Hindi Laghukathayen, Hindi Short Stories in Hindi, Govind Sharma Ki Hindi Laghu Kahaniyan, Best Short Stories in Hindi.
गोविंद शर्मा की लघुकथाएँ
हिन्दी की श्रेष्ठ लघुकथाएँ : बाल साहित्य, व्यंग्य एवं लघुकथा लेखन में सशक्त हस्ताक्षर श्री गोविन्द शर्मा की 40 लघुकथाएं यहां पर दिए गए हैं, चालीस लघुकथाएँ जैसे; भेड़िया लघुकथा, सड़कें हिन्दी लघुकथा, कुपोषण हिंदी लघु कहानी, बरसात लघुकथा, बच गया, पहिया, बेचारा, पद स्थापना, भुलक्कड़, ईमानदारी, भाभी, सलाह, सेवा चालू है, बेवकूफ, मनहूस, आधुनिक, ड्यूटी, पक्षी प्रेम, दयाशील, हमारी नींव, आदमियत, ज्यादा कौन, खजाना, चमत्कारी, हिम्मती, कैसे बोले, घोंसला, अंधेरा-उजला, डर, दरिद्रता, वर्गीकरण, गौरव की बात, आचरण, लंबी उम्र, अज्ञानी, ईमानदार, शादी, समानता का तकाजा, सुसंस्कार और भूत। गोविंद शर्मा की लघुकथाओं में सभी प्रकार के तत्व हैं जैसे ये लघुकहानियों में रोचक लघुकथाएं, ज्ञानवर्धक लघु-कहानियां, हास्य लघुकथाएं, प्रेरणादायक लघुकथाएं, शिक्षाप्रद लघु कहानियां, राजनीतिक लघुकथाएं, हास्य व्यंग्य लघुकथा, व्यंग्य, विज्ञान कथा, अलौकिक, रोमांचक, त्रासदी आदि सभी विषयों पर है। पढ़िए गोविंद शर्मा की की लिखी लघुकथाएं और शेयर कीजिए।
Govind Sharma Short Stories in Hindi
1. भेड़िया
यह तो लगभग रोजाना की बात है। सात घरों में साफ सफाई का काम करते रधिया रात में सोती है कि उसका पति शराब पीकर बाहर से आता है। लड़ाई -झगड़ा- मारपीट होती है ।
कल रात कुछ ज्यादा हो गई। रधिया के कई जगह जख्म हो गए। वह रात भर तड़पती रही। सुबह उसके पति ने जब रधिया की हालत देखी तो थोड़ा सहम गया। बोला - चलो, तुम्हें किसी डॉक्टर को दिखा देता हूं। डॉक्टर पूछे कि तुम्हारा यह हाल किसने किया तो मेरा नाम मत लेना।
फिर डॉक्टर को क्या कहूं?
कह देना रात में बाहर सो रही थी। एक जंगली भेड़िया आया और मेरा यह हाल करके चला गया। कहोगी न ?
जरूर कहूंगी, पहली बार तुम सच बोलने के लिए कह रहे हो।
2. सड़कें
नेताजी और उनकी पार्टी चुनाव हार गई। सत्ता दूसरी पार्टी की हो ।गई नेताजी अपने आदमियों से घिरे अफसोस की मुद्रा में बैठे हुए थे ।एक बोला - नेताजी, आपने तो कोई गलत काम किया ही नहीं, फिर भी हार हो गई। एक दूसरा बोला - गलत सही का सवाल ही नहीं है। इन्होंने कुछ किया ही नहीं।
एक आवाज आई - हमें तो सड़क बनवाने वाले अफसरों ने मरवा दिया ।उनका भ्रष्टाचार हमें ले बैठा। दिल करता है इन सब अफसर को हिंद महासागर में फेंक दूं ।
नेताजी का मौन टूटा- नहीं -नहीं, ऐसा मत कहो ।अब के सत्ताधारियों के राज में भी ये ही सड़कें बनवाएंगे । वे सड़कें ही एक दिन हमें सत्ता तक पहुंच जाएंगी ।
3. कुपोषित
वह नई कक्षा में हुआ तो पिता नई किताबें दिलवाने पुस्तक विक्रेता के यहां ले गए। किताबों का भुगतान करने के बाद पिता ने अपने पर्स को मुट्ठी में मसलकर जेब में डाल लिया। वह अपनी किताबों के बैग को उठा नहीं सका था। उसके पिता ही उसे उठाकर घर लाए। अगले दिन वह किसी तरह अपने बैग के साथ स्कूल पहुंच गया। कक्षा में उस दिन पोषण- कुपोषण का पाठ पढ़ाया गया। बताया गया कि कुपोषित बच्चों का वजन सुपोषित बच्चों से कम रह जाता है।
तुम बच्चों में से कोई इसका उदाहरण बता सकता है ? अध्यापक ने प्रश्न के बाद मोटे पतले बच्चों की ओर देखा।
वह खड़ा हुआ और अपने आगे रखे स्कूल बैग की ओर इशारा करते हुए बोला - सर, इसका उदाहरण यहां है। इसका वजन मेरे से ज्यादा है। यह सुपोषित है और मैं कुपोषित।
4. बरसात
शहर में सड़क पर भीड़ थी। तभी बरसात शुरू हो गई।लोग बरसात से बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे ।बस एक वह भागा नहीं । पर ऊपर की ओर देखते हुए जोर से बोला- अरे, जाओ, हमारे खेतों पर बरसो । यहां पक्की सड़क पर क्यों बरस रहे हो ? यहां हमने कोई फसल नहीं उगानी।
उसकी बात सुनकर सब हंस पड़े ।बस एक वह नहीं हंसा ।वह यानी सड़कें बनवाने वाला इंजीनियर। बोला - ठीक ही तो कह रहा है यह। खेतों पर ही बरसना चाहिए। आजकल की बरसात पता नहीं कौन सी ताकत की गोली खाकर बरसती है कि पहली बरसात में ही नई बनी सड़क टूट जाती है, धंस जाती है या बह जाती है। कभी-कभी तो मजबूत बना पुल भी शहीद हो जाता है।
5. बच गया
एक बार फिर भेड़िया और भेड़ का छोटा बच्चा नदी किनारे मिल गए।भेड़िया की उसे खा जाने की इच्छा हुई । उसने कहा - अरे भेड़ के बच्चे, तूने मेरी पार्टी को पिछले साल गाली दी थी। मैं तुझे आज नहीं छोडूंगा।
भेड़ का बच्चा हंसा और बोला- पिछले साल? अरे, तब हम चुनाव प्रचार कर रहे थे और एक दूसरे को गालियों के अलावा दे ही क्या रहे थे? फिर, तब मैं उस पार्टी में था, जिसमें तुम आज हो और मैं आज उस पार्टी में हूं, जिसमें तब तुम थे। बताओ, गाली किसने किसको दी ?
भेड़िया चकरा गया और भेड़ का बच्चा बच गया।
6. पहिया
स्टेशन पर गाड़ी के इंतजार में बैठे थे कुछ स्वयंभू बुद्विजीवी।विचार विमर्श या कहिए बहस कर रहे थे। मकसद तो एक ही था- एक दूसरे से बड़ा विचारक स्वयं को सिद्ध करना। एक ने कहा मानना पड़ेगा कि सबसे बड़ा आविष्कार गोल पहिया ही है ।इसने न केवल तीव्र गति ही दी, अनेक को रोजगार भी दिया। फिर उसकी निकाह पास बैठे एक कुली पर पड़ी। वह अपने दांत गुचरते उनकी बात बड़े गौर से सुन रहा था। वह बुद्धिजीवी कुली को संबोधित करते हुए बोला- ठीक कह रहा हूं न मैं? रेल के इस गोल पहिए के चलने से तुम्हें रोजगार मिलता है ।
हम कुलियों का रोजगार तो छीना भी एक छोटे से गोल पहिए ने ही। पहले ज्यादातर यात्री भारी सामान के लिए हमें पुकारते थे ।अब वह भारी भरकम अटैचियों बैगों के लिए हमें नहीं बुलाते । सबके नीचे छोटे-छोटे को पहिए लगे होते हैं। वह खुद घसीट कर ले जाते हैं ।
अब कोई बुद्धिजीवी पहिए पर कुछ नहीं बोला । कैसे बोले ? सब के समान के नीचे पहिए जो लगे थे।
7. बेचारा
पेट की आग शांत करने के लिए कठफोड़वा छिपे कीड़े बाहर निकालने के लिए पेड़ के तने पर जोर-जोर से चौंचे मार रहा था। आदमी से यह देखा न गया। कठफोड़वा को उड़ाते हुए बोला क्यों बेचारे को अपनी तीखी चौंच से परेशान कर रहा है। उड़ यहां से। कठफोड़वा उस पेड़ से हट गया। अचानक आदमी की निगाह पेड़ पर लिखी संख्या पर चली गई। उसे देखकर बोला- अरे, यह तो वही पेड़ है जिसे काटने का काम उसे मिला है। वह गया और कुल्हाड़ा ले आया । पेड़ पर जोर-जोर से प्रहार करने लगा। शायद, अब पेड़ बेचारा नहीं रहा था।
8. पद स्थापन
नगर पालिका अध्यक्ष ने देखा दिन में ही सभी स्ट्रीट लाइटें जल रही हैं। ऐसा क्यों है ? पूछने पर जिम्मेदार अधिकारी का जवाब आया- सर, सूरज को चिढ़ाने के लिए है। बहुत परेशान करता है सूरज। सर्दियों में हम आजा आजा कहते रहते हैं, वह नहीं आता है। गर्मियों में कहते हैं- जा- जा.. नहीं जाता है। फिर अपने यहां तो पुराना रिवाज है- सूरज को दिया दिखाना। हम स्ट्रीट लाइट दिखा कर परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं, बदला लेते हैं और सूरज को चिढ़ाते भी हैं। अब नगर पालिका अध्यक्ष सोच रहे थे- कहां टेक्निकल पद पर पड़ा है। किसी राजनीतिक दल से संपर्क क्यों नहीं कर रहा? अच्छा सा पद- स्थापन हो जायेगा।
9. भुलक्कड़
मेरी मां बहुत भुलक्कड़ हो गई है। क्यों, क्या किया उन्होंने ? चाय में चीनी डालना भूल गई थी क्या?
नहीं, यह तो उनकी रोज की बात है। दो जनवरी उनकी जन्म तारीख है। मैंने उन्हें एक जनवरी को कह दिया था कि मुझे कल याद दिलाना। मैं आपको बधाई दूंगा ।वे भूल गई और मुझे याद नहीं दिलाया। मैं मां को जन्मदिन मुबारक कहने से रह गया। मुझे भी आज ही याद आया। अब क्या हो सकता है। अब तो अगले साल ही...।
10. ईमानदारी
कल जब मैं उस महंगे होटल से बाहर आया तो मुझे सड़क किनारे पड़ा मिला तितली का एक पंख। मैंने उसके दो-चार फोटो लिए और उठा लिया। फिर मैंने वह फोटो सोशल मीडिया के कई मंचों पर पोस्ट किया और साथ लिख दिया- किसी तितली का यह पंख मुझे सड़क किनारे पड़ा मिला है। जिस किसी तितली का है, वह पहचान बात कर इसे प्राप्त कर सकती है। वाह, इनाम के लालच में? नहीं नहीं, जब भी वह तितली अपना पंख लेने आएगी, उसे पंख देते हुए उसके साथ फोटो खिंचवाऊंगा। वह फोटो मीडिया को दूंगा ताकि वह खबर के साथ प्रकाशित प्रसारित हो जाए। खबर का शीर्षक होगा- ईमानदारी अभी जिंदा है। इससे क्या होगा? यार, मुझ पर लाखों करोड़ों की सरकारी रकम डकार जाने के आरोप हैं। ईमानदारी की इस खबर से मेरी छवि में कुछ तो सुधार होगा ही।
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11. भाभी
उसके दफ्तर में एक नई नियुक्ति हुई। उम्र में वह उसे छोटा ही था, पोस्ट में तो दोनों बराबर थे। पर उम्र में बड़ा होने के कारण वह अपने को सीनियर मानता था। एक दिन वह उस जूनियर के घर पहुंच गया। जूनियर की पत्नी को देखा तो देखा ही रह गया। इतनी सुंदर, उसके मुकाबले उसकी अपनी पत्नी तो कुछ नहीं। वह सुंदरी को छूने की लालसा पाल बैठा। पर यह कैसे संभव था?
होली का त्यौहार आ गया। इसे उसने अपने लिए स्वर्णिम अवसर समझा। उम्र में छोटा और जूनियर है तो क्या है, दोस्त की बीवी भाभी ही होती है। गुलाल लेकर चला अपने जूनियर की बीवी के गालों पर लगाने के लए। वह आनंदित हो उड़ रहा था कि सामने एक परिचित मिल गया। उसने पूछा- इधर किधर जा रहे हो? इस गली में तो तुम्हारा वह जूनियर रहता है। उसके साथ रंग खेलने जा रहे हो? पर वह अपने घर पर नहीं मिलेगा। मुझे तुम्हारे घर की तरफ जाने का कह रहा था। कह रहा था कि तुम्हारी बीवी उसकी भाभी है। गुलाल लेकर जा रहा हूं उनके पास।
वह हवा में उड़ रहा था। धड़ाम से धरती पर आ गिरा। वह नामुराद मेरी बीवी को भाभी कहता है। उसके गालों को गुलाल भरे हाथों से छुएगा। वह घूम गया और अपने घर की तरफ उड़ने लगा।
12. सलाह
स्कूल से आई बेटी को खुश देखा तो व्यस्त रहने वाली मिसेज त्रिज्या कश ने पूछा- क्या आज किसी मैम ने तुम्हारी तारीफ की है?
बेटी ने कहा- आज मेरी एक सहेली ने मुझसे मन की बात की है। मैंने उसे एक सलाह भी दी।
वाह, तुम सलाह देने वाली दादी भी बन गई। क्या बात हुई तुम्हारी? उसने बताया कि आजकल उसकी मम्मी बहुत परेशान रहती है । उसके डैडी के पास मम्मी के लिए समय ही नहीं है। अच्छा, फिर तुमने क्या सलाह दी ?
मैंने उससे कहा- जब किसी के साथ की जरूरत हो तो तुम्हारी मम्मी मेरे पापा को बुला लिया करें। चांटे के लिए मिसेज त्रिज्या का हाथ उठा ही था कि बेटी आगे बोली क्योंकि मेरे पापा अकेले बैठे रहते हैं। मेरी मम्मी कभी किसी अंकल के पास चली जाती है या कोई अंकल उनके पास आ जाता है। उठा हाथ उठा ही रह गया।
13. सेवा चालू है
अचानक मंत्री जी को पता नहीं क्या सूझा कि अपने कस्बे के दौरे पर आ गए। देखा, गली-गली बाजार बाजार दिन में ही स्ट्रीट लाइट जल रही है। जिम्मेदार अधिकारी को बुलाया गया। पूछा ये स्ट्रीट लाइट क्या मेरे स्वागत में जलाकर रखी गई है? जवाब मिला- साहब, आपका स्वागत करने के लिए पूरा देश उत्सुक है। हमारी तो बिसात ही क्या है।
मंत्री जी आश्वस्त हो गए कि अच्छा आदमी है, इसे निलंबित करने की जरूरत नहीं है। फिर क्यों जल रही है?
साहब, कई महीनों से शिकायत आ रही थी कि यहां की, वहां की लाइट खराब है। जलती नहीं है। बार-बार की शिकायतों से परेशान होकर हमने उन्हें ठीक करवा दिया। कहीं से भी धन्यवाद नहीं आया तो हम समझ गए कि लाइट रात में जलती है। लोग रात में बाहर नहीं निकलते होंगे। उन्हें पता नहीं चला होगा कि उनकी शिकायत दूर कर दी गई है। इसलिए हम दिन में लाइट चालू करके छोड़ देते हैं ताकि लोग जान जाए कि हमारी ओर से उनकी सेवाएं सुचारू रूप से चालू है।
14. बेवकूफ
खटकू घर से बाहर निकला। उसके हाथ में भरा हुआ पॉलिथीन था। उसके घर के पास एक खाली प्लाट था। वह उस जगह पहुंचा ही था कि कोई और एक बर्तन में कूड़ा लेकर वहां आया। वह उस कूड़े को उस खाली जगह पर फेंकने ही वाला था कि खटकू जोर से बोला- 'नहीं नहीं, यहां कूड़ा कचरा मत फेंको, पिछली गली में डस्टबिन रखा है उस में डाल कर आओ।'
आने वाला बोला- 'उस डस्टबिन में कचरा है या नहीं, यह तो पता नहीं, पर उसके आसपास बहुत कूड़ा कचरा बिखरा हुआ है। कोई डस्टबिन तक पहुंच ही नहीं सकता। फिर यहां भी तो बहुत कूड़ा कचरा फेंका हुआ है।'
खटकू बोला- 'कोई बेवकूफ मेरी नजर बचाकर यहां फेंक जाता है। मैं देख लेता हूं तो नहीं फेंकने देता।'
आने वाला अपना बर्तन लेकर वापस चला गया।
अब खटकू ने चारों तरफ देखा उसे वहां कोई नजर नहीं आया। उसने अपने हाथ में पकड़ा कूड़े से भरा पॉलिथीन वहां फेंका और मुस्कुराता हुआ घर आ गया।
15. मनहूस
वह वह बड़ा खुश खुश दफ्तर में आया। पूछा तो बोला - मैं जब भी किसी को भीख देता हूं, उस दिन मुझे कोई खुशी का समाचार मिलता है। आज मैंने एक भिखारी को देखा। मुझे लगा इसने मेकअप कर रखा है। पर ध्यान से देखने पर समझ गया कि यह ओरिजिनल भिखारी है। मैंने उसे दस रुपए भीख में न दे दिए। देखना, आज मुझे कोई शुभ समाचार मिलेगा। वह बॉस के कमरे में गया। बाहर आया तो उसके मुख मंडल पर घोर उदासी थी। क्यों न हो। साहब से लंबी डांट मिली थी और चेतावनी भी कि इसी तरह अपने काम में गफलत करते रहे तो निकाल बाहर करूंगा । बाहर आने पर उससे पूछा गया- क्या हुआ? बोला- होना क्या था ? सुबह जिसे दस रुपए दिए थे, वह मनहूस निकला।
16. आधुनिक
सड़क के गड्ढे उसे सड़क के जख्म नजर आए। उसे लगा सड़क तड़प रही है। धीरे-धीरे सिहक रही है। उसे हंसी आ गई। बोला - सड़क महारानी, देखी हमारी आधुनिकता। कितने बड़े-बड़े ट्रक, बस, सामान से लगे ट्रैक्टर ट्रॉली दिन-रात तुम्हारे ऊपर दौड़ते हैं। लगता है इनका बोझ तुम्हें दुखी कर रहा है। अभी क्या है, युद्ध होने दो। इतने भारी-भारी टैंक तुम्हारे ऊपर से निकलेंगे कि ...। नहीं, मैं अपने बोझ से दुखी नहीं हूं। मुझे तो उसका दुख परेशान कर रहा है.....। जो रेल की पटरियों को है? नहीं, मेरे नीचे सदियों पुरानी पगडंडी दबी पड़ी है। वह मानव चरण स्पर्श को तरस रही है। पर जो दब गए, उनका दुख तुम नहीं समझोगे... तुम तो आधुनिक हो।
17. ड्यूटी
कार्यालय जाने के लिए स्कूटर पर निकला। जल्दी जाने के चक्कर में एक गली से गुजरा। गली में कुछ बच्चे बॉल बैट से खेल रहे थे। एक बॉल मेरे सर के पास से गुजरी। मैं गिरते गिरते बचा, पर बुरी तरह डर गया। एक बच्चे को भागते देखा तो उसके पीछे स्कूटर लगा दिया। वह एक झुग्गी में घुसा। वहां बैठे एक आदमी से बच्चे की शिकायत की तो उसने डंडा उठाकर तड़ातड़ उस बच्चे के दो चार लगा दिए- यह कहते हुए कि मैंने तुम्हें कूड़े में से कबाड़ ढूंढ कर लाने भेजा था या बॉल खेलने। डंडो की मार से बचने की कोशिश करता बच्चा बोला- मैं खेल नहीं रहा था। मैं तो अपनी ड्यूटी दे रहा था। खेलने वाले बच्चों ने मेरी यह ड्यूटी लगा रखी थी कि यदि बॉल से किसी राहगीर के चोट लग जाए या किसी की खिड़की का कांच टूट जाए तो भाग जाना है ताकि लोग समझें कि दोषी था वह भाग गया और वे सब बच जाए। बदले में उन्होंने मुझे अपने घर से बासी रोटियां लाकर दी थी। मुझे अपनी ड्यूटी याद आ गई। गार्ड की, कंपनी या मालिक पर हमला हो तो उसे अपने पर लेना है। कभी खिलाड़ी, कप्तान अंपायर तो अब इस बच्चे वाला नया पद। यह भूख भी अपने लिए कैसी-कैसी ड्यूटियां ढूंढ लेती है।
18. पक्षी प्रेम
वे रास्ते में मिल गये। बोले- मेरे से बड़ा पक्षी प्रेमी शायद कोई नहीं । कल मैंने एक कव्वे को बचाया। उसके पैरों में किसी की पतंग का मांझा फंसा हुआ था। वह उड़ नहीं पा रहा था। मैंने उसकी फांस दूर करदी। वह जाते-जाते मेरे हाथ पर चोंच मार गया। पर मैंने इसका बुरा नहीं माना। आज गली के कुत्ते के मुंह से एक कबूतर को छुड़वाया । उसका इलाज करवाया। पिंजरे में बंद तोतों को तो कई बार आजाद करवाया है। अब कहां जा रहे हो? घर। मारे भूख के मरा जा रहा हूं। घर जाते ही डबल चिकन खाऊंगा। चिकन खाना मुझे पसंद है। रोजाना ही खाता हूं। शायद, यह भी उनका पक्षी प्रेम ही है।
19. दयाशील
मैं बाजार में घूम रहा था। मैंने देखा फुटपाथ पर जीर्ण-शीर्ण हालत में एक महिला बैठी है। पास में ही उसका बच्चा भी है ।दोनों के चेहरों पर अभाव साफ दिख रहे थे। मुझे दया आ गई। सोचा, एक रुपया इनको दे देता हूं। रुपया निकालने के लिए जेब में हाथ डाला। हाथ बाहर आया, लेकिन बिना रुपए के। क्यों? क्योंकि मेरे मन ने कहा ये ठग हो सकते हैं। रुपए कमाने के लिए पीड़ित का मेकअप किये बैठे लगते हैं। नहीं दूंगा कुछ भी। मैं बिना कुछ दिए आगे चल पड़ा। लेकिन मैं सोचता हूं आप मेरी दयाशीलता तो समझ ही गए होंगे।
20. हमारी नींव
हड़कंप मच गया। मीडिया ले उड़ा इस बात को कि दो महीने पहले मंत्री जी ने शहर में बाल कल्याण भवन बनाने की नियम का जो पत्थर समारोह पूर्वक रखा था, उसे कल रात कोई चुरा ले गया ।इलाके का थानेदार नहीं ढूंढ सका। उसे लाइन हाजिर कर दिया गया। दूसरे की भी यही गति हुई। एक सस्पेंड थानेदार को बहाल कर नींव का पत्थर ढूंढने का काम दिया गया ।
उसने तीन दिन बाद रिपोर्ट की दो महीने पहले मंत्री जी ने जो शिलान्यास किया था, उसका पत्थर मैंने ढूंढ लिया है। यह करतूत उन्हीं की पार्टी के एक असंतुष्ट की है। इसके साथ ही दो साल पहले इस बाल कल्याण भवन का पिछले मुख्यमंत्री ने शिलान्यास किया था, वह पत्थर भी मैंने ढूंढ लिया है। इतना ही नहीं सात साल पहले भी एक मुख्यमंत्री ने इस बाल कल्याण भवन का शिलान्यास किया था। वह भी मेरे हाथ लग गया है। इन सब का क्या किया जाए ?
उसे मंत्री जी से जवाब मिला- तुम्हारी इसी ना समझी ने तुम्हें पहले सस्पेंड करवाया था। गड़े मुर्दे क्यों उखाड़े ? पहले वाले सारे पत्थर किसी नहर, तालाब या कुएं में फिंकवा दो। अब वाला यथा स्थान लगवा दो। हां, इस उपलब्धि का बयान मीडिया को तुम मत देना, मैं दूंगा।
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21. आदमियत
यमराज ने अपने एक विशेष दूत को बुलाया और कहा- हमें खबर मिली है कि धरती पर आदमी बहुत हो गए हैं। धरती को कुछ हल्का करना है। तुम वहां जाकर पता लगाओ कि कितना स्टाफ भेजना ठीक रहेगा। कई दिन तक जब यमदूत से कोई जवाब नहीं मिला तो यमराज ने उसे कॉल कर पूछा- तुम इतने सुस्त क्यों हो गए ? मेरी इंक्वारी का कोई जवाब नहीं दिया । सर दिन-रात भटक रहा हूं। बिल्कुल थोड़े से, कहीं-कहीं, सब दूर-दूर मिल रहे हैं आदमी। संख्या इतनी कम है कि अतिरिक्त नफरी की आवश्यकता ही नहीं। आप कहें तो इन्हें मैं अकेला ही ले आऊं । क्या कह रहे हो तुम ? धरती पर दोपाए कम है? सर, दोपाए तो बहुत हैं, पर आदमियत किसी किसी में है।
22. ज्यादा कौन
सड़क पर लोगों का मजमा लगा था। उनमें से तीन चार आपस में तीखी बहस कर रहे थे। मुझे समझ नहीं आया कि माजरा क्या है। मैंने एक से पूछा तो उसने विस्तार से बताया- उन चारों में बहस हो रही है कि ज्यादा कौन है। इन चारों के पास अपने-अपने समर्थक हैं। कुछ तमाशा बीन भी है। बहस का मुद्दा क्या है? इनमें से एक का नाम शिलान्यास है। वह कहता है- चुनाव का मौसम आने वाला है। इसलिए आजकल धड़ाधड़ शिलान्यास हो रहे हैं। इसलिए हमारी संख्या ज्यादा है। वह जो पतली सी आवाज है। वह घोषणा है। कहती है जनहित में आजकल तुम्हारे से ज्यादा घोषणा ही होती है। उधर वह जो मुस्कुरा रहा है, वह वादा है। कहता है - चुनाव घोषणा से पहले और प्रचार के दौरान जितने वादे किए जाते हैं, उतने न तो शिलान्यास होते हैं न उद्घाटन। घोषणाएं भी मेरे सामने अल्प रह जाती है। मेरा मुकाबला करने वाला कोई नहीं है। वह देखो, वहां से आवाज आई है कि मेरी संख्या के बराबर तुम तीनों का जोड़ भी छोटा पड़ता है। मैं मांग हूं । अच्छा भैया, तुम ही बताओ, इनमें बहुसंख्यक कौन है ? इस समस्या का हल भी बताओ।। यह सुनकर मैं भागने लगता हूं। पीछे से आवाज आती है- अरे, असली तो तुम ही हो। किसी निर्णय पर न पहुंचना और समस्याओं को देखकर मुंह फेर लेना तो हमारे सब किस्म के कर्णधारों का स्वभाव है।
23. खजाना
वहां राजा का चुनाव वोट से होता था। उसने अपने चुनाव अभियान में एक ही वादा किया कि जीत गया तो शाही खजाने के दरवाजे आम जनता के लिए खोल दूंगा। वह जीत गया। राजा बनकर उसने पहली घोषणा यही की कि कल दिन में बारह बजे शाही खजाने के दरवाजे खोल दिए जाएंगे। आम जनता इस अवसर पर वहां उपस्थित रहे। वहां विशाल भीड़ जमा हो गई । राजा के आदेश से दरवाजे खोले गए तो लोग यह देखकर हैरान रह गये कि खजाना बिल्कुल खाली है। लोग कुछ सवाल करें इससे पहले उन्हें राजा की आवाज सुनाई दी- मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है। अब आपकी बारी है। आप सब इसे भरना शुरू करें ....।
24. चमत्कारी
उन नेताजी को उनके भक्त भैया जी कहते हैं। एक दिन भक्त अपने भगवान को घेरे बैठे थे कि एक बोल पड़ा आजकल अपने इस शहर में एक चमत्कारी आया हुआ है। वह आंखों पर पट्टी बांधकर भीड़ भरे बाजार से लेकर संकरी गलियों तक में मोटरसाइकिल चलाता है। कभी किसी से टक्कर नहीं होती। लोग उसके इस चमत्कार पर चकित हैं। दूसरा बोला- इसमें क्या खास बात है? उससे बड़े चमत्कारी तो - हमारे भैया जी हैं। एक बार जनता से वोट लेकर फिर पांच वर्ष तक अपनी - आंखों पर पट्टी बांधकर उसी जनता के बीच अपनी गाड़ी मजे से चला लेते हैं। टक्कर तो दूर की बात है, मजाल है जनता में से उन्हें कोई दिख भी जाए।
25. हिम्मती
तुमने कुमारा का लघुकथा प्रतियोगिता परिणाम देखा है? अरे, मैंने उसे देखना बंद कर दिया है। वहां पक्षपात के सिवा कुछ नहीं होता है। मुझे मालूम हो गए हैं वहां जीतने के मंत्र। एडमिन की चमचागिरी करो, उसके द्वारा लिखी किताबें खरीदो। उन्हें पढ़ो या नहीं, पर भरपूर वाह-वाह लिखो । सिफारिश करवाओ, तब जाकर वे लघुकथा को सम्मानित करते हैं। सम्मान में कंप्यूटर से निकले प्रमाण पत्र का एक फोटो भेज देते हैं। मैंने तो कई बार शामिल होकर देख लिया। अब भविष्य में उसे चमचाबाड़ी की तरफ मुंह भी नहीं करूंगा। यदि किसी का पता चला कि उसकी लघुकथा चयनित हुई है तो उसे महा घटिया घोषित कर दूंगा। वाह, बड़े हिम्मती हो तुम। इस बार तुम्हारी लघुकथा को प्रथम स्थान मिला है।
26. कैसे बोलें ?
चलती ट्रेन में एक ही बर्थ पर बैठे पति-पत्नी कुछ बेचैन नजर आए। वह कभी अपने-अपने हाथ में पकड़ा मोबाइल देखते और फिर इधर-उधर देखने लग जाते। सामने वाली बर्थ पर बैठी एक महिला ने उनकी तरफ सवाल उछाला आप दोनों .... उसकी बात पूरी होने से पहले ही जवाब मिला कि हम पति- पत्नी हैं। यह तो मैं समझ गई। पर आप दोनों कुछ बेचैन हैं। आपस में बात क्यों नहीं करते? अपनी परेशानी एक दूसरे को बताते क्यों नहीं ? क्या अबोला हो चुका है आपमें ? नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। हम तो आपस में बात करना चाहते हैं। पर यहां नेट ही उपलब्ध नहीं है।
27. घोंसला
वाह साहब आप तो मशहूर पर्यावरण कार्यकर्ता बन गये हैं। अब तक - आपने माइक पर सैकड़ो भाषण दिए हैं- पर्यावरण को बिगड़ने से बचने की - प्रेरणा देने के लिए। कविताएं भी भारी संख्या में लिखी हैं। कुछ घेराव वगैरह भी किए हैं मैंने। बाइक रैली और कार रैली भी निकलवाई है। पर सब पार्टियों के बड़े नेता पर्यावरण के दुश्मन हैं। न तो किसी ने मुझे टिकट दिया और न ही पद्मश्री वगैरह दिलवाई है। वैसे आपका घोंसला कहां है, जिसमें आप रहते हैं ? क्या बात करते हो? मैं कोई पक्षी नहीं हूं जो घोंसले में रहता हूं। मैं इंसान हूं और शहर की नवीन कॉलोनी में मेरा आलीशान मकान है। नवीन कॉलोनी तो अभी-अभी जंगल की जमीन पर बसी है। वहां मकान बनाने के लिए आपको वहां से कितने पेड़ हटाने पड़े थे ? यही कोई आठ-दस....। पेड़ों की जगह बने मकान को घोंसला ही तो कहेंगे, क्यों...? जवाब नहीं मिला, वहां मौन पसर गया था।
28. अंधेरा - उजाला
पहले की शिक्षा और आज की शिक्षा में क्या अंतर है? पहले वाली अंधेरे से उजाले की तरफ ले जाती थी। आज की उजाले से अंधेरे की तरफ ले जाती है। कैसे? पहले हर कक्षा में काले रंग का ब्लैक बोर्ड होता था। उसे पर मास्टर जी सफेद चाक से लिखते थे। आजकल कक्षाओं में सफेद बोर्ड होता है। उसे पर सर/मैडम काले रंग के मार्कर पेन से लिखते हैं।
29. डर
आश्रम के बड़े गुरु जी रास्ते में उन्हें मिल गए। गुरु जी बोले- पहले तो तुम कई बार मेरे आश्रम में आते थे। अब काफी समय से नहीं आए हो । बड़े आदमी बन गए क्या ? गुरुजी पहले मैं आता था तब मेरा एक ही उद्देश्य था । आपसे ऐसा आशीर्वाद लेना या मंत्र लेना या वरदान लेना जिससे मेरी गरीबी दूर हो जाए। आपने खूब आशीर्वाद दिए। मंत्र- वरदान दिए। पर कोई भी फलीभूत नहीं हुआ। फिर मुझे एक और जगह से मंत्र मिल गया, राजनीति में घुसने का मंत्र। अब मैं दिन-ब-दिन गरीबी को दूर धकेल रहा हूं। इतनी दूर धकेल चुका हूं कि अब गरीबी मेरे आस- पास नजर नहीं आ रही है। फिर भी उसे आगे से आगे धकेलना में लगा हूं। इसलिए आश्रम में आशीर्वाद के लिए आने की जरूरत नहीं समझते हो। पर य ई डी, आयकर वगैरह...। गुरुदेव, मैं कल सुबह चढ़ावे के साथ आश्रम में आपके आशीर्वाद के लिए आऊंगा..। उनकी आवाज में डर काफी मात्रा में था।
30. दरिद्रता
सेट दंगा प्रसाद ने जैसे ही आश्रम में प्रवेश किया, बड़े गुरुजी ध्यानस्थ हो गए। उनकी ध्यान समाधि टूटी तो सेठ जी ने प्रणाम किया और बोले- मैं सेठ...। सेठ ? जी, यह रहा चढावा कहते हुए सेठ जी ने बड़े नोटों की एक बड़ी गड्डी बड़े गुरु जी के चरणों में रखी तो बड़े गुरु जी बड़े प्रसन्न हुए। बोले- सेठ आज मैं तुम्हें अपने इष्ट देव को याद करने का ऐसा तरीका बताऊंगा जो दरिद्रता दूर कर देता है। बताइए, गुरुदेव । बड़े गुरु जी ने तरीका बताया तो सेठ जी बड़े प्रसन्न हुए। किसी ने नहीं देखा, दूर खड़ी दरिद्रता अपना माथा पीट रही है और कह रही है- मैं इस सेठ के पास गई कब थी ?
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31. वर्गीकरण
गली में कुत्ता और सांड मिल गए। कुत्ते ने कहा- कैसे हो दोस्त? सांड ने गुस्से में देखा और कहा- मैं तेरा दोस्त कब से हो गया ? कुत्ता बोला - सदा से ही। लोग हमें एक ही वर्ग का मानते हैं। मुझे गली का कुत्ता कहते हैं और तुम्हें सड़क का सांडासांड जवाब देने को हुआ कि कुत्ता बोला- देख, उस सामने वाले घर में नया परिवार आया है। उसके घर के सामने याचक की तरह खड़े होते हैं। भीतर से कोई बासी रोटी लेकर जरूर निकलेगा। हो सकता है वह ऐसा वैसा ही हो। यदि हुआ तो वह रोटी अपने दोनों के सामने सड़क पर फेंक देगा। मैं उसे उठाकर भाग जाऊंगा। यदि पुण्यार्थी हुआ तो मुझे भगा देगा और रोटी तुम्हें खिला देगा।
अब सांड और कुत्ता दोनों चुपचाप चेहरे पर याचना भाव लिए घर के सामने खड़े थे।
32. गौरव की बात
नेता जी ने नई कार खरीदी और ड्राइविंग के मजे लेने के लिए पहले दिन खुद ही चलाने लगे। सड़क किनारे ड्यूटी दे रहे ट्रैफिक पुलिस के सिपाही को टक्कर मार दी। सिपाही की दोनों टांगें टूट गई। रिपोर्ट दर्ज हुई। नेताजी को गिरफ्तार करवाने के लिए आंदोलन हुआ। पुलिस को नेता जी को गिरफ्तार करना पड़ा। उसी दिन जमानत हो गई। पर नेताजी उदास होगए। एक चने कहा- इसमें आपकी यह घोर ईमानदारी है कि आप स्वीकार कर रहे हैं कि खुद ड्राइविंग कर रहे थे। आप की जगह कोई और होता तो अपनी जगह ड्राइवर को बिठा कर खुद बच जाता। मैं भी कर लेता ऐसा। पर आजकल एक घटना शुरू होते ही बीस मोबाइल वीडियो बनाने के लिए चमक उठते हैं। दूसरे च ने कहा- इसमें उदास होने की कोई बात नहीं है। आजकल तो बड़े-बड़े नेता गिरफ्तार हो रहे हैं। नेता जी ने कहा वे सब भ्रष्टाचार, घपला, घोटालों के आरोप में पकड़े जाते हैं। वह तो गौरव की बात है। मुझे टांगे तोड़ने जैसी मामूली बात के लिए.....।
33. आचरण
मैंने उसे गली में देखा, भिखारी तो नहीं लगा पर उसके शरीर पर एक पजामा ही था। बाकी का उसका नंगा शरीर सर्दी से सिकुड़ रहा था। मैंने उसे रोका। उसके लिए भीतर से कमीज लेने गया। उसे देने लायक एक मेरी कई बार पहनी हुई फुटपाथ से खरीदी हुई, जिस पर कुछ लिखा था, पुरानी टी-शर्ट मिल गई। उसे दी तो उसने अच्छी तरह से देखा और फिर वापस करते हुए बोला- सॉरी सर, मैं इसे पहन नहीं सकूंगा। मुझे गुस्सा आ गया। शर्ट वापस लेते हुए मैंने व्यंग्य से कहा- तो जनाब को नई शर्ट चाहिए। वह बोला- नहीं साहब, आप मेरा पाजामा देखिए। कितना पुराना है। इसके साथ नई शर्ट की क्या जरूरत है। मना इसलिए कर रहा हूं कि मैं शराब पीने पिलाने का विरोधी हूं। इस पर लिखा है- बीयर मुझे खुशी देती है। आप भी खुशी हासिल करें। मैं बीयर का प्रचार बैनर नहीं बन सकता। अरे, शराब का तो मैं भी विरोधी हूं, मैंने कभी इसपर ध्यान ही नहीं दिया, इस शर्ट को पहनता रहा....।
34. लंबी उम्र
नेताजी रात के एक बजे घर पहुंचे तो पत्नी को देखकर ही समझ गए फिर गुस्से का पारा बाहर आने को है। अपनी जगत लुभावनी हंसी हंस कर बोलने ही वाले थे कि पत्नी उवाच हुआ - अब पधारे हैं श्रीमान, क्या आपको इतना भी याद नहीं रहा कि आज करवा चौथ है और आपकी लंबी उम्र के लिए आपके दर्शन करके मुझे पानी पीना था? आप भाषणों, उद्घाटनों, चाटनों में लगे रहे। पत्नी चाहे भूखी प्यासी तड़पती रहे। उन्हें पता था कि यह वह भाषण है जो बिना माइक के ही अनंत विस्तार पा जाता है। उन्होंने बीच में टोका-ठईक कहती हो तुम। यह मुई राजनीति है ही ऐसी। इसकी वजह से तुम्हें इतना कष्ट पहुंचा है। तुम्हारे लिए मैं इसे छोड़ दूंगा। कुर्सी भी त्याग दूंगा। अगले किसी व्रत के समय तुम्हें यह कष्ट नहीं होगा। सारा गुस्सा काफूर हो गया। बोली - रहने दो, कुर्सी नहीं रही तो उम्र इतनी लंबी लगेगी कि काटे नहीं कटेगी। लाओ इधर अपने चरण कमल....।
35. अज्ञानी
कुत्ते ने खरगोश को घेर लिया। इस अप्रत्याशित हमले से खरगोश घबरा गया। बोला- तुम क्या चाहते हो ?
तुम्हें खाना चाहता हूं। कई दिनों बाद आज मौका मिला है।
देखो हम दोनों का मालिक एक ही है। उसी के डर से तो तुहें अब तक हुआ नहीं। आज वह बाहर है। उसे क्या पता चलेगा कि उसका प्यारा खरगोश किसके पेट में है।
एक ही घर- खेत में रहने के कारण मैंने तुम्हें अपना दोस्त मान लिया था। तुम विश्वासघात कर रहे हो। तुम बचना चाहते हो तो एक रास्ता है। जंगल में बहुत से खरगोश तुम्हारे दोस्त हैं, दुश्मन हैं। तुम उन्हें बहला- फुसलाकर एक खरगोश रोजाना ले आया करो। मैं तुम्हें जिंदा छोड़ दूंगा। नहीं, मैं ऐसा नहीं करूंगा। तुम मुझे ही खा डालो। धत इतने दिन हो गए आदमियों के साथ रहते हुए। कुछ नहीं सीखा तुम ने उनसे, कहते हुए कुत्ते ने उस अज्ञानी के बोझ से धरती को हल्का कर दिया।
36. ईमानदार
इंजीनियर साहब की शिकायतें काफी ऊपर तक पहुंच गई तो मंत्री महोदय ने एपीओ कर दिया और फील्ड से उठाकर राजधानी भेज दिया। उस पर कई नेता भड़क गये। पक्ष विपक्ष के कई महानुभाव पहुंचने लगे मंत्री जी पर दबाव बनाने कि इंजीनियर साहब को वापस उसी पद पर लगाया जाए। सभी नेताओं ने उनकी ईमानदारी के गुण गाये तो पी .ए.ने सलाह दी - इतने नेता एक साथ कह रहे हैं तो इंजीनियर ईमानदार ही होगा। उसे वापस ..... क्या बात कर रहे हो? एक अफसर की इतने नेता सिफारिश कर रहे हैं। उसकी ईमानदारी पर किसको विश्वास होगा ?
37. शादी
गली से गुजरने वाले कुत्ते ने एक बड़े घर के बाहर बंधे कुत्ते को देखा और रुक गया। कुछ याद किया और फिर बोला- मुझे पहचाना क्या ? पिछले साल हम दोनों यहां से सात सड़क दूर गली के कुत्ते थे। मैं तो यहां भटक कर आया हूं। तुम यहां कब से बंधे हो ? पहचान लिया, एक बार एक को लेकर हम भिड़े थे। तू जीत गया था और तेरी उसे शादी हो गई थी। क्या अभी तक तेरी शादी नहीं हुई? की नहीं मैंने। इस घर में मेरे साथ जो पति पत्नी रहते हैं....... क्या वे तुझे खाना नहीं देते या तंग परेशान करते हैं? नहीं, पर वे दोनों आपस में लड़ते हैं। सुनने देखने वाले उनके लिए यही कहते हैं कि देखो कैसे कुत्तों की तरह लड़ रहे हैं। सोचता हूं मेरी शादी हो गई और हम आपस में लड़े तो लोग कहेंगे- देखो, इंसानों की तरह लड़ रहे हैं। यह सुनकर मुझे तो बहुत शर्म आएगी।
38. समानता का तकाजा
पूछा गया स्त्री पुरुष समानता के में तुम्हारे क्या विचार है? मेरे विचार लैंगिक समानता के बारे में बड़े अच्छे हैं। महापुरुषों ने इस बारे में बड़े सुंदर विचार प्रकट किए हैं। उन्हें सुनकर लगता है कि यह सारे तो मेरे विचार हैं। इन्होंने पहले व्यक्त कर दिए, मैं व्यक्त करने में लेट हो गया। आपने लैंगिक समानता के विचार को मूर्तत रूप देने के लिए कभी कुछ किया हां हां, क्यों नहीं, मैं अपने काम पर और वहां से वापस घर बस उससे है? से आता जाता हूं। पहले जब भी मैं सीट पर बैठा होता और कोई महिला बस में सवार होती, कोई सीट खाली नहीं होती तो मैं उसके लिए सीट छोड़कर खड़ा हो जाता था । अब क्योंकि समानता में मेरी पूरी आस्था हो गई है, मैं खड़ा नहीं होता हूं। जब मेरे बैठे रहने से पुरुष खड़े रहते हैं तो महिला भी खड़ी रहे। समानता का यही तकाजा है।
39. सुसंस्कार
ने आकर मंत्री जी को बताया- सर आज शाम को ससंस्कृति महामंडल की ओर से आपको संस्कार शिरोमणि का अवार्ड दिया जाएगा। उनका मानना है कि आप के भाषणों से स्कूल कॉलजों के बच्चे संस्कारित हुए हैं। मैंने आपके भाषण आदि की तैयारियां कर ली है। आप सोने जा रहे हैं, बस समय पर जाग जाना। अरे जगा तो दिया तुमने। जगा क्या दिया, नींद उड़ा दी मेरी। मेरे दोनों सपूतों को बुला कर लाओ। सर, उनसे मोबाइल पर ही संपर्क किया जा सकता है। पता नहीं इस वक्त कहां जनसेवा कर रहे होंगे। वैसे उन्हें क्या कहना है ? कहना क्या है, निवेदन करना है। आज ऐसी कोई हरकत न करें कि कल अखबार में मेरे संस्कार शिरोमणि अवॉर्ड प्राप्ति की खबर के साथ ही उनकी सड़क छाप खबर भी हो और मेरी इज्जत का दाह संस्कार हो जाए।
40. भूत
बरसों बाद वे दोनों सहेलियां मिली। एक ने पूछा- पहले तो तुम भूत प्रेत के होने में विश्वास नहीं करती थी, क्या अब भी नहीं करती हो? नहीं, अब करने लगी हूं। अच्छा, अब ऐसा क्या हो गया कि तुम्हें विश्वास हो गया है? इस घर में बहू बनकर आने के दिन से मेरी सास का मेरे प्रति अत्यंत कठोर व्यवहार रहा है। उस समय मैं हरदम यही सोचती थी कि मैं तो अपनी बहू से ऐसा व्यवहार नहीं करूंगी। वह दिन भी आ गया। मेरी सास परलोक सिधार गई। मेरे बेटे की शादी हो गई। न चाहते हुए भी बहू के साथ मैं वैसा ही व्यवहार करने लगी, जैसा कि मेरी सास मेरे साथ करती थी। कभी-कभी मैं सोचती हूं कि मैं ऐसी तो नहीं थी। सोच का परिणाम यह निकला- हां तुम ऐसी नहीं थी, मरकर तेरी सास भूत बनकर तेरे में घुस गई है। वही यह सब करवा रही है, इसलिए विश्वास हो गया कि भूत प्रेत होते हैं।
41. अक्ल
मैं अक्ल का भूखा। कई जगह तलाश की, मगर नहीं मिली। किसी ने बताया कि बादाम खाने से अक्ल आती है। दाल रोटी के चक्कर में सारा पसीना बह जाता है। बादाम कहां से लता? पर अचानक एक अज्ञात विद्वान की उक्ति सामने आ गई अक्ल बादाम खाने से उतनी नहीं आती, जितनी धोखा खाने से आती है। सोचा, क्यों न दोनों को ही आजमा लिया जाए।
एक मित्र से कहा - मुझे कुछ बादाम चाहिए। उसने बादाम देने का वादा किया। पर वह आजकल आजकल करता रहा। पर बादाम नहीं लाया। मैंने सोचा, क्यों नहीं उक्ति का उत्तरार्ध आजमा लिया जाए। मैंने उससे कहा कि मुझे धोखा खाना है। उसने हां नहीं की, उल्टा यही कहता रहा कि मैं ऐसा नहीं हूं कि मित्र को धोखा दूं। पर शीघ्र ही उस मित्र ने धोखा दे ही दिया। अक्ल इतनी ही आई है कि जिसके पास जो हो वही तो देता है।
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