वर्तमान समाज और दूरदर्शन पर निबंध | Vartaman Samaj aur Doordarshan Nibandh

Dr. Mulla Adam Ali
0

दूरदर्शन पर निबंध (300 व 500 शब्दों में), Vartaman Samaj aur Doordarshan ka Mahatva Par Nibandh Lekhan, टेलीविजन का समाज पर प्रभाव पर निबंध, टीवी का मानव जीवन महत्व क्या है।

Essay on Telivision and Society

Doordarshan ka Mahatva in Hindi

Doordarshan ka Mahatva Essay in Hindi

वर्तमान समाज और दूरदर्शन

दूरदर्शन ज्ञान-विज्ञान की अन्य अनेक देनों के समान आज हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन चुका है। यदि किसी कारणवश एक दिन भी उससे दूर रहना पड़ जाए, तो बड़ा विचित्र-सा लगता है। लगता है, जैसे आज कुछ खो गया है। या फिर आज का दिन जैसे अधूरा ही रह गया है। ऐसा अनुभव होने के सबके अलग-अलग कारण हो सकते हैं, पर अनुभव सभी करते हैं। इसका स्पष्ट कारण है कि दूरदर्शन हमारा मनोरंजन तो करता ही है, हमारे सामाजिक और व्यावहारिक जीवन की अन्य बहुत सारी आवश्यकताएँ भी पूर्ण किया करता है। उन आवश्यकताओं का सम्बन्ध हमारे घर, बाजार, व्यापार, नौकरी, शिक्षा, खेल-कूद आदि सभी क्षेत्रों से समान रूप से जुड़ा हुआ है। इस कारण भी आज हमारे घरेलू एवं सामाजिक जीवन में दूरदर्शन का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है।

पहले हम शुद्ध मनोरंजन की बात ही करें। दूरदर्शन हमारे मनोरंजन के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित एवं प्रदर्शित किया करता है। कई प्रकार के धारावाहिक, नाटक, चित्रगीत, नृत्य, वृत्त-चित्र और कथाचित्र, कई प्रकार की झलकियाँ आदि का प्रतिदिन प्रसारण हुआ करता है। फिल्में और चित्रहार आदि तो कहा जा सकता है कि हमारा सामान्य मनोरंजन मात्र ही किया करते हैं, पर जो नाटक, झलकियाँ और धारावाहिक आदि प्रस्तुत किए जाते हैं, उनका सम्बन्ध हमारे सामाजिक जीवन के व्यवहारों और नित्यप्रति की समस्याओं के साथ भी रहता है। इस कारण उनसे हमें मनोरंजन के साथ-साथ और बहुत कुछ भी देखने, समझने और सुनने को मिलता है। हम जीवन-समाज के अच्छे-बुरे रूपों से परिचित होते हैं। समाज की समस्याएँ क्या और कैसी हैं, उनके समाधान कैसे हो रहे, हो सकते या होते हैं आदि के बारे में भी पता चल पाता है। हम उन पर अपने ढंग से सोच-विचार कर सकने की प्रेरणा भी प्राप्त करते हैं। इस प्रकार मनोरंजन, अपने परिवेश और समस्याओं का ज्ञान आदि कराकर सामान्यतया दूरदर्शन मानव समाज का बहुत हित कर रहा है। दूरदर्शन पर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के व्यायाम, खेल-कूद आदि का भी प्रसारण-प्रदर्शन होता रहता है। इन सबका सम्बन्ध स्वास्थ्य सुधार और मनोरंजन के साथ तो हुआ ही करता है, इन्हें अन्तर्प्रान्तीय और अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे का साधन भी माना जाता है। व्यक्ति के रूप में हर आदमी इनमें भाग नहीं ले सकता, पर दूरदर्शन हमें अवसर प्रदान करता है कि उसके माध्यम से हम सारे संसार के खेल-जगत् के साथ मिल सकें। इस तरह प्रेम और भाईचारे के प्रसार में अपना सहयोग प्रदान कर सकें।

समाचार-प्रसारण की दृष्टि से भी दूरदर्शन का बहुत अधिक सामाजिक और व्यावहारिक महत्त्व माना जाता है। यों समाचार आकाशवाणी (रेडियो) से भी प्रसारित होते हैं, पर उसके माध्यम से हम समाचार केवल सुन सकते हैं, जबकि दूरदर्शन के द्वारा हम समाचार बनने वाली घटनाएँ देख भी सकते हैं। सुनने की बजाए देखने का प्रभाव निश्चय ही अधिक गहरा और स्थायी हुआ करता है। न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ भी घटता है, दूरदर्शन घटना के समय पर ही उसके ज्यों-के-त्यों स्वरूप से हमारा सीधा साक्षात्कार कर दिया करता है। उन सबका हमारे जीवन और समाज पर कई तरह से प्रभाव पड़ा करता है, इससे भला कौन इन्कार कर सकता है।

आज संसार में ज्ञान-विज्ञान के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं। नई-नई उपयोगी वस्तुओं का निर्माण हो रहा है। ज्ञान-विज्ञान-सम्बन्धी गोष्ठियाँ दूरदर्शन पर अक्सर दिखाई जाती हैं। इसी प्रकार नई बनने वाली हर वस्तु की जानकारी निर्मित वस्तु को प्रत्यक्ष दिखाकर कराई जाती है। फलस्वरूप अपने घर में बैठकर ही हम उन सभी का परिचय तो प्राप्त कर ही लेते हैं, अपनी आवश्यकतानुसार उन्हें प्राप्त कर सकने के सभी प्रकार के उपाय भी जान लेते हैं। तात्पर्य यह है कि दूरदर्शन हर प्रकार के विज्ञापन का भी एक महत्त्वपूर्ण उपकरण और माध्यम है। इन सब बातों के अतिरिक्त हमारे जीवन में जो अनेक प्रकार के उत्सव-त्यौहार आदि आते हैं, सामूहिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय अनुष्ठान हुआ करते हैं, दूरदर्शन हमें उन सबके भी सहज दर्शन कराकर भावना के स्तर पर हमें उनके साथ जोड़ दिया करता है। वास्तव में यह एक बहुत बड़ी बात है। साहित्य, कला आदि के क्षेत्रों में होने वाले कार्यों, इन क्षेत्रों की सभी तरह की गतिविधियों, इन तथा जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाले प्रमुख व्यक्तियों, राजनीति और इतिहास आदि की वार्ताओं, कृषि, उद्योग-धन्धे और व्यापार के साधन आदि, अन्य कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं, दूरदर्शन के माध्यम से जिसके हम दर्शन न कर सकते हों और जिसकी सामान्य-विशेष सभी प्रकार की जानकारियाँ हमें अपनी रुचि के अनुसार प्राप्त न होती हों। इस प्रकार कहा जा सकता है कि दूरदर्शन वास्तव में बहुमुखी प्रवृत्तियों के प्रदर्शन-प्रसारण वाला माध्यम है। उसका बहुमुखी व्यक्तित्व और कार्य जीवन-समाज के लिए निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है।

अब देखना यह है कि इतने व्यापक और प्रभावशाली माध्यम का आखिर हमारे जीवन और समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए जो परीक्षोपयोगी पाठ प्रसारित होते हैं, उनमें रूखा-सूखापन होना स्वाभाविक है। उसे सहन भी किया जा सकता और सहा जाता है। लेकिन जब हम विशुद्ध मनोरंजन के लिए प्रसारित कार्यक्रमों में कल्पना का अभाव, रूखा-सूखापन पाते हैं, तब कहने को बाध्य होना पड़ता है कि दूरदर्शन एक जीते-जागते 'बोर' से अधिक कुछ नहीं। इसी प्रकार जो सामग्रियाँ और दृश्य जन-हित के लिए प्रसारित किए जाते हैं, उनमें भी विवेक से काम नहीं लिया जाता है। उनमें उबाऊपन तो रहता ही है, कई बार अश्लील-सा भी लगने लगता है। हिंसा, मारधाड़ और कामुकताभरी अक्सर फिल्मों और चित्रगीतों आदि के बारे में भी यही कहा जा सकता है। इससे समाज का अहित ही अधिक हो रहा है, हित नहीं। इसी प्रकार उपभोक्ता वस्तुओं के जो विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उनमें भी बेहूदापन ही अधिक रहता है। एक चॉकलेट के लिए, या आलू-चिप्स के लिए पागल हो रहे युवक-युवतियों को दिखाना आप किस प्रकार की मानसिकता का प्रदर्शन मानेंगे? उससे किस समाज का भला हो रहा है? किस संस्कृति को प्रचार और बल मिल रहा है इस प्रकार का सस्तेपन दिखाने वाले विज्ञापनों से? कहा जा सकता है कि कल्पना-शून्य मनोरंजन और सस्तेपन तथा अश्लीलता भरे विज्ञापन दिखाकर केवल उपभोक्ता समाज को ही बल दिया जा रहा है, सभ्य-सुशिक्षित एवं उच्च मन-मस्तिष्क वाले समाज को नहीं। दूरदर्शन की इस प्रकार की प्रवृत्ति ने आदमी, उसकी आदमीयता, स्त्री और उसके स्त्रीत्व आदि को मात्र एक जिन्स, एक उपभोक्ता सामग्री बना दिया है, उससे अधिक कुछ नहीं।

दूरदर्शन अच्छे ढंग से जन-शिक्षा, जन-मनोरंजन, जन-सभ्यता-संस्कृति के लक्षण का एक प्रभावशाली माध्यम हो सकता है। वह जीवन एवं समाज के नव-निर्माण में भी हर प्रकार से सहायक सिद्ध हो सकता है। उससे राष्ट्रीयता और सारी मानवता का कल्याण किया जा सकता है। इस प्रकार हमारे संविधान में जिस कल्याणकारी राज्य की कल्पना की गई है, दूरदर्शन उसकी पूर्ति में सच्चा सहायक बन सकता है, पर कब और कैसे? इन सभी प्रश्नों का सीधा-सा उत्तर है कि जब कल्पनाशीलता, विवेक, मानवीयता की दृष्टि अपनाकर, व्यापारी दृष्टिकोण त्यागकर उसके सभी प्रकार के कार्यक्रमों को नियोजित किया जाए, तभी वह भारतीय समाज और उसके जन का मार्गदर्शक बनकर अपने महत्त्व की वास्तविकता उजागर कर सकता है। उसका वर्तमान रूप वास्तव में बहुत निराशाजनक ही कहा जाएगा।

Related; विज्ञान वरदान या अभिशाप Essay In हिंदी निबंध 300 words

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top