नाचू के रंग : बाल उपन्यास की समीक्षा

Dr. Mulla Adam Ali
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Naachu Ke Rang : Children's Novel Review in Hindi

Naachu Ke Rang Children's Novel Review

हिन्दी बाल उपन्यास की समीक्षा : गोविंद शर्मा जी द्वारा लिखा गया बाल उपन्यास नाचू के रंग की समीक्षा हिन्दी में, समीक्षक विमला नागला जी राजस्थान के अजमेर के राजकीय चारभुजा स्कूल केकड़ी में कार्यरत शिक्षिका एवं साहित्यकार कहानीकार हैं, हुलसी चिरमी लिख-लिख पाती, जादुई पिटारा आदि उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकें है।

बाल उपन्यास नाचू के रंग की समीक्षा

  • पुस्तक: नाचू के रंग
  • विधा: बाल उपन्यास 
  • लेखक: श्री गोविंद शर्मा 
  • प्रकाशक: पंचशील प्रकाशन -जयपुर।
  • मूल्य: ₹150
  • समीक्षक: विमला नागला 

लेखक महोदय श्री गोविन्द शर्मा जी की लब्धप्रतिष्ठित बाल साहित्यकार के रूप में पहचान किसी परिचय की मोहताज नहीं है।आप लगभग 52 वर्षों से सतत बाल साहित्य सृजन कर रहे है।अब तक इनकी 62 पुस्तकें अलग -अलग विधाओं में प्रकाशित हुई है।जिसमें 51 पुस्तकें बाल साहित्य की ही है।

अपनी उत्कृष्ट व प्रखर लेखनी के कारण यह पहले राजस्थान के बाल साहित्यकार हैं जिन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी ने अपना सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान किया।इसके अलावा राजस्थान व देशभर के अनेक राज्यों से प्रतिष्ठित सम्मान व पुरस्कारों से सम्मानित लेखक महोदय की सृजित कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ।साथ ही उनकी अनेक रचनाएं पाठ्यक्रम में भी शामिल हुई।

सद्य प्रकाशित कृति

नाचू के रंग बाल उपन्यास 

प्रथम दृष्टया अपने सुंदर नामकरण के साथ ही अपने अनूठे मनभावन आवरण पृष्ठ द्वारा पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भभुत क्षमता रखती हैं।

आज ही पुस्तक मिली और मेरा बालमन भी इसे पढ़ने का लोभ संवरण नहीं कर पाया।

 मैंने लेखक महोदय के अनेक कृतियों का पाठकीय रसास्वादन किया और इसे पढ़ने के बाद मैं यह दावे से कह सकती हूं कि अब प्रकाशित कृतियों के समान ही निस्संदेह यह पुस्तक भी साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान बनायेंगी।

इसका कारण लेखक ने अपनी अद्भभुत कल्पनाशीलता के दम पर नाचू और उसके रंग-ब्रश से न जाने कितनी समस्याओं का हल निकाला और बाल पाठकों को मनोरंजन के साथ साथ नैतिकता, वृक्षारोपण, स्वच्छता, मुसीबतों से मुकाबले जैसी सीख दे परोक्ष रूप से दे डाली।

इसमें अति महत्वपूर्ण पक्ष यह देखने को मिला कि आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में जहां बाल गोपाल हंसना -मुस्कुराना लगभग भूल से गये वहां लेखक महोदय ने बेहद दूरदर्शिता के साथ नाचू को हर पल हंसते हुए बताया ।साथ ही हमेशा हंसते रहने की आदत से ही वह चुटकियों में अपने रंग-ब्रश के दम पर सुन्दर सुन्दर मोहक चित्र बनाकर अपनी नवीन पहचान बनाते हुए बताया गया है।यह समसामयिक जीवन में बहुत बड़ी सीख है जिसकी आज के बालपन को जिंदा रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है।

मैं कथानक पर पूरी बात इसीलिए नहीं लिखूंगी क्योंकि यह सब पाठकों पर छोड़ती हूं कि वह स्वयं इसे पढ़ें, जाने और इन प्रश्नों के उत्तर खोजें की कैसे नाचू ने चोर को पकड़ा,कैसे मेले में मामा की चेन ,चेन-स्नेचर से बचाई,मामा को कैसे डबलरोटी खिलाई, कैसे स्कूल और स्कूल के रास्तों की सजावट की, कैसे उसका बनाया चित्र एकदम से सजीव हो गया,उसने कुख्यात डाकूओं से लूट का सामान कैसे बचाया , कैसे गली -मोहल्ले की समस्यायों का समाधान किया, और चौकीदार की झोपड़ी का रहस्य जानने के लिए तो आप सुधी बाल पाठकों को यह सुन्दर अनुपम कृति पढ़नी ही पड़ेगी।

बस मैं आपको इतना विश्वास दिला सकती हूं कि आप इसे पढ़कर निराश कदापि नहीं होगें बल्कि आपके दोस्त नाचू के सुनहरे रंग में रंग जरूर जाओगे और हो सकता है आप भी उसकी तरह अपने हूनर को नवीन पहचान दे सको।

सुंदर श्वेत -श्याम चित्रों में आप भी अपनी कल्पनाओं के मनभावन रंग भर सकते हैं।

यह कृति आप सबको जरूर पसंद आएगी। मुझे यह अनमोल उपहार देने पर लेखक श्री गोविन्द शर्मा जी का हार्दिक आभार और इस श्रेष्ठ कृति हेतु उन्हें अनेकानेक शुभकामनाएं एवं बधाइयां।

- विमला नागला 

15-, दिव्यांशालय सुन्दर कालोनी

केकड़ी 

नाचू के रंग : हिन्दी बाल उपन्यास

Naachu Ke Rang Bal Upanyas Ki Samiksha

अपनी बात

साहित्य के क्षेत्र में रचना करते हुए पचास से अधिक वर्ष बीत गए हैं। सर्वप्रथम दो बालकथाएँ लिखी थी। वे तत्काल छप गई थी। मानदेय भी अच्छा मिला था। बोहनी अच्छी हो गई थी। फिर व्यंग्य एवं लघुकथाएँ लिखने लगा। पाँच लघुकथा संग्रह और दो व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। पर संतुष्टि बाल-साहित्य लेखन से ही हुई। अब तक बाल साहित्य की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इनमें से लगभग बीस पुस्तकों का अन्य भारतीय भाषाओं (सर्वाधिक ओड़िया भाषा) में अनुवाद प्रकाशित हो चुका है।

कई वर्ष पहले नेशनल बुक ट्रस्ट ने एक लघु बाल उपन्यास 'डोबू और राजकुमार' प्रकाशित किया था। वह लोकप्रिय भी हुआ और अभी भी रॉयल्टी देकर खुश कर रहा है। अब प्रस्तुत है आपके सामने 'नाचू के रंग'। इसका अर्द्धांश कई साल पहले लिखा था। आगे का हिस्सा लिखने का अवसर ही नहीं मिला। अचानक इसी वर्ष अर्थात् 2024 में यह ध्यान में आ गया। पहले नाचू नामक बालक चित्रकार छोटा था। वह बड़ा होने लगा। उपन्यास भी बड़ा होता गया। पहले वह अपने रंग ब्रश से लोगों का मनोरंजन ही करता था। बाद में तो लोगों को प्रेरणा देने लगा। सफाई करवाने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए परिश्रम करने का समर्थक बन गया। इसके लिए पौधारोपण के आंदोलन का सक्रिय कार्यकर्ता बन गया। आंदोलन का मतलब यह नहीं कि सड़क पर जुलूस निकालने लगा, बल्कि खाली जमीन पर स्वयं पौधारोपण करवाने और करने में लग गया। इस काम के लिए एक पूरी टीम बन गई उसके दोस्तों की।

सब कुछ किया लेकिन पढ़ाई, रंग और ब्रश को नहीं छोड़ा। नाचू ने रंग ब्रश नहीं छोड़ा तो मैंने भी अपनी लीक को नहीं छोड़ा।

मतलब कि मेरी अन्य रचनाओं की तरह इस लघु उपन्यास में भी मनोरंजन है, सीख है? सीख भी हवाई नहीं, बल्कि धरातल पर है। दूसरों की सहायता की जानी चाहिए, पढ़ने की उम्र में पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए, आधुनिकता और परंपराओं में समन्वय रखते हुए साहित्य से सुसंस्कार ग्रहण करने चाहिए आदि- आदि। यही सब इस उपन्यास 'नाचू के रंग' में है। सहयोग है प्रकाशक श्रीमती मनीषा गुप्ता (पंचशील प्रकाशन) का और आशा है बाल साहित्य को पसंद करने वाले पाठकों से कि वे पहले की तरह मेरी इस रचना को भी भरपूर प्यार देंगे।

शुभकामनाएँ।

आपका

गोविंद शर्मा

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