हवा ने चाँटा मारा : बाल मनोविज्ञान पर आधारित दिविक रमेश की लिखी कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Children's Story the wind blew, Hindi Bal Kahaniyan, Kids Stories in Hindi, Hawa ne Chatna Maara Hindi Kahani, Divik Ramesh Stories in Hindi, Hindi Children Stories by Divik Ramesh.

Bal Kahani in Hindi

दिविक रमेश की बाल कहानी

हिन्दी बाल कहानी हवा ने चाँटा मारा : डॉ. दिविक रमेश जी द्वारा लिखी गई रोचक बाल कहानी हवा ने चाँटा मारा, बच्चों के लिए कहानी, बाल कहानी इन हिंदी, मजेदार बाल कहानियां। बालमनोविज्ञ आधारित कहानी, रोचक , सरस और ज्ञानवर्धक कहानी, नवाचार है शब्दों के माध्यम से सहज‌, सरल और प्रवाहमान भाषा में लिखी गई बाल कहानी।

दिविक रमेश की बाल कहानी

हवा ने चाँटा मारा

‘मुझे चाँटा क्यों मारा हवा?’ -अर्श ने मुँह बना कर पूछा। कोई जवाब नहीं आया। उसने सोचा। सोचा तो मानो ‘सोचा’ ने ही बताया- हवा को बोलना कहाँ आता है। मनुष्यों की तरह। फिर वह कैसे जवाब देगी। उसे तो सूँसूँ..सनसन..सनन..सनन..घूँघूँघूँघूँ करना आता है या चुपचाप गुम होकर रहना। अर्श चुप हो गया। दिमाग था कि वह चलता ही रहा। भीतर ही भीतर।

हवा तेज चली थी। इतनी तेज कि लगे जैसे चाँटा मार रही हो। अर्श को ऐसा ही तो लगा था। ऐसे में उसका परेशान होना जरूरी था। वैसे भी अर्श को क्यों, क्या जैसे सवाल करने में बड़ा मजा आता था। कुछ घटना या होना चाहिए। थोड़ा अलग-सा। बस। नानी के शब्दों में कहूँ तो वह कान खाकर भी पीछा छोड़ दे तो समझो बहुत कम में छूट गए। सच तो यह है। जब तक उसे उत्तर न सूझे या न मिले तो उसे लगता था कि जैसे आसमान उसके सिर पर बोझ बन कर बैठ गया है।

हवा ने चाँटा मारा हो और अर्श चुप हो कर रह जाए, यह तो हो ही नहीं सकता था। उसके मन ने उसे बेचैन देखा तो मानो कान में कहा- अर्श भैया खूब डूब कर सोचो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। अर्श सचमुच डूब कर सोचने लगा था। लगा जैसे वह सोच की लहरों में फँसता गया हो। सोच की एक लहर उसे इधर पटकती तो दूसरी उधर। पर उसने डरना तो सीखा ही नहीं था। उसका मानना भी तो था कि जो काम करो पूरे मन से करो। माँ की कही यह बात अब उसकी अपनी बात जो हो चुकी थी। माँ ने तो यह भी बताया था कि हर आदमी को अपने ठीक काम को करने पर ध्यान देना चाहिए। दूसरे गलत लोग क्या करते हैं या क्या कहते हैं उसकी परवाह किए बिना।

अर्श को जाने क्यों लगा कि हवा भी कुछ सोचने लगी है। असल में अब हवा बहुत हद तक शांत हो चुकी थी। कुछ-कुछ मीठी-मीठी भी। धीरे-धीरे बहने लगी थी। 

अर्श अब भी परेशान था। अब इसलिए। उसे लगा कि हवा ने उत्तर दिया हो तो! अपनी ही भाषा में सही। और वह समझ ही नहीं पाया हो। क्या समझेगी हवा। नासमझ! ‘पर मैं तो समझदार हूँ’, अर्श ने तुरंत सोचा। रास्ता तो निकालना ही होगा।

उसके दिमाग में तो बस एक ही सवाल चल रहा था - ‘हवा तुमने मुझे चाँटा क्यों मारा?’ पर सोच भी लगातार रहा था। 

आखिर उसे सूझ ही गया। वह खुश हुआ। मन भी खुश हुआ। सोच तो नाचने को ही तैयार थी। सच तो यह है। अर्श को मजा भी आया और आराम भी मिला। एक बार तो हवा की नकल ही कर बैठा। मुँह से सीटी की सी हवा की आवाज निकाल कर।

असल में उसे एक आइडिया आया था। उसने सोचा कि क्यों न वह हवा भी बन जाए। नाटक और फिल्मों में दो भुमिकाएँ निभाने वाले अभिनेता की तरह। अर्श और हवा! अर्श पूछेगा और हवा जवाब देगी।

अर्श की भूमिका में उसने सवाल किया-‘ हवा तुमने मुझे चाँटा क्यों मारा था?’ फिर थोड़ा घूम कर दोनों बाहों और शरीर को हिला-हिला कर हवा की भूमिका में आ गया। थोड़ी देर चुप रहा। जिधर से अर्श बोला था उस ओर कुछ देर तक देखा। फिर बोला। यानी बोली। हवा जो बना था। आवाज को थोड़ा बदल कर-‘ मैं क्यों मारूँगा तुम्हें चाँटा।‘ तभी, पता नहीं क्या बनकर, अर्श के मुँह से निकला-‘धत्त तेरे की! यह क्या कर गया। अरे भई हवा ‘मारूँगा’ नहीं ‘मारूँगी बोलेगी। पवन होती तो अलग बात थी।‘ सो हवा की भूमिका में अर्श फिर बोला,’ मैं क्यों मारूँगी चाँटा?’ 

अर्श ने अर्श की भूमिका में लौट कर कहा, ‘चाँटा ही तो मारा था हवा। देखो मेरा गाल अभी तक दुख रहा है।

हवा की भूमिका में आकर कहा, ’ओह! मैं तो जोर-जोर से चल रही थी। तुम्हें मेरा चलना चाँटा लगा।? 

अर्श की भूमिका में कहा-‘ हाँ, तेज चलती ही क्यों हो? 

हवा की भूमिका में अर्श बोला, ‘मैं क्यों बताऊँ। दबाव वाली बात। वही वायुमंडलीय दबाव की बात। अपनी विज्ञान की पुस्तक पढ़ कर समझ लो न? 

‘अरे हाँ, मैं तो भूल ही गया था। अपनी दोस्त विज्ञान की पुस्तक को।‘, अर्श ने कहा।

‘तेज हवा से कैसे बचा जाए, यह भी जान लेना।‘, हवा ने मानो हँसकर कहा। वैसे हँसा तो अर्श ही था। हवा की ओर से। 

हवा की भूमिका में अर्श के चेहरे पर थोड़ा दुख झलका। प्यार वाला। अर्श की भूमिका वाले अर्श की ओर हाथ बढ़ा कर जैसे उसके गाल को प्यार से छुआ। लगा जैसे उसकी आँखें गीली हो गई थीं। बोली- “ मुझे माफ कर दो अर्श। मैं क्या करूँ। समझ ही गए होगे कि मैं यह सब जान बूझकर नहीं करती। मेरा सहज रूप है। इसके पीछे कारण होते हैं। अपना ध्यान तुम्हें ही रखना होगा।‘ 

अर्श की भूमिका में अर्श को बहुत अच्छा लगा। उसने बस इतना कहा-“ हवा, तुम मेरी दोस्त बनोगी न? 

हवा की भूमिका में हर्ष ने कहा,’ हाँ’ । 

दोनों गले मिल गए। कैसे? मैं क्यों बताऊँ। इतना तो खुद ही सोच लो। मुझे पता है। तुम नहीं हो बछिया के ताऊ। अर्श की तरह समझदार हो। 

लो, तुम्हारे चक्कर में भूल ही गया। बता दूँ कि अर्श अब भी परेशान था। पर परेशान वाला परेशान नहीं। सबको अपनी समझदारी ‘शेयर’ करने की जल्दी वाला परेशान। पर अब तो देर बहुत हो गई है। कल सुबह तक तो इंतजार करना ही होगा। वह खुश जरूर था। उसकी समझ में हवा के चाँटे मारने का कारण जो था।

Divik Ramesh: एल-1202, ग्रेंड अजनारा हेरिटेज, सेक्टर-74, नोएडा-201301

ये भी पढ़ें; नैतिक शिक्षा के साथ बच्चों के लिए जानवरों की बाल कहानियाँ : हाथी पर ऊँट

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top