नन्ही अनवी, प्रिया बनीं डॉक्टर - बाल कहानी इन हिन्दी

Dr. Mulla Adam Ali
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Dr. Rakesh Chakra Children's Stories in Hindi, Bal Kahaniyan in Hindi, Kids Stories in Hindi, Bal Katha in Hindi.

Children's Story in Hindi

Children's story in hindi

बाल कहानी : डॉ. राकेश चक्र द्वारा लिखी गई हिंदी बाल कहानी नन्ही अनवी, प्रिया बनीं डॉक्टर आपके समक्ष प्रस्तुत है हिन्दी बाल कहानी संग्रह में। बच्चों की मजेदार बाल कहानी पढ़िए और शेयर कीजिए।

Bal Kahani in Hindi

नन्ही अनवी, प्रिया बनीं डॉक्टर

प्रिया और अनवी दोनों जुड़वाँ बहनें थीं। दोनों की मस्ती देखते ही बनती। दोनों ही बिंदास, फूलों की तरह खिलने और मुस्कराने वालीं। उम्र साढ़े तीन साल से अधिक न थी।

 उनके पापा उन्हें नए-नए खिलौने लाकर देते रहते। 

दोनों ही बच्चों के साथ खूब खेलती और खेल-खेल में इंग्लिश व हिंदी के अक्षर भी सीख गई थीं। गिनती तो फर-फर सुना देती। 

उनके पापा किराए के मकान में रहते थे। उसी मकान में अन्य छोटे व बड़े बच्चे थे, प्राची, आयुष व सुमन, जो उनके साथ खूब खेलते और बातें करते।

आयुष के बाबा जी को भी सभी बच्चों से बहुत लगाव था। वे बच्चों के संग बच्चे बन जाते। खूब हँसते-हँसाते। उन्हें हमेशा ही बच्चों में ईश्वर दिखते। उन्हें बच्चे, पेड़-पौधे और पक्षी सबसे अधिक प्रिय थे। सैकड़ों पक्षी उनके रोज मेहमान बनते। बच्चों की निश्छल मुस्कान व पक्षियों का कलरव आनंदित कर देता। मन के सभी तनाव दूर भाग जाते।

आयुष के बाबा को आज जब दोनों आंगन में खेलती नहीं दिखीं तो उन्होंने आयुष से कहा, "बेटा आयुष दोनों को बुलाकर लाओ। हम उनके लिए चॉकलेट और केले लाए हैं और आप भी खाओ।"

"ठीक है बाबाजी मैं अभी बुलाकर लाता हूँ।"

उन्हें जब पता चला कि बाबा हमारे लिए खाने की चीज लाए हैं तब दोनों ही दौड़ती हुई आ गईं और बाबा जी से चिपट-लिपटकर प्यार उड़ेलने लगीं ।

और दोनों ही हँसते हुए बोली, " बब्बा हमारे लिए क्या लाओ हो?"

दोनों ही बाबा जी को प्यार में बब्बा कहती, क्योंकि मेरठ की मूल निवासी होने के कारण वहाँ बाबा या दादा को बच्चे स्नेह से बब्बा कहते हैं।

 बाबा जी ने दोनों को प्यार किया और उन्हें गुलगुली कर दी , दोनों ही इधर-उधर दौड़ने लगीं, उन्हें गुलगुली का असर कुछ ज्यादा ही होता था। खूब हँसने लगीं।

 बाबा जी ने सभी बच्चों को चॉकलेट व केले दिए। बच्चे हँसते मुस्कराते हुए खाने लगे। जब उन्होंने खा लिया, तब प्रिया बोली, "बब्बा हम आपके साथ खेलेंगे।"

अनवी भी नकल कर बोली, "बब्बा हम भी खेलेंगे।"

दोनों ही अपने घर में गईं और एक-एक कर अपने सारे खिलौने लाने लगीं।

"बब्बा यह देखो मेरी बस, हाथी, घोड़ा, गुड़िया---।"

अनवी भी उसकी नकल करने लगी, " बब्बा यह देखो मेरी कार, बंदूक-----।"

"अरे वाह यह तो बहुत प्यारे खिलौने हैं अनवी,  प्रिया।"

बाबा जी ने फिर उन्हें गुलगुली कर दी , फिर दोनों ही जोर-जोर से हँस-हँस कर खेल करती रहीं।

अनवी बोली, "बब्बा मैं तो डॉक्टर बनूँगी। देखो मेरे पापा डॉक्टरों वाली किट लाए हैं।"

तभी प्रिया उसे डपटते हुए बोली, "बब्बा यह किट इसकी अकेली की नहीं है , यह तो हम दोनों की है। हम दोनों ही डॉक्टर बन-बन कर रोज खेलती हैं।"

तभी अनवी ने स्टेथोस्कोप निकाला, जिससे डॉक्टर मरीजों की जांच करते हैं। स्टेथोस्कोप एक चिकित्सीय उपकरण है , जिसका उपयोग शरीर के भीतर उत्पन्न होने वाली ध्वनियों को सुनने के लिए किया जाता है, मुख्यतः हृदय या फेफड़ों में। स्टेथोस्कोप में, रोगी के हृदय की धड़कनों की ध्वनि, ध्वनि जो कई परावर्तनों द्वारा डॉक्टर के कानों तक पहुँचती है।

उसने जैसी ही प्रिया के चैस्ट पर स्टेथाॅस्कोप लगाया। सभी को जोर की हँसी आ गई।

तभी अनवी हँसते हुए बोली, "मैं तो डॉक्टर हूँ बब्बा।"

अनवी से बाबा ने कहा कि, "हमारा भी इलाज कर दो अनवी बेटा।"

तभी प्रिया बोली, " बब्बा मैं आपका इलाज कर दूँगी।"

उसने अनवी से स्टेथोस्कोप लेकर बाबा के पेट पर लगा दिया। 

और बोली, "बब्बा अब ठीक हो गए न।"

इतना सुनते ही बाबा जी को जोर की हँसी आ गई। सभी बच्चे भी हँसने लगे।

उन्हें बाबा जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा,"ओ ! हमारी दोनों प्यारी डॉक्टरों। सच में ही तुम दोनों डॉक्टर बनोगी।"

तभी बाबा जी ने उन्हीं को लेकर एक कविता बनाकर सुनाई तो बच्चे और खिलखिलाकर हँसने लगे -

अनवी, प्रिया खूब हँसाती।

कभी-कभी डॉक्टर बन जाती।

होय गुलगुली हँसें जोर की।

नस हिल जाती पोर-पोर की।

सच में लगें रबड़ की गुड़िया।

खूब चाटती चूरन पुड़िया।

चॉकलेट , केले खूब सुहाएँ।

खाते-खाते गीत सुनाएँ।

बचपन होता रंगबिरंगा।

मन होता हँसने से चंगा।

- डॉ राकेश चक्र,

90 बी, शिवपुरीमुरादाबाद 244001, उ.प्र.

यूट्यूब चैनल योग साहित्य संस्कृति।

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