यात्रा के विषय पर बेहतरीन कविता : उत्तर-पूर्वी यात्रा

Dr. Mulla Adam Ali
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Uttar Purvi Yatra Poem in Hindi

Uttar Purvi Yatra Poem in Hindi

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Hindi Poem on Uttar Purvi Yatra

उत्तर-पूर्वी यात्रा


हम दोनों ननद-भावज, करने सैर चले ।

जल्द चले वो प्लेन, या गाड़ी देर चले ।।

चैतन्य प्रभु की बनी समाधी, मायापुरी में देखी है।

जन्मस्थली नवद्वीप में, जहाँ पे गंगा बहती है ।।

शिवशंकर का विशाल मंदिर, ताड़केश्वर में है बना।

शिवगंगा में डुबकी लगाकर, हर्ष हुआ है बहुत घना ।।

दार्जिलिंग जा पहुँचे हम तो, करने सैर सपाटा ।

छुक-छुक गाड़ी से उतरे हम, प्लेट फार्म को टाटा ।।

प्रकृति की शान है देखी, चाय के बागानो में।

दृश्य अलौकिक सूर्योदय का, ओस चमकती द्यानों में ।।

अब जा पहुँचे टाईगर हिल हम, सूर्योदय का दृश्य देखने ।

उषा से खिलखिला के हंसना, सूरज से निरंतर चलना सीखने ।।

चमक उठे कंचनजंगा के, सुनहरे एवरेस्ट शिखर।

दार्जिलिंग और गंगटोक की राहों में प्रकृति गई है निखर ।।

तिष्टा और रंगीन का संगम बड़ा सुहाना लगता था ।

हनुमान मंदिर जो था रंगीन फूलों से सजता था ।।

सांगो झील वो गणेश मंदिर फ्लावर फेस्टीवल अद्भुत थे।

अलौकिक दृश्य देखकर सोचा, सपना है या सचमुच थे ।।

मौज मनाने धूम मचाने, नेशनल पार्क को पहुँचे।

काजीरंगा में गैंडे और थे हाथी ऊँचे ।।

तेजपुर में तेजस्विनी उषा ने, देखा था एक सपना ।

सहयोग चित्रलेखा का पाकर, अनिरुद्ध बना लिया अपना ।।

सपना सुहाना था वो जिसमें, आया सुंदर राजकुमार ।

जिसे देख उषा रानी के, थिरक उठे थे मन के तार ।।

घोर गर्जना मेघालय में, नाम सार्थक होगा ही।

रिमझिम रिमझिम बादल बरसे, बूँदे चमके मोती सी ।।

प्यारी-प्यारी बालाएँ वो, गुड़िया जैसी दिखती थी।

शिलांग के बाजारों में तो, जापानी चीजें बिकती थी ।।

चेरापूंजी में होती है, जबसे ज्यादा बरसात ।

हरे-भरे हैं बाग-बगीचे, शीतल दिन वो ठंडी रात ।।

कामख्या देवी के पूजन को, जा पहुँचे गुवाहाटी।

ठंडा मीठा शर्बत पीये, खाए दाल वो बाटी ।।

कलकत्ता की काली माता, तेरे दर्शन को आये ।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट चढ़ाने लाए ।।

मशहूर यहाँ का घाघरा चुन्नी, और मिले सिंदूर ।

खाने को मिलते हैं रसगुल्ले, सिंघोड़े वो राजकचोरी है भरपूर ।।

दृश्य निराले और अद्भुत, सब के सब देख चले।

जल्द चले वो प्लेन या फिर गाड़ी देर चले ।।

सारे जहाँ को इक माला में, पिरो के फेर चले ।

हम दोनों ननद-भावज, करने सैर चले ।।

- श्रीमती संपत देवी मुरारका

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