आज़ादी की टोपी : रोचक बाल कहानी - Azadi Ki Topi

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Children's Stories, Hindi Bal Kahaniyan, Azadi Ki Topi Kids Story in Hindi by Govind Sharma, Independence Day Special, Republic Day Special, Patriotic Stories in Hindi for Childrens.

Ajadi Ki Topi Children's Story

Ajadi Ki Topi Children's Story

बालकथा आजादी की टोपी : आजाद देश के आजाद नागरिक की जिम्मेदारी की भावना की कहानी आजादी की टोपी, बालकथा संग्रह गलती बँट गई से संकलित गोविंद शर्मा की लिखी बाल कहानी आज बाल कहानी कोश में आपके लिए प्रस्तुत है, पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।

Azadi Ki Topi Hindi Bal Kahani

आजादी की टोपी

हम प्रधानाचार्य के कक्ष में पहुँचे तो देखा सारा कक्ष सजा-धजा है। हर वस्तु करीने से रखी हुई है। एक तरफ देखा तो हैरान रह गये। एक छोटे शोकेस में एक सफेद टोपी रखी हुई थी। हमारे में से एक ने पूछ लिया-सर, लगता है यह टोपी किसी स्वतंत्रता सेनानी की है? उन्होंने अंग्रेजों से लाठी-गोली खाई होगी या ज्यादा समय उन्होंने जेलों में बिताया होगा। हो सकता है देश की आजादी के लिये किसी और तरह से संघर्ष किया हो। कौन थे वे महापुरुष, जिनकी यह टोपी है?

"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। यह टोपी तो आजादी प्राप्त होने के कई साल बाद बनी थी और तभी पहली बार सिर पर धारण की गई थी। हाँ, वह दिन पन्द्रह अगस्त का था। हमारी आजादी का शुभ दिन। आप लोग चाय पीजिए, मैं आपको आजादी की इस टोपी की कहानी सुनाता हूँ... सच्ची कहानी।"

चार साल पहले की बात है। उस समय भी मैं ही इस विद्यालय में प्रधानाचार्य था। पन्द्रह अगस्त से एक दिन पहले इस विद्यालय के छात्र अपनी माँगों को मनवाने के लिये धरने पर बैठ गये। माँग तो वे कई दिन से कर रहे थे, पर फंड के अभाव में मैं पूरी करने में असमर्थ था। मुझ पर दबाव बढ़ाने के लिये वे धरने पर बैठ गये। कई अध्यापकों ने उन्हें समझाया कि राष्ट्रीय पर्व के समय हमें धरना-हड़ताल आदि नहीं करना चाहिए। पर वे नहीं माने। उन्हें समझाने के लिये मैं स्वयं गया। मुझे देखकर पहले खड़े हो जाने वाले वे छात्र, अब खड़े नहीं हुए, क्योंकि वे धरने पर बैठे थे। मैंने उन्हें खूब समझाया, अंत में कहा- इस बार मैं एक नया काम करने जा रहा हूँ। पन्द्रह अगस्त के समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में किसी नेता या अफसर को न बुलाकर, परेड की सलामी लेने का दायित्व बदलूराम को सौंपा है, वही बदलूराम- जो विद्यालय में घंटी बजाता है।

मेरी इस बात पर कुछ छात्रों में हैरान होने की प्रतिक्रिया नजर आई, इससे ज्यादा कुछ नहीं। अब दूसरा तुरूप चलने वाला था कि बदलूराम भागा भागा आया। उसके हाथ में यही टोपी थी। घबराई आवाज में बोला- साहब, मैं कल यह टोपी पहनकर सलामी नहीं ले सकूँगा। अभी-अभी पता चला है कि मेरे गाँव के पास से जो नहर गुजरती है, वह टूट गई है। नहर से निकले पानी से कई किसानों के खेत डूब गये हैं। पानी तेजी से मेरे गाँव की तरफ बढ़ रहा है। साहब, गाँव में मेरा घर किनारे पर, नहर की तरफ है। पानी यदि गाँव तक पहुँचा तो सबसे पहले मेरा कच्चा घर गिरेगा। मैं अपना घर बचाने के लिए जा रहा हूँ।

वह टोपी मेरे हाथ में पकड़ाकर तेजी से चला गया। मैं हैरानी से उसे जाते हुए देखते रह गया। मेरा ध्यान बच्चों की तरफ से हट गया था। बच्चों का शोर सुना तो मेरा ध्यान उधर चला गया। मैंने धरने पर बैठे स्कूल के सैकड़ों बच्चों को उठते और तेजी से जाते हुए देखा। पता है, वे क्यों उठे? कहाँ गये? जी हाँ, वे सब गये बदलूराम के गाँव की तरफ। जिसे जो भी साधन मिला उसके द्वारा तो कुछ तो पैदल ही बदलूराम के गाँव पहुँच गये। टूटी नहर को ठीक करने के लिये वे अपनी तरफ से प्रयास करने लगे। इतने में मैं भी स्टाफ के साथ पहुँच गया। उधर से नहर विभाग का स्टाफ भी आ गया। उनके तकनीकी निर्देश और बच्चों के श्रम से कुछ ही देर में टूटी नहर से पानी निकलना बंद हो गया। कुछ समय की देरी हो जाती तो पानी बदलूराम के घर तक पहुँच जाता। पर अब उसका घर बच गया। उसकी आँखों में खुशी के आँसू थे।

अब बच्चों ने गाँव के उन लोगों को वापस गाँव में लाने में मदद करना शुरू कर दिया था, जो पानी आने के डर से गाँव छोड़कर एक ऊँचे टीले पर चले गये थे।

उसके बाद धूल-कीचड़ से लथपथ वे बच्चे वापस आ रहे थे। रोज वे मुझे हाथ जोड़कर नमस्ते करते थे, वे मेरे सम्मान में खड़े होते थे। आज मैं उनके सम्मान में हाथ जोड़े खड़ा था। कुछ बच्चे मेरे पास आये। मैं उन्हें नहीं पहचान सका, क्योंकि सबके कपड़ों पर, चेहरे पर कीचड़ जमा था। बोले- सर, हम लोग कल पन्द्रह अगस्त के समारोह में आयेंगे। अभी बदलूराम की हालत तो ऐसी नहीं है कि वह सलामी ले सके। कल यह टोपी, जो आपके पास है, आपको ही पहननी होगी।

मेरे विचार में तो टोपी पहनने के सही हकदार वे बच्चे थे, पर उन्होंने मुझे ही पहना दी। हाँ, फिर बच्चों को हड़ताल पर जाने या धरना देने की जरूरत नहीं पड़ी। मैंने और स्टाफ ने निर्णय कर लिया था कि बच्चों की माँग पूरी करने के लिये सरकार से फंड आने की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। हम लोग अपने वेतन से योगदान करेंगे। बस, उसी योगदान से बचे रुपयों से यह शोकेस बनवा लिया और इसमें रख दी आजादी की यह टोपी, क्योंकि इसी टोपी की उपस्थिति में अपने स्वार्थ से मुक्ति मिली थी और आजाद देश के आजाद नागरिक की जिम्मेदारी की भावना भी मिली थी।

ये भी पढ़ें; रोचक, तेज और सजग दृष्टि की बाल कहानी : कौन है शक्ल बदलू?

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top