पत्र : कभी पुराने नहीं होते - स्तुति राय की कविता

Dr. Mulla Adam Ali
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Stuti Rai Poetry in Hindi

पत्र

कभी पुराने नहीं होते

इन्हें जब भी पढ़ो

लगता है बिल्कुल अभी

लिखा गया हों मेरे लिए

पहले से भी ज्यादा

हम भावुक हो जाते हैं

वक्त की गंध इसमें

भर चुकी होती है

यादों का एक समुचित

पिटारा होते हैं पत्र

इन्हें पढ़ना सिर्फ आंखों का गिला होना नहीं है

बल्कि शब्द भी नम हो जाते हैं

यादें भी गीली हो जाती है

भाव और जज्बात भी भींग चुके होते हैं

प्रेम हुक की तरह गले तक आ जाता है

और सब कुछ चलचित्र की तरह आंखों के सामने

दिखाई देने लगता है

और फिर हाथ यंत्रवत

पत्र को लिफाफे में डाल कर

उस बक्से में रख देता है, जहां

हमारे प्रेम तक दुनिया की नजर ना पहुंचे।


- स्तुति राय

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