एक खास मुकाम बनाएगा यह बालकथा संग्रह : गलती बँट गई

Dr. Mulla Adam Ali
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Galti Bat Gai Bal katha Sangrah

Galti Bat Gai Bal katha Sangrah

गलती बँट गई

एक खास मुकाम बनाएगा यह बालकथा संग्रह

गोविंद शर्मा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे राजस्थान के पहले हिंदी बाल साहित्यकार हैं जिन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी ने उनके बाल कहानी संग्रह 'काचू की टोपी' के लिए बाल साहित्य पुरस्कार (2019) से विभूषित किया है। इससे पहले भी वे प्रकाशन विभाग, भारत सरकार के भारतेंदु पुरस्कार और राजस्थान साहित्य अकादमी के शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों-सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं। पैंतालीस से अधिक पुस्तकों के प्रणेता शर्मा जी का अब एक और बालकथा संग्रह 'गलती बँट गई' प्रेस व प्रकाशन के लिए तैयार है।

हिंदी साहित्यविद बाबू गुलाबराय के मुताबिक कहानी स्वयं में एक पूर्ण रचना होती है। एक ऐसी रचना जिसमें किसी तथ्य अथवा प्रभाव को आगे बढ़ाने वाली घटना के चढ़ाव-उतार के साथ ही पात्रों के चरित्र का भी कौतूहलपूर्ण चित्रण होता है। इस दृष्टि से 'गलती बँट गई' में संकलित तेरह छोटी-बड़ी बाल कहानियों से गुजरना सुखद ही रहा। यों तो यहाँ सभी कहानियों के अपने-अपने रूप-स्वरूप हैं और अपने-अपने संदेश भी, मगर 'आजादी की खुशी' ऐसी मार्मिक रचना है जो स्वाधीनता की व्याख्या अलग ही अंदाज में कर जाती है।

इस कहानी में राजू और मिट्टू में बड़ी घनिष्ठता है। एक दिन स्कूल से लौटने पर पिंजरा खुला देखकर राजू घर को ही सिर पर उठा लेता है। पापा अगले ही दिन वैसा ही तोता ले आते हैं। उसे नाम भी मिलता है मिट्टू । तीसरे-चौथे दिन राजू पंद्रह अगस्त के उत्सव से लौटते ही मिट्टू के नजदीक जाता है तभी पिंजरे का दरवाजा खुल जाता है और वह उड़कर छत पर पहुँच जाता है। पीछे-पीछे दौड़ते हुए राजू समझता है कि मिट्टू भी आजादी का पर्व मना रहा है। बस राजू का गुस्सा बरबस ही ठंडा पड़ जाता है और पिंजरे को कबाड़ में फेंककर हाथ उठाते हुए 'हैप्पी इंडिपेंडेंस डे' कहकर छत से नीचे उतर आता है।

ऐसी ही प्यारी-सी कहानी है 'नया फैसला'। पर यहाँ कहानी में भी एक और कहानी मौजूद है। स्कूल की प्रार्थना सभा में अतिथि वक्ता एक कहानी सुनाते हैं, दो भाइयों की। बड़े भाई के आश्रम में अचानक छोटा भाई पहुँचता है और भूख लगने पर पेड़ों पर लगे कुछ फल खा लेता है। बाहर से लौटते ही बड़े भाई को पता चलता है तो वह कहता है कि राज्य में बिना अनुमति फल खाने पर दोनों हाथ काटे जाने की सजा मिलती है। ...और वक्ता इसी से जुड़े कुछ सवाल-जवाब करते हैं। तभी एक छात्र राजू कहता है कि मैं न्यायाधीश बना तो हाथ काटने के बजाय चोर को दस फलदार वृक्ष लगाने की सजा दूँगा, जिनमें से पाँच वृक्षों पर उसका अधिकार होगा और पाँच पर दूसरे लोगों का। अब प्रधानाचार्य अतिथि वक्ता की ओर देखते हैं और कहते हैं- यहाँ तो बच्चे सीख ही नहीं रहे, बड़ों को भी सिखा रहे हैं।"

'वह सुधर गया' संग्रह की ऐसी बाल कहानी है जिसमें ईंट-भट्टे पर काम करने वाले चक्कू को चोरी व नशे की लत लग जाती है। वही आदतें वह बारह-तेरह की उम्र के बेटे को भी सिखा देता है। एक दिन बेटा किसी मासूम बच्चे के पचास रुपये चुराकर लौटता है, पर उदास है। वह पिता को गलत काम के लिए अपने पैसे नहीं छीनने देता, क्योंकि ये पैसे उस बच्चे के हैं जो अपने चार भाई-बहनों के लिए कुछ खरीदने के लिए मेले में आया था। फिर भी चक्कू पैसे छीनकर बाहर निकल जाता है, पर लौटता है तो नशे में नहीं होता। बल्कि बेटे के पास बैठकर कहता है- आज तूने मुझे उल्टा सिखा दिया है, मैं तुझे गुरु मानता हूँ। फिर से ईंट-भट्टे वाला काम करूँगा... और बाप-बेटा गले मिल जाते हैं। उधर चक्कू की पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़ते हैं।

वस्तुतः इस संग्रह की इंद्रधनुषी बाल कहानियाँ कसावट की कसौटी पर तो खरी उतरती ही हैं, शिल्प व संवाद की दृष्टि से भी बड़ी रोचक बन पड़ी हैं। 'शैतान की नानी' को ही देखें तो इस कहानी में पाँच वर्ष की शरारती बच्ची नन्ही और उसकी बुआ के बेटे राजू की आपसी बातचीत कैसे पाठक के मन को छू लेती है, देख सकते हैं ऐसी ही एक बानगी- नन्ही अपने मन की बात मन में नहीं रख सकी। उसने राजू को पकड़ लिया और पूछा- "बताओ राजू, क्या मैं तुम्हारी नानी लगती हूँ?"

अरे...रे, यह क्या कह रही हो? मेरी नानीजी तो वे हैं जिन्हें तुम दादीजी कहती हो।

नहीं, मैं हूँ तुम्हारी नानी। घर में सब तुम्हें शैतान कहते हैं और मुझे कहते हैं शैतान की नानी। आगे से तुम मुझे नन्ही नहीं, नानी कहोगे।

यों तो कथावस्तु, पात्र-चित्रण, सीख-सिखावन, भाषा-शैली आदि की दृष्टि से 'छत पर पूल', 'रास्ते का पानी, 'तीन बंदर बना', 'आजादी की टोपी', 'कौन है शक्ल बदलू', 'मिर्च की सी-सी' आदि कहानियाँ भी हैं जो बरबस ही पाठक का ध्यान खींचती हैं। फिर भी पहली कहानी है 'गलती बँट गई', जिसमें बब्बू अपनी मम्मी के कहते ही सब्जी के छिलकों से भरा पॉलीथिन गली में घूमते सांड को खिलाने के लिए निकल पड़ता है लेकिन लौटता है तो गुमसुम, डरा-डरा सा... क्योंकि सांड झपटकर पॉलीथिन सहित छिलके निगल जाता है। इस पर बब्बू ही नहीं, उसके मम्मी-पापा के साथ-साथ दादीजी भी खुद को गलती में हिस्सेदार मानती हैं, यानी गलती बँट जाती है। तब दादाजी समझाते हैं कि अब कहाँ बची है गलती ? वह तो खत्म हो गई ।... अनजाने में कोई गलती हो जाए, हम मान लें कि गलती हो गई और सोच लें कि आगे से नहीं करेंगे तो गलती रहती ही नहीं ।... बस, बब्बू खुश हो जाता है और आज हुए क्रिकेट मैच की कहानी सुनाना शुरू कर देता है। साथ ही बालकथा संग्रह को भी एक नाम मिल जाता है 'गलती बँट गई'।

इन कहानियों का भाषिक प्रवाह और उनमें निहित सहज चुटीलापन संपूर्ण प्रस्तुति को संप्रेषणीय, बोधगम्य बना जाता है। यों कृति का वास्तविक मूल्यांकन तो पाठक ही करेंगे, किंतु विश्वास किया ही जा सकता है कि गोविंद शर्मा का बालकथा संग्रह 'गलती बँट गई' अपनी सार्थकता साबित करेगा और उनकी पूर्व प्रकाशित कृतियों की तरह ही पाठकों के बीच एक खास मुकाम बनाएगा।

- भगवती प्रसाद गौतम

सदस्य, पं. जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान

Galti Bat Gai Bal katha Sangrah

शानदार बालकथा संग्रह : गलती बँट गई

मैं छोटा या बड़ा साहित्यकार नहीं हूँ, २० साधारण पाठक हूँ, विशेषतः श्री गोविंद शर्मा की बालकथाओं का नियमित पाठक हूँ कहूँ। मैं गत 20 से अधिक वर्षों से उन्हें पढ़ता आ रहा हूँ। मुझे खुशी है कि मैंने बाल साहित्य की सर्वोत्तम रचनाओं को पढ़ा है। दूसरी खुशी यह है कि मेरे जैसे साधारण पाठक को फ्लैप पर जगह दी जा रही है।

श्री गोविंद शर्मा जी गत 50 वर्ष से बाल साहित्य की रचना करते आ रहे हैं। वे राजस्थान के एकमात्र बाल साहित्यकार हैं, जिनके हिंदी बालकथा संग्रह 'काचू की टोपी' (प्रकाशक- साहित्यागार, जयपुर) को केंद्रीय साहित्य अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार (2019) मिला है। इस समय मेरे सामने है उनका नवीनतम बालकथा संग्रह 'गलती बँट गई'। इसमें तेरह बालकथाएँ हैं। हर कहानी में रोचकता, मनोरंजन और सीख है। पहली कहानी पॉलीथिन के अंधाधुंध प्रयोग के बारे में है। कहानी से यह भी शिक्षा मिलती है कि अनजाने में कोई गलती हो जाए तो हर समय उसके सोच में डूबे नहीं रहना चाहिए, बल्कि गलती का अहसास होने और भविष्य में इसे न दोहराने का संकल्प लेने पर गलती, गलती नहीं रहती। जब हमें अपनी आजादी प्रिय है, हम उसका जश्न मनाते हैं तो परिंदों को पिंजरे में बंद करके उनकी आजादी क्यों खत्म करते हैं? यह कहानी है-'आजादी की खुशी'। पक्षियों के प्रति दया भाव का प्रदर्शन है कहानी 'छत पर पूल' में। पक्षी, उसके बच्चे और उसका घोंसला बचाने के लिए लड़के छत पर पानी का तालाब बना देते हैं। 'तीन बंदर बना',' मिर्च की सी...सी'।

'साबुन में क्या??', 'शैतान की नानी' कहानियों में बाल सुलभ चंचलता और भरपूर मनोरंजन है। 'वह सुधर गया' भी बाल मन की स्वच्छता और मासूमियत की कहानी है। 'नया फैसला' आज के बच्चे की आवाज है। कोई भी कहानी सुनकर वह केवल हुंकारा नहीं भरता, बल्कि अपने मन के अनुसार फैसला लेता है। 'रास्ते का पानी' में दो संदेश है। हमें पानी की एक-एक बूँद का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए। दूसरा है विकास के नाम पर पेड़, जंगल, हरियाली की बलि नहीं दी जानी चाहिए। 'कौन है शक्ल बदलू' रोचक, तेज और सजग दृष्टि की कहानी है। सभी कहानियाँ बाल पाठक के लिए पठनीय है। यह बालकथा संग्रह उनके लिए विशेष उपलब्धि होगी। इस शानदार बालकथा संग्रह के लिए मैं आदरणीय गोविंद शर्मा जी को बधाई देता हूँ ।

- लोकेश जैन

Galti Bat Gai children's story collection

मेरी बात

सर्वप्रथम सुपरिचित साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद गौतम जी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने एक अनुरोध पर मेरे इस बाल कथा संग्रह की भूमिका लिख दी। उन्होंने इस संग्रह की सभी बालकथाओं को सरसरी निगाह से देखा नहीं, बल्कि मनोयोग से पढा है। उनकी लिखी भूमिका तो प्रभावशाली है ही, रचनाओं में जहाँ भी अल्पविराम, पूर्ण विराम की चूक हुई है, वहाँ भी इशारा किया है, दुरुस्ती का आग्रह किया है। धन्यवाद श्री गौतम जी।

मैं साहित्यगार प्रकाशन जयपुर के श्री हिमांशु वर्मा के प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ कि उन्होंने मेरे एक अनुरोध पर बाल कथा संग्रह 'गलती बँट गई' का प्रकाशन करना मान लिया। दरअसल इसका श्रेय उनके स्वर्गीय पिता श्री रमेश चंद्र वर्मा जी को जाता है। वर्मा जी ने सन् 1998 में पहली बार मेरी पुस्तक प्रकाशित की थी। फिर तो वह स्वयं ही कहने लगे कि कोई पांडुलिपि भेजो। कई बार तो वे स्वयं कह देते कि फलां विधा की या फलां विषय की रचनाएँ भेजो। उनके कारण बालकथा, लघुकथा और सामान्य ज्ञान की मेरी अनेक पुस्तकें उनके यहाँ से प्रकाशित हुई। वह परंपरा अब भी जारी है। इस संग्रह में तेरह बाल कथाएँ हैं। ये बाल कथाएँ किसी एक दिन या एक महीने में नहीं लिखी गई हैं। साल भर में जब भी कोई बालकथा का प्लाट दिमाग में आया, तब लिखी गई। मित्रों और संपादकों को यह सभी कहानियाँ पसंद आती रही हैं। व्यंग्य और लघुकथाएँ भी लिखी हैं। पर बाल पाठक के लिए लिखते समय सदा आनंदित होता रहा हूँ। लेखक नहीं, पाठक का पद बड़ा होता है। निसंदेह मेरे पाठक उम्र में मेरे से छोटे होते हैं, फिर भी उनके आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ। उनका आशीर्वाद रहा तो जब तक हाथ कलम पकड़ने में समर्थ रहेंगे, मैं उनके लिए साहित्य की रचना करता रहूँगा।

धन्यवाद

- गोविंद शर्मा

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