समुद्र के विषय पर हिंदी कविताएं, हिन्दी कविता कोश समुद्र, hindi poem on samudra, poem ocean in Hindi, Sea Hindi Poetry Collection.
समुद्र : हिन्दी की चार कविताएँ
समुद्र कविता संग्रह : समुद्र के विषय पर बेहतरीन हिंदी की चार कविताएं, डॉ. टी. महादेव राव की कविताएं, हिन्दी कविता संग्रह समुद्र, hindi kavita kosh, poetry collection, poetry in hindi, kavita sanghrah in Hindi.
समुद्र : चार कवितायें
एक
समुद्र !
तुम्हारी लहरों का उद्घोष
नई ऊँचाइयाँ तलाशने की
देता है प्रेरणा
पर क्यों कर आज आदमी
केवल तुम्हारी गहराइयों सी
पतनावस्था में पहुँच रहा है
कहो तुम्हीं
कि क्योंकर वह तुम सा
नहीं रह पा रहा निश्छल, निष्कपट और गहन
तुम्हारी अठखेलियाँ करती
लहरों की भाषा
निरंतर तट पार करने की
अदम्य अलभ्य असंभव आशा
क्यों कर नहीं भरता हम में
नई शक्ति नई ऊर्जा ?
ताकि हम खींचने की बजाय
किसी और की टांगें
अपने लक्ष्य की ओर
बढ़े निरंतर
दो
समुद्र !
लोग तुम्हारे नमकीन
खारे पानी को बताते हैं
तुम्हारा सबसे बड़ा अवगुण
पर वह तुम्हारे
विद्रोही तेवर का करता है प्रदर्शन
यदि तुम खारे न होते
सच्चाई यह है सारे मानव
तुम्हें पी गये होते
फिर तुम्हारी लहरों का उद्घोष
तुम्हारी संवेदनशील गहराई
त्याग और निस्वार्थ भावना
सब कुछ लौटाने की प्रवृत्ति
इन सबसे बढ़कर एक
अर्ध मौन साथी की कमी
पता नहीं हमें क्या कर जाती
तुम्हारा विरोध
कि न पी सके कोई तुम्हारा पानी
तुमने ओढ़ लिया है
विद्रोही कवच नमक का
तीन
प्रातः के समुद्र !
तुम्हारी स्वर्णिम आभा
धुंधलाते प्रकाश में भी
भर देता है नया जोश
तुम कितने निस्वार्थी निष्कामी
रखते नहीं अपने लिये कुछ भी
सब कुछ लौटा देते हो
हवा तक को पास नहीं रखते
कुछ शीतलता के साथ
कर देते हो वापस
सूर्यरश्मि को भी लौटा देते हो
कुछ कलात्मक प्राकृतिकता के साथ
समुद्र ! तुम्हारी निस्वार्थ भावना
सभी के लिये त्याग की कामना
तुम्हारे तट पर बसे
हम मानवों के लिये
क्या दिशा निर्देश नहीं ?
चार
चांदनी में नहाते समुद्र !
तुम्हारी उत्तुंग लहरों का स्वक
देता है नई भाषा को जन्म
जो समझ सकता है हर कोई
चाहे वह किसी भी भाषा का हो
या कुछ भी हो उसका धर्म
कोई किसी प्रकार अंतर नहीं करता
तुम्हारी मौन भाषा
या उद्घोषित स्वरों को
अभिव्यक्त करने में
क्यों ने हम मानव भी
तुम्हारी भाषा और अभिव्यक्ति अपनायें
ताकि धर्म-भाषा-प्रान्त के
झगड़े मिटायें
समुद्र ! तुम अमानवीय होकर भी
विकसित करते हो
मानवीय संवेदना
समुद्र ! तुम कितना कुछ सिखा सकते हो
बशर्ते सीखने की मंशा हो
- डॉ. टी. महादेव राव
Related; पराजय बेला : रितु वर्मा की कविता