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Vigyan Vardan Ya Abhishap Essay In Hindi
Essay on Science Blessing or Curse in Hindi
विज्ञान वरदान है या अभिशाप
अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण आज का युग विज्ञान का युग माना जाने लगा है। विज्ञान का आलोक प्राप्त होने से पूर्व हमारी भौतिक शक्तियों की एक निश्चित सीमा थी, जिनके पार हम नहीं जा सकते थे। हमारे हाथों में जितना बल था, हम उतना ही श्रम कर सकते थे, पाँवों में जितनी सामर्थ्य थी हम उतना ही चल सकते थे और आँखों में जितनी ज्योति थी, हम उतना ही देख सकते थे। मानव अपनी इन शक्तियों से सन्तुष्ट न था, अतः उसने विज्ञान की साधना की। इस साधना में सफलता पाकर वह प्रकृति का स्वामी बनने का प्रयत्न करने लगा। उसने काफी अंशों में प्रकृति को अपने वश में कर लिया है। मानव ने प्रकृति के रहस्यों, शक्तियों और साधनों का उद्घाटन करके सबको अपने सुख और समृद्धि के लिए प्रयुक्त करना सीख लिया है। अब वह यन्त्रों के द्वारा कई गुना अधिक काम करने लग गया है, गाड़ियों के द्वारा कई गुना तेज चलने लगा है, दूरबीनों के द्वारा हजारों गुना दूर तक देख पाने में समर्थ हो गया है। प्रकृति के गुप्त रहस्यों को सुलझाकर, उस पर विजय पाकर आज का मनुष्य असीम शक्तियों का स्वामी बन गया है।
विज्ञान ने मानवता को निश्चय ही बहुत कुछ दिया है। भूखे को रोटी दी, नगे को कपड़ा दिया, रोगी को औषधि और स्वास्थ्य दिया, निर्धन को धन दिया, बेकार को कारोबार दिया। जो आँखों से देख नहीं सकता था, विज्ञान ने उसकी पुतलियों में ज्योति प्रदान की। लंगड़े को टाँगें दीं, बहरे को कान दिए। आविष्कारों ने हमारे दैनिक जीवन को भरा-पूरा बना दिया है। हमें सुखी और समृद्ध बना दिया है। अब हम कल्पना नहीं कर सकते कि वैज्ञानिक उपकरणों के बिना क्षण-भर भी हमारा निर्वाह हो सकता है। जीवन पूर्णतया विज्ञानाश्रित होकर रह गया है। इस तरह से परावलम्बी बन गया है।
विज्ञान ने हमारे श्रम को कम कर दिया है। पहले एक लुहार जितने समय में एक छुरी बनाता था, अब वह यन्त्रों के द्वारा उतने ही समय में 20 या इससे भी अधिक बनाने लगा है। मात्रा के साथ वस्तुओं के गुणों में भी वृद्धि हुई है। हाथ की वस्तुओं से मशीनी वस्तुएँ कई गुना अच्छी, टिकाऊ और कई गुना सस्ती होती हैं। इससे समय और शक्ति का अपव्यय रुका है। उत्पादन में वृद्धि हुई है।
विज्ञान के वरदानों में अकेली बिजली ने हमारा जितना उपकार किया है, उसी का मूल्य हम नहीं आँक सकते। वह हमें प्रकाश देती है और घनी अमावस को भी दिन में परिवर्तित कर देती है। बटन दबाते ही कपड़ों पर इस्तरी करने लगती, भोजन पकाती, गर्मियों में पंखा डुलाती, सर्दियों में कमरे गर्म करती, कारखानों में कपड़े बुनती, रेडियो और टेलीविजन में कला बनकर मनोरंजन करती, टेलीफोन द्वारा आनन-फानन में हमारे संदेश मित्रों को पहुँचाती है। बिजली की शक्ति पर आधारित सिनेमा, रेडियो और टेलीविजन ने संसार को नया रूप दे डाला है। आज तो समूचे उद्योग-धन्धों का विद्युतीकरण हो चुका और हो रहा है। उसके बिना क्षण-भर का जीवन भी दूभर होकर रह जाता है।
विज्ञान ने यातायात की दिशा में रेल, वायुयान और मोटर आदि का आविष्कार करके हजारों मील लम्बे-चौड़े संसार को हमारे घर के आँगन के निकट ला दिया है। पहले मनुष्य की प्रगति में नदी, पर्वत और सागर सबसे बड़ी बाधाएँ सिद्ध होते थे; पर आज एक-एक वायुयान इन सबको उड़ान में पार करते हुए विज्ञान की जय बुला रहा है। अब टेलीविजन के द्वारा घर बैठे बिठाए हम संसार के कोने-कोने में झाँक सकते हैं। विज्ञान ने दूरी पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है। अब तो समूची मानव-जाति भ्रातृभाव के एक सूत्र में बँधती जा रही है। अब मनुष्य को अपनी शारीरिक शक्ति का अपव्यय करने की आवश्यकता नहीं रही। वह उसे सुरक्षित रखकर अन्य मानवोचित गुणों के विकास में उसका उपयोग करने लगा है। इस प्रकार विज्ञान वरदान-ही-वरदान सिद्ध हो रहा है।
विज्ञान ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ओर अच्छे-बुरे कीटाणुओं की खोज की, दूसरी ओर शल्य-चिकित्सा में बहुत सफलता प्राप्त की। अब पेनिसिलिन जैसी अनेक कीटाणुनाशक औषधियों का आविष्कार हो चुका है। रेडियम और रेडियो आइसोटोपों द्वारा रोगनिदान करना सरल हो गया है। अब पुराने सड़े-गले अंग काटकर उनकी जगह नए अंग जोड़ दिए जाते हैं। दिल तक नए लगाए जाने लगे हैं।
कृषि के क्षेत्र में पहले जिन ऊबड़-खाबड़ स्थलों को असाध्य समझकर झाड़-झंखाड़ों के लिए अलग छोड़ दिया जाता था, आज उन्हें आन की आन में ट्रैक्टर जोत रहे हैं। अधिक क्या, अब तो कृत्रिम वर्षा होने लगी है और समुद्र का खारा पानी मीठा बनने लगा है। रेगिस्तानों और समुद्र तटों तक का दोहन कर तेल प्राप्त कर पाना भी विज्ञान ने सम्भव कर दिया है। कुछ असम्भव नहीं रहने दिया।
विज्ञान का एक अन्य अध्यात्मवत् सूक्ष्म रूप भी है। वह हमें प्रयोग और परीक्षण द्वारा सत्य के निकट पहुँचना सिखाता है। वह अन्धविश्वासों के विरुद्ध कार्यरत है। उसका आधार प्रत्यक्ष सत्य होता है। वह मन को व्यवस्थित ढंग से सोचने की प्रेरणा देता है। वह सत्य की खोज का मार्ग सुझाता तथा उसके लिए प्रमाण प्रस्तुत करता है। वह हमें जीवन की वास्तविकता के अधिक निकट लाता है। संसार को जीने योग्य बनाता है। कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। वह हमें प्रकृति का स्वामी बनकर रहना सिखाता है।
जहाँ विज्ञान ने मानवता को इतने वरदान दिए हैं, वहीं अनेक आधुनिक समस्याओं का जनक भी विज्ञान ही को माना जाता है। विज्ञान ने जहाँ सृजन किया, वहाँ विनाश के उपकरण भी जुटाए हैं। निर्माण की दिशाएँ निश्चय ही बहुत हैं, किन्तु उपयोग का मार्ग युद्ध एक सर्वग्रासी अभिशाप है। युद्ध के उपकरणों के रूप में विज्ञान शताब्दियं के निर्माण को एक क्षण में भस्मसात् कर सकता है। युद्ध ही विज्ञान का सबसे बड़ अभिशाप है। युद्ध के तीनों अंगों, स्थलसेना, जलसेना तथा वायुसेना ने टैंक, तारपीड सबमैरीन, बमवर्षक विमान, फॉइटर, वायुयानभेदी तोपें, उर्जन बम, कोबॉल्ट बम अन्तर्देशीय रॉकेट, विषैली गैसें आदि बनाकर विश्व के सर्वनाश का मार्ग खोल दिय प्रतीत होता है। हर क्षण युद्ध के रूप में विनाश के बादल छाए रहते हैं। इन बादलों को हटा पाने में विज्ञान सर्वथा असमर्थ होकर रह गया है।
विज्ञान ने मनुष्य को पक्का भौतिकवादी बनाकर उसके विवेक पर पर्दा डाल दिय है। उसके मन की चिरशान्ति और आनन्द-भाव भी छीन लिए हैं। अब मनुष्य को = ईश्वर का भय है, न नाश का। विज्ञान ने जहाँ यन्त्र दिए, वहाँ यन्त्रों द्वारा बेकारी भी दी है। कारखानों के स्वामियों के हाथ में पूँजी देकर तथा मजदूरों को फटेहाल रखकर विज्ञान ने वर्ग-संघर्ष उत्पन्न किया है। इस प्रकार वर्ग-संघर्ष का कारण होने से विज्ञान ही इस संसार में निरन्तर अशान्ति का कारण बनकर पारस्परिक विद्वेष का विस्तार कर रहा है। संघर्ष और झगड़े बढ़ा रहा है।
इन दोनों प्रकार के तथ्यों के मूल में वस्तुतः मनुष्य का स्वार्थ काम कर रहा है। सच पूछो तो विज्ञान अपने-आप में निर्दोष है। दोष स्वयं मनुष्य जाति की अपनी तृष्णाओं और इच्छाओं के विस्तार का है, जो उसका दुरुपयोग करना अधिक सिखा रही है। तृष्णाओं पर काबू पाकर ही विज्ञान के वरदानी पक्ष की रक्षा सम्भव हो सकती है। अन्यथा विनाश का अभिशाप अपनी कारगुजारी दिखाने की दिशा में अनवरत सक्रिय है।
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