रास्ते का पानी : जल के महत्व को समझाती बाल कहानी

Dr. Mulla Adam Ali
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बालकथा रास्ते का पानी : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह गलती बँट गई से जल के महत्व पर लिखी गई बाल कहानी रास्ते का पानी, हमें पानी का एक-एक बूंद का इस्तेमाल सावधानी से करना चाहिए और विकास के नाम पर पेड़, जंगल, हरियाली की बलि नहीं दी जानी चाहिए। पानी के महत्व और पेड़, जंगल, हरियाली के महत्व पर रोचक, ज्ञानवर्धक बाल कहानी रास्ते का पानी पढ़िए बाल कहानी कोश में पर्यावरण संरक्षण की रोचक कहानियां।

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रास्ते का पानी

लंबी चौड़ी सड़क बनेगी। उसके रास्ते में आने वाले हर पेड़-पौधे को जड़ से उखाड़ कर फेंका जा रहा था। आज एक साथ खड़े तीन पेड़, जिनमें एक बरगद का, दो नीम के थे, कटने की बारी थी। काटने वाले कुल्हाड़े और आरे लेकर आ गये। वे अपना काम शुरू करें, इससे पहले ही एक बाधा आ गई। इस अड़चन की किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। आस-पास के गाँवों में भी यह खबर पहुँच गई थी। तमाशा है, देखने के लिये लोग वहाँ पहुँचने लगे। लोगों ने देखा-एक पढ़ी-लिखी मेम पेड़ काटने वालों को रोक रही है, उनसे बहस कर रही है।

- मैडम, हम सरकारी आदमी हैं। हमारे पास उपखंड अधिकारी की अनुमति है पेड़ काटने की। आप हमें नहीं रोक सकतीं।

- नहीं, ये पेड़ सरकारी नहीं हैं। आप गैर सरकारी पेड़ों को कैसे काट सकते हैं?

- यह जमीन सरकारी है। सरकारी जमीन पर लगे पेड़ सरकार के हो जाते हैं।

- हम लोग भी इस समय सरकारी जमीन पर खड़े हैं। आप हमें काटना तो दूर, छू भी नहीं सकते। इन पेड़ों का बीजारोपण सरकार ने नहीं किया था। इन्हें बचपन से सरकार ने नहीं सींचा था।

- लगता है आपको सब पता है। उन्हें सामने तो बुलाओ, जिन्होंने इनको बचपन में सींचा था।

- इनके बचपन को मेरे बचपन ने सींचा था।

- ओह! आप दो हजार किलोमीटर दूर मुंबई से यहाँ आकर बचपन में इसकी सिंचाई करती थीं?

- मुंबई तो मैं बहुत समय बाद गई हूँ। मेरा बचपन यहाँ पास के एक गाँव में बीता है। हमारे गाँव में पानी का कुआँ नहीं होता था। गाँव से दो किलोमीटर दूर के एक कुएँ से हम पीने का पानी लाते थे। पानी लाने का मेरा और मेरे जैसी दूसरी लड़कियों का यही रास्ता होता था। जब भी मैं इन पेड़ों के बचपन के पास से गुजरती, अपनी गागर से थोड़ा-थोड़ा पानी इनकी जड़ के पास डाल देती थी। मेरी माँ को सदा यह शिकायत रहती कि दूसरी सब लड़कियों की गागर भरी होती है। तुम्हारी गागर में पानी कम क्यों होता है? मैं कह देती पानी छलक गया। इस तरह मेरे पानी की सिंचाई से ये पौधे से पेड़ बने हैं। यह बात अलग है कि मुझे पानी के लिये दूसरी लड़कियों से एक चक्कर ज्यादा लगाना पड़ता।

पौधे कुदरत ने लगाए, सिंचाई कर उन्हें पेड़ मैंने बनाया। ये सरकारी नहीं हो सकते। जमीन सरकार की होगी। वह आप ले जाएँ। पेड़ हम सबके हैं। यह ठीक है कि मैं यहाँ से बहुत दूर रहती हूँ। पर आसपास बहुत से गैर सरकारी लोग रहते हैं। ये पेड़ हम सबके हैं। मैं इस इलाके में एक रिश्तेदार के यहाँ आई थी। आज के अखबार से मुझे पेड़ कटने का पता चला।

- देखिए मैडम, हमें आपकी बात पर जरा भी विश्वास नहीं है। आप....।

- देखिए, यह सच्चाई है। मैं साबित कर दूँगी कि मैं यहीं की रहने वाली हूँ। शादी के बाद पति आधुनिक विचारों के निकले। उन्होंने मुझे पढ़ाया, इस योग्य बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ। अब हम मुंबई में व्यापारिक संस्थान चलाते हैं। हाँ, यह बात बताओ, पीछे तो सड़क सीधी चलती आ रही है। यहाँ आते ही एकदम इधर कैसे घूम गई है?

अब तक वहाँ काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। भीड़ में से एक सज्जन बोले- एक रसूखदार की जमीन बचाने के लिये सड़क को घुमा दिया गया।

कौन हैं यह रसूखदार?

कोई और बोले, इससे पहले ही एक वृद्ध आगे आये और बोले- वह मैं हूँ। मैं रम्मी का दादा हूँ...।

ओह रम्मी ! वह तो मेरे साथ उस कुएँ से पानी लाती थी। हाँ, वही रम्मी। उस वक्त यहाँ सिंचाई के लिये तो क्या पीने का पानी भी मुश्किल से मिलता था। अब नहर आ गई है। मेरी जमीन में फसल होने लगी है। इसलिये अपनी जमीन का एक टुकड़ा बचाने के लिए सड़क को घुमाने का काम मैंने करवाया है। अब तुम्हारी बातों से मुझे कुछ ज्ञान मिला है। मैं सड़क को सीधा निकलवाने के लिये सरकारी अफसरों से मिलूँगा ताकि ये पेड़ बच जाएँ, जिन्हें रास्ते के पानी ने पनपाया है।

वहाँ तालियाँ बजने लगी थी।

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