फ्रायड का स्वप्न सिद्धांत 'अश्क' के उपन्यासों के संदर्भ में

Dr. Mulla Adam Ali
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Austrian neurologist Sigmund Freud theory Principles of Dreams in the context of the novels of Upendranath Ashk. Hindi Novels.

Freud's Principles of Dreams theory in the context of the novels of 'Ashk'

Freud's Principles of Dreams theory

Sigmund Freud Theory Principles of Dreams and Upendranath Ashk Novels

फ्रायड का स्वप्न सिद्धांत 'अश्क' के उपन्यासों के संदर्भ में

प्रस्तावना मनोविज्ञान शास्त्र भारत के लिए नया विषय नहीं है। हमारे पूर्वजों ने उस विषय पर पहले ही विचार किया है। वे मानस शास्त्र को जीवन का तत्व ज्ञान कहते हैं। उस तत्वज्ञान में मन संबंधी अर्थात चेतन मन और अति चेतन मन का अध्ययन किया गया। भगवत् गीता में आत्मा-परमात्मा, ब्रह्म, आत्म ज्ञान आदि संबोधन दिये हैं। शंकराचार्य, परमहंस और स्वामी विवेकानंद आदि महर्षियों ने 'आत्मा', 'परब्रह्म' आदि का संबंध मन यानी आत्मा से ही लगाया। अस्तु प्राचीन भाव में मनोविज्ञान को दर्शन शास्त्र का तत्व ज्ञान के परिप्रेक्ष्य में विवेचित किया जाता है।

मानव जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना है। मनोविज्ञान हमें मानसिक प्रक्रियाओं चरित्र, आचरण आदि समझने का ज्ञान देता है जिससे हम समस्याओं का समाधान पा सकते हैं और संसार की वास्तविकता और यथार्थता को हम समझौते के साथ स्वीकार कर जीवन को जीने योग्य बनाते हैं। फ्रॉयड के मत से कोई क्रिया जितनी ही अर्थवती होती है उसका उतने ही अधिक जटिल यथार्थ से संबंध होता है।

मानव की दो मूल प्रेरणाएँ हैं। आत्म रक्षा और आत्मविस्तार। मनुष्य का चैतन्य उन्हीं दो प्रेरणाओं से संचालित होता है। कला, धर्म और दर्शन मानव के आध्यात्मिक जगत की उद्भावनाएँ है। प्रखर बुद्धि और तर्क शक्ति विज्ञान को जन्म देती है। अध्यात्म शास्त्र सत्य को जिज्ञासा हेतु मनुष्य, प्रकृति और ब्रह्म तीनों में सत्य रूप का निरूपण की बचा करता है फिर भी मनोविज्ञान अध्यात्मशास्त्र अपूर्ण है।

फ्रॉयड के अनुसार कला दमित वासना का उदात्तीकरण है। शैशवकाल में ही हमारी कामवासना को नैतिक अहं दमन करने लगता है। और तब वह हमारे अवचेतन मन में मानसिक ग्रंथि का रूप धारण कर लेती है। स्वप्न के छायाचित्रों में यह मानसिक ग्रंथियाँ प्रतीकों के रूप में प्रकट होती हैं। इसी तरह कलाकार की रचना में यहीं अतृप्त कामवासना भावचित्रों का रूप धारण कर लेती है।

आधुनिक साहित्य किसी न किसी बिन्दु पर फ्रॉयडीय विचारधारा से ही प्रभावित है। आधुनिक कथा साहित्य फ्रॉयड के मनोविश्लेषणवाद से विशेष प्रभावित है क्योंकि फ्रॉयड ने व्यक्ति और व्यक्ति के मन को स्पष्ट करके दोनों को महत्व प्रदान किया है।

फ्रॉयड के अनुसार मानसिक संघर्ष और ऊहापोह उसके दमित वासना के कारण ही होता है, उसका मूल कारण काम प्रवृति है। जितनी भी विकृतियाँ मनुष्य के स्वभाव में आती हैं, उसका मूल कारण प्रेम समस्या या सेक्स है।

उपेन्द्रनाथ अश्क मार्क्स और फ्रॉयड दोनों से प्रभावित हैं। उन्होंने उपन्यासों में मार्क्स की आर्थिकता और फ्रॉयड की कामकुंठा दोनों को प्रदर्शित किया है।. उपेन्द्रनाथ अश्क के सभी पात्र आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक एवं कामकुंठा से त्रस्त हैं।

फ्रॉयड पहला व्यक्ति है जिसने स्वप्न का संबंध मन से जोड़ा और अतृप्त यौन इच्छाओं को स्वप्न का कारण बताया। साहित्य में स्वप्नों का महत्व बहुत अधिक है। स्वप्न के कारण उपन्यास के कथ्य और शिल्प दोनों में ही परिवर्तन आया है।

फ्रॉयड ने स्वप्न प्रक्रिया का विश्लेषण कर इसे स्पष्ट किया है कि स्वप्न का उद्देश्य है दमित इच्छाओं की प्रतीकात्मक और भ्रमात्मक रूप में परिपूर्ति। निद्रा दशा में मन पर यथार्थ तत्व का प्रभुत्व कुछ शिथिल पड़ जाता है। अतः दमित इच्छा अवचेतन से चेतन में प्रवेश करने में सफल हो जाती है।

फ्रॉयड ने स्वप्नों की व्याख्या प्रस्तुत करते हुये मानव स्वभाव अथवा मनुष्य की प्रवृत्तियों के साथ स्वप्न का संबंध बताया है। उनके अनुसार स्वप्न निरर्थक तथा अनुपयोगी नहीं वरन् सार्थक तथा उपभोगी होते हैं। उन्होंने स्वप्न को इच्छा पूर्ति माना है इसलिए उनके स्वप्न शिद्धांत को इच्छापूर्ति का सिद्धांत भी कहा जाता है।

'अश्क' हिंदी के जाने माने उपन्यासकार है। उनके अनेक उपन्यासों में स्वप्न आया है। 'गिरती दीवारें' अश्क की बहुचर्चित उपन्यास है। उपन्यास का नायक मध्यवर्ग का युवक चेतन है। जो अपने जीवन का एक लक्ष्य बना पाने में असमर्थ है। वह अपने लक्ष्य तक पहुँच नहीं पाता। वह कथाकार, कवि, उपन्यासकार, संगीतज्ञ, चित्रकार, अभिनेता आदि सभी कुछ बनना चाहता है, लेकिन बन कुछ नहीं पाता। उस उपन्यास में दो स्वप्न आये हैं और दोनों ही स्वप्न 'चेतन' ने देखे हैं। चेतन का विवाह 'चंदा' से तय होता है किंतु चंदा की बहन नीला पर वह इतना मुग्ध हो जाता है कि हर समय उसका सानिध्य पाने की कामना पालता रहता है। एक रात वह स्वप्न देखता है- "वह एक सीमाहीन मरूस्थल में खडा है। दूर-दूर तक झाडियाँ है और पलाश तथा बबूल के सूखे टेढ़े-मेढ़े वृक्ष हैं। वह किसी की खोज में किसी के पीछे भागता हुआ यहाँ आया है। एक झाड़ी से एक खरगोश निकलता है। वह उसके पीछे भागता है। तभी वह देखता है कि एक लौमडी उसके पीछे-पीछे चली आ रही है। फिर वह देखता है कि वह एक बड़ा पतंग बन गया है और एक बड़े से हंडे के इर्दगिर्द घूम रहा है पर शीशा उसे लौ तक नहीं पहुँचने देता।"¹

स्वप्न में सुन्दर खरगोश नीला का प्रतीक है उसका पीछा करती हुई लोमड़ी उसकी पत्नी चंदा है। लौ नीला के उन्मत यौवन का प्रतीक है और पतंगा वह स्वयं है जो लौ तक पहुँच नहीं पाता अर्थात नीला को प्राप्त नहीं कर पाता।

फ्रॉयड की दृष्टि से देखा जाए तो स्वप्न में चेतन के मन में नीला को पाने की अदम्य आकांक्षा और अतृप्ति है। नीला के प्रति उसके मन में कामुक भावनाएँ हैं। फ्रॉयड की दृष्टि उस स्वप्न पर पूर्णतः ठीक उतरती है।

'गर्मराख' उपन्यास में उपेन्द्रनाथ अश्क ने लेखकों और पत्रकारों के जीवन प्रसंगों का वर्णन किया है। 'संस्कृति समाज' मंच पर कवि गोष्ठियाँ तथा अन्य साहित्यिक कार्यक्रम होते रहते हैं। इस समाज में भाग लेने वालों में मुख्य हैं - दुरो, सत्या, कवि चातक, वसंत, जगन्मोहन, हरीश आदि। हरीश की कविताएँ खूब जमती हैं और दुरो मन ही मन हरीश के प्रति आकर्षित होती है। एक बार गोष्ठी के बाद रात में दुरो यह स्वप्न देखती है।

'संस्कृति समाज' और 'स्टडी सर्कल' कुछ विचित्र रासायनिक क्रिया से एक दूसरे से गडमड हो गये हैं। वह कहीं की हेडमिस्ट्रेस है और उसी के घर में गोष्ठी है। खूब वाद विवाद चलता है। आगे वह देखती है कि वह कहीं बाहर से आई है गर्मी से बेहाल सीधे स्नान करने चली जाती है और बाहर बैठे हरीश से तौलिया माँगती है। हरीश तौलिया फेंक देते हैं जो एकदम उसके सारे शरीर को बँक लेती है।"²

इस स्वप्न में अतीत में घटी हुई घटनाओं पर आधारित है। स्वप्न में एक दृश्य काव्य गोष्ठी और वाद- विवाद का है। "यह अंश पिछले दिन की घटित घटनाओं पर आधारित है। नहाने और हरीश के तौलिया माँगने वाले स्वप्न के अंश में हल्का विपर्याय है। यह इस ओर संकेत करता है कि दुरो मन ही मन हरीश पर मुग्ध है। हरीश द्वारा फेंके गये तौलिये से अनायस ही दुरो का शरीर ढँक जाना हरीश को पति के रूप में पाने की कामना है। फ्रॉयड के अनुसार स्वप्न हमारी अतृप्त वासना को प्रकट करते हैं। फ्रॉयड की यह मान्यता यहाँ पूर्णरूप से घटित होती है।"³

इस प्रकार स्वप्न में देखी गई ये अतृप्त कामनाएँ सीधे रूप में प्रकट हुई है इनमें प्रतीकों का आश्रय नहीं लिया गया है।

'शहर में घूमता आईना' की नीला चेतन की साली है किंतु मन ही मन दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं। नीला का विवाह हो जाता है और उसकी विदाई की तैयारी हो रही है चेतन थक कर सो जाता है और स्वप्न देखता है "उसने देखा 'शहनशीन नहीं' नीला वहाँ लेटी है - उन्हीं झमझमाते कपड़ों में ... और चेतन का गाल उसके गोरे गाल पर टिका है... और वह उठा बैठा।"⁴

चेतन के अचेतन में नीला बसी हुई है। वह नीला को पाना चाहता है साथ ही वह जानता है कि उसे पाना असंभव है। स्वप्न में वह अपने इस अभाव की पूर्ति कर लेता है। वह देखता है कि नीला उसे मिल गई है। स्वप्न में नीला के प्राप्ति चेतन मन में छिपी कोई गहरी आकाँक्षा है जिस पर चैतन्य अवस्था में सामाजिक मर्यादाओं के आवरण पड़े रहने के कारण आकाँक्षा अंतर्मुखी होकर अचेतन में बैठ जाती है।

इस तरह फ्रॉयड के स्वप्न तंत्र की समस्त प्रक्रियाएँ आधुनिक हिन्दी उपन्यास साहित्य की प्रमुख कृतियों में दिखाई देती हैं। प्रस्तुत उपन्यास में उल्लेखित गिरती दीवारें में, 'गर्मराख' और 'शहर में घूमता आईना' में अचेतन की दमित भावनाओं की अभियक्ति करने वाली स्वप्न प्रक्रियाएँ देखी जा सकती है। हिन्दी उपन्यासकारों ने व्यक्ति के आंतरिक मन का अध्ययन करने के लिए स्वप्न का सहारा लिया है। स्वप्नों के कारण उपन्यास के कथ्य और शिल्प दोनों में परिवर्तन आया है। स्वप्न ने कथ्य को आवश्यक विस्तार से बचाया है। साथ ही उपन्यास में कथ्य को सूक्ष्म और गहरा बनाने में भी स्वप्न की योजना सहायक हुई है। आलोच्य उपन्यासों का विश्लेषण करते समय हमने देखा कि अपने मन में अनजाने पाप और अपराध को स्वप्न में स्वीकारने में पात्र संकोच नहीं करते हैं। इस प्रकार अचेतन के द्वंद्व को स्वप्न भाषागत रूप प्रदान करता है। स्वप्न में पात्रों के मानसिक द्वंद द्वारा चरित्र के सभी पक्ष उजागर होते हैं। फ्रॉयड के अनुसार "किसी भी इच्छा की पूर्ति स्वप्न की वस्तु है और उसकी प्रेरक कोई इच्छा। यह इच्छा सदा कोई अचेतन में दबी कुण्ठा होती है। अपने प्रकट रूप में स्वप्न किसी दमित लालसा की छद्म वेशीय परितृप्ति है।"⁵

स्वप्न और सहित्य दोनों का मनोवैज्ञानिक महत्व है। साहित्य निर्वैयक्तिक होता है जबकि स्वप्न वैयक्तिक । साहित्य जागृत अवस्था का अनुभव है और स्वप्न निद्रावस्था का। साहित्य और स्वप्न में इन समानताओं और असमानताओं के होते हुए भी निकट का संबंध है। उपेन्द्रनाथ अश्क ने भी साहित्य की पृष्ठभूमि में स्वप्नों के महत्व को स्वीकार किया है।

संदर्भ ग्रंथ सूची :

1. गिरती दिवारें - उपेन्द्रनाथ अश्क : पृ.सं. 234

2. गर्मराख-उपेन्द्रनाथ अश्क : पृ.सं. 171

3. हिन्दी उपन्यासों में का मनोवैज्ञानिक अध्ययन डॉ. एम. वेंकटेश्वर : पृ.सं. 209

4. शहर में घूमता आईना : उपेन्द्रनाथ अश्क : पृ.सं. 25

5. फ्रायड : इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स : पृ.सं. 68

- रूपेश कुमार वी. भोसले

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