आज के बच्चे की आवाज़ है बाल कहानी : नया फैसला

Dr. Mulla Adam Ali
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Naya Faisla Children's Story

Naya Faisla Children's Story

बालकथा नया फैसला : बाल कहानी कोश में आज आपके लिए लेकर आए हैं बालकथा संग्रह गलती बँट गई से गोविंद शर्मा की लिखी बाल कहानी नया फैसला। यह कहानी दो भाइयों की है बिना अनुमति के फल खाने पर दोनों हाथ काटने की सजा मिलती है, और वक्ता इसी से जुड़ी कुछ सवाल जवाब करते है, पढ़िए नया फैसल कहानी में क्या सवाल और जवाब थे। ये कहानी आज के बच्चे की आवाज़ है, कोई भी कहानी सुनकर वह केवल हुंकार नहीं भरता, बल्कि अपने मन के अनुसार फैसला लेता है, इसी पर आधारित रोचक कहानी।

Hindi Bal Kahani Naya Faisla

नया फैसला

हमारे प्रधानाचार्य महोदय का प्रिय विषय है नैतिकता। वे कभी किसी को तो कभी किसी को बुलाते हैं और हम बच्चों को नैतिकता पर प्रवचन सुनवाते हैं। उस दिन प्रार्थना सभा में एक सज्जन ने एक कहानी सुनाई-

दो भाई थे। उनमें बड़ा भाई तपस्वी था। वह आश्रम बनाकर रहता था। उसके पास कई शिष्य थे। उसने आश्रम में कई फलदार पेड़ लगा रखे थे। उन फलों का उपयोग तपस्वी स्वयं और उनके शिष्य किया करते थे।

एक दिन तपस्वी का छोटा भाई अपने बड़े भाई से मिलने उस आश्रम में आया। उस समय तपस्वी कहीं बाहर गया हुआ था। छोटे भाई को भूख लगी हुई थी। उसने वहाँ पेड़ों पर लगे फल देखे। उसने अपनी भूख मिटाने के लिये पेड़ों से फल तोड़े और खा लिये। बड़ा भाई बाहर से आया। वह छोटे भाई को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। बड़े भाई ने कहा- तुम्हें भूख लगी होगी। आओ, तुम्हें फल खिलाता हूँ।

"भैया, फल तो मैंने खा लिये। आपके आश्रम के आम बहुत मीठे हैं।"

"तुम ने फल खा लिये ! किससे पूछकर?"

"मेरे बड़े भाई के आश्रम में फलदार वृक्ष हों और मुझे भूख लगी हो तो किसी से पूछने की क्या आवश्यकता है?"

"पूछने की आवश्यकता है। इस राज्य का नियम है कि कोई भी किसी की कोई वस्तु बिना आज्ञा के न ले। बिना आज्ञा वस्तु लेना चोरी कहलाती है। इस दृष्टि से मेरे भाई तुमने चोरी की है। तुम्हें वही दंड मिलेगा जो किसी चोर को मिलता है। तुम्हें न्यायाधीश के सामने प्रस्तुत किया जायेगा। सजा के रूप में तुम्हारे दोनों हाथ काट दिये जाएँगे। चोर की यही सजा है।"

यह सुनकर छोटा भाई काँपने लगा। बड़े भाई ने कहा- भैया, मुझे इसका बड़ा दुख है। पर मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा।

कहानी सुनाकर उन्होंने बच्चों से पूछा- क्या तुम चोर बनोगे?

"नहीं" बच्चों ने जोर से कहा।

"क्या तुम ईमानदार बनोगे?"

"हाँ" सभी बच्चों ने कहा।

यह सुनकर वे प्रसन्न हो गये। उन्होंने फिर कहा, "कोई बच्चा कुछ कहना चाहे या पूछना चाहे तो खड़ा हो जाए।" राजू खड़ा हो गया। सभी को हैरानी हुई। पर अध्यापक और उसके सहपाठी जानते थे कि राजू पढ़ाई में होशियार है और पुस्तकालय में बैठकर पत्र-पत्रिकाएँ खूब पढ़ता है। फिर भी प्रधानाचार्य सोचने लगे कि यह कोई शरारत भरा प्रश्न न कर बैठे। नैतिकता सिखाने वाली इस कहानी का असर मिट न जाए।

राजू ने प्रश्न किया- आपने हम बच्चों से यह तो पूछ लिया कि चोर बनोगे या ईमानदार। यह क्यों नहीं पूछा कि क्या तुम न्यायाधीश बनोगे? यदि न्यायाधीश बने तो फल चुराकर खाने वाले किसी भूखे को क्या सजा दोगे?

राजू के प्रश्न से कहानी सुनाने वाले सज्जन सकपका गये और प्रधानाचार्य जी हैरान हो गये। अचानक वे संभले और बोले- तुम ठीक कहते हो। चलो, अब पूछ लेते हैं। क्या तुम जज बनना चाहोगे ? यदि तुम जज बने तो फल चुराने वाले भाई को क्या सजा दोगे?

"यदि ऐसे किसी मुकदमें में मैं जज होऊँगा तो हाथ काटने की सजा हरगिज नहीं दूँगा। हाथ, कान, नाक काटना तो बर्बर युग की निशानी है। हम तो सभ्य समाज के सदस्य हैं। न तो ऐसी सजा दी जानी चाहिए और न इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। भूखे द्वारा बिना पूछे फल खा लेना, इतना बड़ा अपराध भी नहीं है। फिर भी यदि इस चोरी की सजा दी जाए तो मैं ऐसी सजा दूँगा, जिससे चोर को सबक तो मिले ही, उसे और दूसरों को लाभ भी मिले।"

"ऐसी क्या सजा हो सकती है?" प्रधानाचार्य और वे सज्जन एक साथ बोले।

"मैं उस चोर को दस फलदार वृक्ष लगाने की सजा दूँगा। केवल पौधारोपण ही नहीं बल्कि फल लगने तक उसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी उसे निभानी होगी। जब वृक्षों पर फल लगने लग जाएँ तो पाँच वृक्ष उसके अपने होंगे और शेष पाँच सभी के। हाँ, इन वृक्षों के पालन-पोषण के साथ ही उसे अपनी आजीविका चलाने और परिवार पालने की जिम्मेदारी भी संभालनी होगी।"

राजू के जवाब ने प्रधानाचार्य को हैरान कर दिया। उन्होंने कहानी सुनाने वाले सज्जन की ओर देखा तो वे बोले- प्रधानाचार्य जी, यह अच्छी बात है कि आपके छात्र सिर्फ सीख ही नहीं रहे, हमें भी सिखा रहे हैं।

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