तुम्हारा वह स्वर्ण विहान कहाँ है आलि

Dr. Mulla Adam Ali
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Tara Singh Poetry in Hindi

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हिन्दी कविता तुम्हारा वह स्वर्ण विहान कहाँ है आलि : हिन्दी की प्रेरणादायक कविता तुम्हारा वह स्वर्ण विहान कहाँ है आलि। हिंदी कविता संग्रह में प्रस्तुत है श्रीमती तारा सिंह की कविताएं, हिन्दी कविता कोश।

Poetry in Hindi

तुम्हारा वह स्वर्ण विहान कहाँ है आलि


इस लोक में स्त्री-जाति बड़ी निर्धन होती है आलि

उसकी गिनती प्राणियों में नहीं, वस्तुओं में की जाती

तुमको इस बात का गम, कभी हुआ आलि

दुनिया मेरी उजड़ गई, तुम मेरी व्यथा को समझो आलि


विपत्तियाँ मुझे एक कोने में कैद कर लीं, मैं ही नहीं

तुम्हारी निर्ममता की मार से विकल है सारी सृष्टि

हर तरफ बिखड़ी पड़ी है, साँझ की उदासी

सूरज निकलने के पहले ही रात पसर गई

तुम्हारा वह स्वर्ण विहान कहाँ है आलि


तुम हृदयहीन हो गए हो, तुम क्या जानो

अपनों से अलग होकर जीना होता कितना मुश्किल

आज प्रकृति पूजन है, अपना जीवन तुमको चढ़ा दूँ आलि

घन तुल्य इस आकाश में तुमको कहाँ अब बिठाऊँ आलि

सूखी लता, मुरझे सुमन हैं, फूलों के गुलचे कहाँ से लाऊँ आलि


डरती हूँ तुम्हारी जगत में अब जीने से मैं

ये कैसा बदतर रख - रखाव है तुम्हारा

अखिल विश्व में कहीं माधुर्यता नहीं

यहाँ जीवन जीना कितना दुश्वार हो गया


माँ के मधुर अंक को ओढ़े, चिता पर पुत्र रहता सोया

माँ के आँचल पर यह कैसा दाग है आलि, जब कि

माँ के दहाड़ों को सुनकर, ठहर जाता गंगा का पानी

मरघट पर जाकर मनाते हो ये कैसा त्यौहार आलि


हमने अनगिनत देवों को जनम दिया

दानवों की संख्या भी कम नहीं

स्वयं प्रकृति कही जानेवाली नारी

इस धरती पर फिर भी निर्धन है नारी

कोटि-कोटि वर्षों से प्रसूता का दर्द

अब और सहा नहीं जाता आलि

तुम भले ही इस जगती को स्वर्ग कहो

पर यह स्वर्ग बड़ा मलिन है आलि


ये कौन से नाश के पथ पर, जगत को खींचकर ले जा रहे हो तुम

दूधमुँहें बच्चे की चिता जलाकर ये कैसा उजियारा कर रहे हो तुम

लगता है अब तुम्हारी सृष्टि का अंत हो चला है तुम्हारी सृष्टि में

अब खुशियाँ नहीं हैं, सिर्फ दुख, पीड़ा और कफन बचा हुआ है।

- श्रीमती तारा सिंह

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