आजादी की खुशी : सबको भाती है स्वतंत्रता, पढ़ें ये ज्ञानवर्धक बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
0

Azadi Ki Khushi story teaches us that real meaning of freedom, Hindi Children's Stories Collection, Azadi Ki Khushi Bal Kahani by Govind Sharma. Kids Stories in Hindi.

Azadi Ki Khushi Children's Story

Azadi Ki Khushi Bal Kahani

बालकथा आजादी की खुशी : जब हमें अपनी आजादी प्रिय है, हम उसका जश्न मनाते हैं तो परिंदों को पिंजरे में बंद करके उनकी आजादी क्यों खत्म करते है? यह कहानी है आजादी की खुशी। आजादी की खुशी मार्मिक रचना है जो स्वाधीनता की व्याख्या अलग ही अंदाज में कर जाती है। पढ़िए कहानी कोश में गलती बँट गई बालकथा संग्रह से संग्रहित बाल कहानी हिंदी में आजादी की खुशी।

Azadi Ki Khushi Bal Kahani

आजादी की खुशी

राजू को पढ़ना, स्कूल जाना, खेलना, नई-नई चीजें खाना सब पंसद है, पर सबसे ज्यादा पसंद है-मिट्ठू से बोलना, उसे चुग्गा पानी देना, उसे देख-देखकर खुश होना। मिट्ठू-जी हाँ उसके पिंजरे में बंद एक सुंदर सा तोता। स्कूल से आते ही उसे संभालता, जाते वक्त टा-टा कहना नहीं भूलता।

एक दिन गजब हो गया। किसी कारण से पिंजरे का दरवाजा बंद नहीं रहा और मिट्ठू मियाँ उड़ गये। राजू वापस स्कूल से आया। जब उसे यह पता चला कि मिठू अब घर में नहीं है तो उसने घर सिर पर उठा लिया यानी शोर करना, रोना-धोना शुरू कर दिया। घर के लोग उसे मनाने में लग गये। वह किसी तरह मान ही नहीं रहा था। आखिर पापा ने कहा- 'अगले चौबीस घंटे के भीतर तुम्हारे पिंजरे में एक मिट्ठू होगा। कल ऑफिस जाते समय मैं यह खाली पिंजरा ले जाऊँगा। वापस आऊँगा तब इसमें एक तोता होगा। अब मान जाओ।" कुछ देर बाद उसकी नाराजगी का पारा नीचे उतर गया।

अगले दिन ऐसा ही हुआ। शाम को जब पापा आए तो उसमें एक तोता था। देखने में बिल्कुल वैसा ही जैसा-राजू का मिट्ठू था। इसलिये इस तोते को भी मिट्ठू नाम मिल गया। दो तीन दिन में राजू और मिट्ठू हिलमिल गये।

चौथे दिन फिर गजब हो गया। उस दिन पन्द्रह अगस्त था। राजू स्कूल में उत्सव मनाकर जल्दी घर आ गया। मिट्ठू के साथ खेलने लगा। उसे खाने के लिये ताजा हरी मिर्च दी। पानी की उसकी कटोरी में आर.ओ. का पानी डाला और उसके साथ बातें करने लगा। राजू के सामने झटके के साथ पिंजरे का दरवाजा खुल गया। राजू अभी हैरान ही हो रहा था कि मिट्ठू बाहर आया और घर में इधर-उधर उड़ने लगा।

तो यह बात है। दरवाजे में कोई गड़बड़ है। यही अपने आप खुल जाता है। इसीलिये शायद पहले वाला मिट्ठू उड़ गया था। वह पिंजरा लेकर मिठू को पकड़ने इधर-उधर दौड़ने लगा। पर कैसे पकड़े, राजू तो दौड़ रहा था, मिट्टू उड़ रहा था। उड़ता-उड़ता मिट्टू घर के ऊपर चला गया तो राजू भी सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर पहुँच गया। पिंजरा दिखा-दिखाकर, पिंजरे में हरी मिर्च दिखाकर मिट्ठू को बुला रहा था। मिट्टू तो अपनी आजादी का पर्व मनाने में जुटा था। कभी इधर उड़ता तो कभी उधर । कभी किसी मुंडेर पर बैठा रहता तो कभी घर के पास के पेड़ पर। वह नीचे आने का नाम नहीं ले रहा था। कुछ देर बाद मिट्ठू उड़ता-उड़ता आया, पर दादाजी द्वारा पक्षियों के लिये रखे गये पानी के बरतन से पानी पीने लगा।

यह देखकर राजू बोला- खूब, मेरा दिया शुद्ध पानी नहीं पिया। यह सीधे नल से आया पानी, पक्षियों द्वारा झूठा किया पानी पीकर खुश हो रहा है। लगता है अब यहाँ वहाँ बिखरे अनाज के दाने भी खायेगा। ऊपर वाली छत पर दादाजी कभी-कभी पक्षियों के लिये दाने भी बिखेरते थे।

मिट्ठू तो एक बार भी नीचे नहीं आया। पर राजू का गुस्सा नीचे आने लगा। वह समझ गया कि मनुष्य हो या पक्षी, आजादी से बड़ा सुख कुछ नहीं होता। पिंजरे से बाहर आकर मिट्टू ने जो आजाद उड़ाने की, इधर-उधर उड़कर खुशी दिखाई, वही बैठे बैठाए मिलने वाले चुग्गा पानी से बहुत बड़ी खुशी लगी।

राजू ने अपने हाथ में पकड़े पिंजरे को देखा और छत के एक कोने में जमा कबाड़ में फेंक दिया। मिट्ठू की तरफ देखकर उसने वैसे ही हाथ हिलाया, जैसे स्कूल में अन्य दोस्तों को हैप्पी इंडिपेंडेंस डे, कहते हुए हाथ हिलाया था और खुशी-खुशी छत से नीचे उतरने लगा।

ये भी पढ़ें; गलती बँट गई : पॉलिथीन के अंधाधुंध प्रयोग के बारे में जागरूक कराती बाल कहानी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top