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Chhat Par Pool Bal Kahani
बाल कथा छत पर पूल : बालकथा संग्रह गलती बँट गई से संग्रहित बाल कहानी छत पर पूल आपके लिए प्रस्तुत है, पक्षियों के प्रति दया भाव का प्रदर्शन है ये बाल कहानी, पक्षी और उसके बच्चे और घोंसला बचाने के लिए छत पर पानी का तालाब बना देते है। पक्षियों के प्रति जागरूकता दिलाने के लिए मार्मिक कहानी छोटे बच्चों के लिए रोचक, शिक्षाप्रद है।
Azadi Ki Khushi Hindi Children's Story
छत पर पूल
दादाजी का कमरा घर में सबसे पहले है। मतलब आप राजू के घर में जाएँगे तो पहला कमरा उन्हीं का है। कमरे में एक बड़ी सी खिड़की हैं। उससे बाहर का नजारा दिखता है। बाहर के नजारे में उन्हें वर्षा देखना सबसे अच्छा लगता है। घर की छत से वर्षा का पानी परनाला से गिरता हुआ भी वह देखते हैं। किसी दिन यदि बरसात तेज हो और परनाले से पानी थोड़ा-थोड़ा आये तो वे समझ जाते हैं कि परनाले में कुछ फंसा है, सफाई की जरूरत है। वे तुरंत उठते हैं, छत पर जाते हैं और एक पतले लंबे डंडे से परनाला में आई बाधा को हटा देते हैं।
इस बार बरसात हुए काफी दिन हो गये थे, न वर्षा हुई न परनाला साफ करने की जरूरत हुई। एक दिन अचानक बरसात आ गई। उस समय राजू, बिरजू और उसके कई दोस्त छत पर खेल रहे थे। दादाजी अपने कमरे में खिड़की के पास बैठे थे। बरसात खूब हो रही थी, पर परनाले से एक बूँद पानी नहीं आ रहा था। उन्हें बड़ी हैरानी हुई। ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ। वे तेजी से छत पर गये। वहाँ का नजारा देखा तो और हैरान हो गये। छत पर खूब पानी जमा था। बच्चे उसी पानी में खड़े थे, कुछ सोचते हुए।
दादाजी नाराज हो गये। बोले- उस दिन तुम सब कह रहे थे कि घर के भीतर ही स्विमिंग पूल हो तो रोज नहाने का मजा लें। आज छत पर ही पूल बना लिया। जानते नहीं हो, इस तरह छत पर जमा पानी छत को कितना नुकसान पहुँचाता है। लाओ, वह डंडा। बताओ, परनाला में क्या फंसाया है। छत का पानी जल्दी निकालना बहुत जरूरी है।
"नहीं, दादाजी, हमने स्विमिंग पूल बनाने के लिये परनाला में कुछ फंसाया नहीं है। वह तो हमने....."
"अच्छा-अच्छा यह झूठ बाद में बोल लेना। अभी तो परनाला खोलना जरूरी है। वरना छत को बड़ा नुकसान हो सकता है।"
"दादाजी, हमने पुराने कपड़े और पॉलीथिन इस परनाले में इसलिये फंसाए हैं कि पानी उसके भीतर न जाए।"
"यही तो मैं कह रहा हूँ। हटो, मुझे पानी निकालने दो।"
"दादाजी, हमने पानी उसमें जाने से इसलिये नहीं रोका कि छत पर स्विमिंग पूल बन जाए। वह तो इसलिये कि इस परनाले में कई दिन से एक चिड़िया ने अपना घौंसला बना रखा है। हम रोज देखते हैं कि वह बार-बार परनाले में जाती है। परनाले के भीतर बने घौंसले में उसके अंडे या बच्चे हैं। यदि पानी उसमें गया तो अंडे या बच्चे नष्ट हो जायेंगे।"
दादाजी वहीं रुक गये। उनकी हिम्मत नहीं हुई कि परनाला में लगा अवरोध हटा दे। उन्होंने परनाले को ध्यान से देखा। यदि अवरोध हट गया तो पानी उसमें तेजी से जायेगा और घौंसले को अपने साथ बहा ले जायेगा। वह सड़क पर धड़ाम से गिरेगा और कुछ भी हो सकता है।
उन्होंने ध्यान से देखा। परनाले की लंबाई ऐसी थी कि उनका या किसी बच्चे का हाथ परनाले के भीतर नहीं जा सकता। पर घौंसला तो शीघ्र बाहर निकालना जरूरी था।
उन्होंने बच्चों से कहा- "अपने घर में बाँस की लकड़ी से बनी उठाऊ सीढ़ी नहीं है। वह सामने गुप्ता जी के पास है। सब भाग कर जाओ, वह सीढ़ी लेकर आओ। मैं.......।"
बच्चों ने इसके आगे कुछ नहीं सुना। सब भागकर गुप्ता जी के घर गये और गली में वह सीढ़ी परनाले के पास लगा दी। दादाजी, उस पर चढ़ने वाले थे कि राजू के एक चाचा आ गये। उनको सीढ़ी लाने और यहाँ लगाने का कारण बताया तो वे खुद आगे आकर सीढ़ी पर चढ़ गये। बरसात रुक गई थी। जिस चिड़िया का घौंसला था, वह भी कहीं से आ गई और वहाँ मंडरा कर चींचीं करने लगी।
राजू के चाचा ने अपना लंबा हाथ परनाले में डाला और घौंसला सुरक्षित बाहर निकाल लिया। उसमें चिड़िया का बच्चा था, एक दम छोटा सा। उसे छत पर ही एक सुरक्षित जगह रख दिया। चिड़िया वहाँ पहुँच गई। राजू के चाचा ने ही छत पर जाकर परनाला में लगा अवरोध हटा दिया। छत का पानी तेजी से नीचे गिरने लगा। सारे बच्चे उस गिरते पानी के नीचे नहाने लगे। उछल-कूद मचाने लगे।
दादाजी हँसते हुए बोले- पहले तो तुम कभी परनाले के नीचे नहीं नहाए। आज क्यों?
क्योंकि यह परनाले का पानी नहीं, हमारे स्विमिंग पूल का पानी है। बिरजू ने कहा- "दादाजी, देखना, मैं खूब पढूँगा। फिर बड़ा होकर खूब कमाऊँगा और एक दिन नया, पक्की से पक्की छत वाला घर बनाऊँगा और छत पर बनाऊँगा पूल....."
अब तो सब हँस रहे थे।
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