के लिए यन्त्र भी ऐसे ही हैं, जिनसे काम बहुत जल्दी निकलता है। जो समय जिस काम के लिए है, उसको ठीक उसी समय वे करेंगे। यदि आपने किसी से मिलने के लिए समय रखा है, तो विश्वास रखिए कि वह और घड़ी के कौटे एक साथ ही अपने-अपने निर्धारित स्थान पर पहुँच जाएँगे। आप काम के समय किसी से जाकर गप्पें नहीं कर सकते।"

हमारा भी समय के प्रति यही आदर्श दृष्टिकोण होना चाहिए। समय की पाबन्दी और सदुपयोग मानव-चरित्र की एक विशेषता है। प्रायः सभी महापुरुष समय के पाबन्द होते हैं। इसके विपरीत समय में शिथिलता, चरित्र की बहुत बड़ी दुर्बलता है। विलम्ब से पहुँचने में न केवल अपना समय और कार्य नष्ट होता है, अपितु दूसरों का भी। मान लीजिए एक नेता निश्चित समय से एक घण्टा लेट पहुँचता है, उसका भाषण सुनने के लिए सभा में पाँच सहस्र व्यक्ति समय पर आए, तो पाँच सहस्र घण्टे व्यर्थ चले गए। कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने उचित ही कहा है-

समय जगाता है हम सबको, झटपट जग जाना ही होगा।

देख विश्व-सिद्धान्त, कार्य में निर्भय लग जाना ही होगा ॥

अतः सफलता के लिए हमें आज से ही समय के प्रत्येक पल के सदुपयोग की आदत डालनी शुरू कर देनी चाहिए। तभी हम अपने लक्ष्य को पा सकेंगे। जीवन का क्या, वह तो किसी भी क्षण धोखा दे सकता है। जीवन से धोखा खाने से पहले हमें वह सब कर लेना है, जो हम चाहते हैं। तभी मुक्ति मिल सकती है, अन्यथा नहीं। इच्छाएँ लेकर मरना, बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में पड़े रहना हुआ करता है।

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