हिंदी दिवस विशेष: भारत की आत्मा है हिंदी - डॉ. मंजु रुस्तगी

Dr. Mulla Adam Ali
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14 September Hindi Day Special Bharat Ki Atma Hain Hindi by Dr. Manju Rustagi, Hindi Diwas Par Visesh, National Hindi Day.

Hindi Diwas Special: Bharat Ki Atma Hain Hindi

Bharat Ki Atma Hain Hindi

हिंदी दिवस विशेष: 14 सितंबर राष्ट्रीय हिंदी दिवस और 10 जनवरी अंतराष्ट्रीय हिंदी दिवस को पूरे देश और दुनिया में बड़े उत्साह के साथ हिन्दी भाषा प्रेमी हिंदी दिवस को मनाते है, हिन्दी हमारी पहचान है, हमारी शान है, हिन्दी भारतीय संस्कृति की आत्मजा है, आज हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा के महत्व पर डॉ. मंजु रुस्तगी जी का आलेख हिन्दी भारत की आत्मा पढ़िए और शेयर कीजिए। हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।

Hindi Day Special: Hindi is the soul of India

भारत की आत्मा : हिंदी

  भारत जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, अपने ऐतिहासिक महत्व, व्यापारिक प्रसार, भौतिक संपन्नता और दार्शनिक संपदा के कारण संपूर्ण विश्व के आकर्षण का केंद्र रहा है। यही कारण है कि इस सोने की चिड़िया को कई वर्षों तक गुलामी के पिंजरे में कैद होकर रहना पड़ा। भारत में अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए यहाँ पर आक्रमण करने वालों ने बहुसंख्यक लोगों की भाषा हिंदी को संपर्क भाषा के रूप में सीखा, जाना-समझा और प्रयोग किया।

    जन्म से लेकर मृत्यु तक सारे संस्कारों को धारण करने वाली हिंदी हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों के सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक है। यह हमारे पारंपरिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु का कार्य करती है। भाषा सदा से ही अपने परिवेश से प्रभावित होती रही है। समाज का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक वातावरण भाषा को गढ़ता है, यही कारण है कि भारत में और विदेशों में बोली जाने वाली हिंदी का रूप बहुरंगी है। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष गोपीचंद नारंग की बात स्मरण हो आती है कि "बाहर के देशों की दूसरी भाषाओं से हिंदी ग्रहण कर भी रही है और एक डाइलेक्टल संबंध उनको दे भी रही है। इससे उसके अंदर एक नया रंग-रूप आ रहा है।" 

    हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही 11 राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। हिंदी के विस्तार में तकनीक ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज मोबाइल, कंप्यूटर पर हिंदी पढ़ना-लिखना अधिक सुलभ हो गया है। व्यापार भी हिंदी के प्रचार-प्रसार का एक मुख्य कारण रहा है और टीवी, फिल्मों की लोकप्रियता को इस संबंध में कैसे नकारा जा सकता है। 

   भारत में अहिंदी भाषियों तथा विदेश में हिंदी की लोकप्रियता का सशक्त माध्यम हिंदी फिल्में हैं। यही कारण है कि अन्य भाषाओं तथा विदेशी फिल्में अब सबटाइटल्स तथा डबिंग में उपलब्ध हैं। यह हिंदी की शक्ति, हिंदी की महत्ता और हिंदी की स्वीकृति ही है कि चाहे वह हॉलीवुड फिल्म निर्माता हो या फिर दक्षिण भारतीय भाषाई फिल्में...सब अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करवाना और रिलीज करवाना चाहते हैं।

    विकसित देशों की ओर रुख करें तो उनमें भी हिंदी को लेकर उत्साह बढ़ा है और इसका प्रमुख कारण है बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना उत्पाद बेचने के लिए आम आदमी तक पहुँचना होता है और इसके लिए जनभाषा ही सशक्त माध्यम होती है। विदेश में आज 40 से भी अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। इनमें नेपाल, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, इंडोनेशिया, मलेशिया आदि दक्षिण पूर्वी देश हैं ।अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के देशों में हिंदी को विश्व की आधुनिक भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इसमें अरब और अन्य इस्लामी देश भी शामिल हैं।

    हिंदी का बढ़ता प्रभाव इस बात से ही रेखांकित होता है कि स्मार्टफोन के लिए कई तरह के एप्लीकेशंस हिंदी में विकसित हुए हैं और फेसबुक और गूगल जैसी बड़ी वेबसाइट्स भी इंडिया और दुनिया भर के उपभोक्ताओं के लिए हिंदी में जानकारी उपलब्ध करा रही है। वह दिन भी अब दूर नहीं है जब आपका ईमेल आईडी भी आप हिंदी में बना पाएंगे। आज हिंदी के 15 से भी अधिक सर्च इंजन हैं जो किसी भी वेबसाइट का चंद मिनट में हिंदी अनुवाद करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। 

    एशियाई संस्कृति की प्रतिनिधि हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य विदेश मंत्रालय द्वारा 'विश्व हिंदी सम्मेलन' और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से किया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष सरकार द्वारा 'प्रवासी भारतीय दिवस' मनाया जाता है जिसमें विश्व भर में रहने वाले प्रवासी भारतीय भाग लेते हैं। विदेश में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम में भारतीय मूल्यों का विश्व में और अधिक विस्तार हो रहा है। विश्व भर में भारतीय समुदाय के लोग संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं।

    आखिर क्यों न हो हिंदी इतनी लोकप्रिय...... हिंदी का उद्भव भाषाओं की जननी, देवभाषा संस्कृत से हुआ है जो आज भी तकनीकी क्षेत्र (कंप्यूटर आधारित प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बौद्धिकता आदि) में प्रयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी जा रही है। इसके व्याकरणिक नियम अपवाद रहित हैं इसीलिए यह स्पष्ट और सरल है। हिंदी की वर्णमाला ध्वन्यात्मक होने के साथ-साथ सर्वाधिक व्यवस्थित वर्णमाला है जिसमें सभी वर्णों को उनके उच्चारण, स्थान आदि की विशेषताओं के आधार पर रखा गया है। हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। इसमें प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित लिपि चिन्ह का प्रयोग होता है और एक लिपि चिन्ह एक ही ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी ग्राह्य-शक्ति... जो दूसरी भाषाओं के शब्दों को बड़ी आत्मीयता से ग्रहण कर स्वयं को समृद्ध करती जा रही है। आज हिंदी के शब्दकोश में ढाई लाख से भी अधिक शब्द हैं और यह लगातार निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं। हिंदी में गूंगे अक्षर नहीं होते तथा इसमें निर्जीव वस्तुओं के लिए भी लिंग का निर्धारण होता है। हिंदी एक व्यवहारिक भाषा है क्योंकि इसमें प्रत्येक संबंध के लिए अलग-अलग शब्द हैं।

   हिंदी को वैश्विक भाषा का दर्जा देने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि हिंदी भाषा का पहला व्याकरण एक डच विद्वान केटलर ने लिखा था। हिंदी साहित्य का पहले-पहल इतिहास लिखने वाले फ्रांसीसी विद्वान गार्सिन द टैसी थे और हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण भी प्रथम बार सर जॉर्ज एब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया था। यहाँ तक कि हिंदी में सबसे पहला शोध कार्य 'द थियोलॉजी ऑफ़ तुलसीदास' भी एक इंग्लिश शोधकर्ता जे. आर. कारपेंटर ने लंदन यूनिवर्सिटी में प्रस्तुत किया था। सब जानते हैं कि बुनियादी हिंदी शिक्षण विधि की पाठ्य पुस्तक की रचना जॉन गिलक्राइस्ट ने की थी। हिंदी अतीत में भी लोकप्रिय थी और आज भी....हमें गर्व होता है जब इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ के अंतिम संस्कार के समय वहाँ के विद्यार्थियों ने वेद मंत्रों का उच्चारण कर उन्हें अंतिम विदाई दी। हिंदी को भले ही भारत में कुछ राजनीतिक कारणों के कारण राष्ट्रभाषा का पद न मिला हो लेकिन वह वैश्विक भाषा बनने के सोपान निरंतर चढ़ रही है। संपर्क भाषा के रूप में यह लोगों के बीच भावात्मक संबंध स्थापित कर रही है।

   हिंदी भारत की आत्मा है। इसकी जमीन जितनी प्राच्य है, इसका फलक उतना ही विस्तृत है। आवश्यकता है अपने मन की हीन ग्रंथियों को तोड़कर हिंदी में संवाद करने की और हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में प्रथम स्थान पर लाने की कवायद की क्योंकि "अभिव्यक्ति जब अपनी भाषा में खिलखिलाती है तो सर्जना का नया इतिहास गढ़ जाती है।"

- डॉ. मंजु रुस्तगी

चेन्नई, तमिलनाडु

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