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Sabki Dharti Sabka Desh Book by Govind Sharma
सबकी धरती सबका देश : गोविंद शर्मा जी का बाल कहानी संग्रह सबकी धरती सबका देश भूमिका से हिमांशु शर्मा, दिविक रमेश जी द्वारा लिखी गई भूमिका। हिंदी बाल कथा संग्रह सबकी धरती सबका देश।
हिन्दी बालकथाओं के सरताज : गोविंद शर्मा
Govind Sharma
सुपरिचित बाल साहित्य रचनाकार श्री गोविंद शर्मा गत पचास वर्ष से बाल साहित्य, लघुकथा और व्यंग्य आदि विधाओं में निरंतर रचना कर्म कर रहे हैं। अब तक उनकी पचास पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि उनकी अधिकांश पुस्तकें हमारे संस्थान 'साहित्यागार' से प्रकाशित हुई है। उनकी बाल साहित्य की 4 पुस्तकें नेशनल बुक ट्रस्ट से भी प्रकाशित हुई है।
हमारे लिए खुशी और गौरव की बात है कि हमारे प्रकाशन से प्रकाशित उनके बालकथा संग्रह 'काचू की टोपी' पर उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी का वर्ष 2019 का सर्वोच्च बाल साहित्य पुरस्कार मिला था। राजस्थान में हिंदी की किसी पुस्तक पर और राजस्थान के किसी हिंदी बाल साहित्यकार को यह पुरस्कार पहली बार मिला और अब तक वही एकमात्र हिंदी बालकथा लेखक हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला है।
उन्हें 1999 में पांडुलिपि पर केंद्र सरकार के प्रकाशन विभाग से प्रतिष्ठित भारतेंदु पुरस्कार मिला था। उससे अगले वर्ष ही श्री गोविंद शर्मा को हमारे प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक पर राजस्थान साहित्य अकादमी का शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। भारतेंदु पुरस्कार से पुरस्कृत पांडुलिपि को मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय श्री रमेश चंद्र जी वर्मा ने पुस्तक रूप में प्रकाशित किया था। उस दिन से हमारा और श्री गोविंद शर्मा का अटूट संबंध जुड़ गया था, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रहा है और चलता रहेगा। इसे आप पारिवारिक संबंध कह सकते हैं या मित्रता का। अब हम उनका नया बालकथा संग्रह प्रकाशित कर रहे हैं- 'सबकी धरती सबका देश'। इस संग्रह में दस बालकथाएँ हैं-एक से बढ़कर एक। इन बालकथाओं के संग्रह के प्रकाशन से मुझे प्रसन्नता हो रही है।
'वह पत्थर मेरे थे' कहानी में संदेश है कि बच्चों को विशेष शरारत पर सजा देने से पूर्व हम बड़ों को यह सोचना चाहिए कि क्या हमने बचपन में ऐसा नहीं किया था। पिता-पुत्र के आपसी स्नेह की कहानी हैं-'जीनू दी गड्डी'। निस्संदेह बाल पाठकों का अपने माता-पिता से ऐसी कहानियों से स्नेह प्रगाढ़ होता है।' बातवीर से दोस्ती' बालस्वरूप चंचलता और मनोरंजन से भरपूर कहानी है। इंसान और जानवर सभी इसी धरती के जीव है। यदि हम किसी मूक पशु को स्नेह और संरक्षण देंगे तो यह हमारे पास दोगुना होकर लौटेगा, यही कहानी है 'बीसू की करामात'। आपसी सहयोग, लगाव और वफादारी की कहानी है-'गधा, बंदर और लाठी'। हम किसी के साथ अच्छा करेंगे तो वह भी अपनी पुरानी आदतों को छोड़कर अच्छाई की तरफ जाएगा- यह संदेश है कहानी 'चोरी करना छोड़ दिया' में। 'सुई-धागा' भी एकता और आपसी सहयोग की कहानी है। हमें नए पेड़ तो लगाने ही चाहिए, जो पहले से लगे हैं, उनकी रक्षा भी हमारा धर्म है, कर्त्तव्य है और सबसे बढ़कर पर्यावरण की रक्षा के लिए आवश्यकता भी है। 'पेड़ बच गया' कहानी में यही सीख है। 'घोंसला' भी पक्षियों से स्नेह की कहानी है।
संग्रह की शीर्ष कथा 'सब की धरती सब का देश' में कई संदेश है। एक तो यही कि बच्चों के लिए दादा-दादी के संरक्षण की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी माता-पिता के संरक्षण की। जंगल सिर्फ हमारे नहीं है जंगल में रहने वाले जीवों के भी हैं। उन्हें नष्ट करने से पहले सोचे कि यदि हमने जंगल नष्ट किए तो ये जीव कहाँ जाएँगे।
सभी कहानियों में सीख, मनोरंजन और रोचकता भी खूब है।
हमारे और श्री गोविंद शर्मा जी के अटूट बंधन की सदा के लिए सलामती की कामना करते हुए उन्हें अनेकानेक शुभकामनाएँ देता हूँ।
- हिमांशु वर्मा
बस एक विनम्र अनुरोध की तहत कुछ विनम्र शब्द
मेरे सामने गोविंद शर्मा जी के बालकथा संग्रह 'सबकी धरती-सबका देश' की पांडुलिपि सहर्ष उपस्थित है। साथ ही है एक छोटा-सा, कहूँ नन्हे बालक-सा, अधिकार भरा, भोला विनम्र अनुरोध, दो शब्द लिखने का। जानता हूँ, और कौन नहीं जानता कि मेरे हमउम्र और सहज-सरल स्वभाव के गोविंद शर्मा गत 50 वर्षों से बाल साहित्य और साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरंतर सृजनरत हैं। बाल साहित्य में उनकी लगभग 40 पुस्तकें और अन्य विधाओं में लगभग 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इधर, 2022 में उनकी विशिष्ट जानकारी केंद्रित दो पुस्तकें 'दादाजी की अंतरिक्ष-यात्रा' और 'यह कालीबंगा है' प्रकाशित हुई हैं, और चर्चा में भी हैं। कुछ पहले से उन्होंने विज्ञान विषयक लेखन भी प्रारम्भ किया है। बाल साहित्य के क्षेत्र में, गोविंद शर्मा जी का मूल दखल बाल-कथा लेखन में ही है। 2019 में उन्हें कथा-संग्रह के रूप में उनकी कृति 'काचू की टोपी' पर साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। काचू पहाड़ का एक आदमी है जो मेहनत-मजदूरी करता है। सर्दी में परेशानी होती है सो पत्नी ने उसे गर्म टोपी दी। थक गया तो रास्ते में एक पार्क में सो गया। उठा तो टोपी गायब थी। उसका लड़ने-झगड़ने में विश्वास नहीं था। देखा, उसकी टोपी पहने एक आदमी पास की बैंच पर सोया हुआ था। हिम्मत करके चोर को जगाए बिना उसने टोपी ले ली। पर टोपी में गरमी थी ही नहीं। असल में उसने सोचा कि उसने भी तो टोपी (चाहे वह उसी की थी) पर ली तो चोरी से ही थी न ! इसके बाद बात थाने में पहुँचती है। वह अपने द्वारा अपनी ही चोरी की गई टोपी को थाने में जमा करवाना चाहता है। विचित्र मामला था! थाने में वह किसी के तर्क से सतुष्ट नहीं होता। वह अपने द्वारा की गई चोरी की सजा चाहता है। आखिर उसे सजा मिलती है कि टोपी पहनकर वह सो जाए। काचू सो गया। उसे सोते देख थानेदार और सिपाही हँस पड़े। तो ऐसी मजेदार कहानियों के लेखक हैं गोविंद शर्मा। उनकी कितनी ही कहानियों में ऐसा सच्चा भोलापन, ईमानदारी और लोककथाओं का-सा छोंक सहज रूप से मिल जाता है। चुटकियों और गुदगुदाहट की शैली से इनकी कहानियाँ बीच-बीच में खुद-ब-खुद मुस्कुराती रहती हैं। 11 विविध रंगी कहानियों को समेटे प्रस्तुत संग्रह 'सबकी धरती-सबका देश' भी अछूता नहीं है।
एक कहानी है 'बातवीर की दोस्ती'। इसमें एक बालक है-रितिक। यही दादाजी के शब्दों में बातवीर है। इसके संवादों में सूझबूझ का टटकापन तो होता ही है, मसखरापन और मजा भी रहता है। जिस तरह से वह घर में घर और अकेले कमरे का भेद बताता है वह किसी भी पाठक को चौंका भी सकता है और गुदगुदा भी सकता है। कैलीग्राफी राइटिंग पर की गई उसकी टिप्पणी भी कम मजेदार नहीं है। 'जीनू दी गड्डी' में पिता और पुत्र जीनू के बीच का जो गहरा अपनापन और लगाव आया है वह अद्भुत है और गुदगुदाता भी है। बेटा जब अपनी कामयाबी का श्रेय पिता को देता है तो पिता को समझ ही नहीं आता, क्योंकि उस क्षेत्र में तो पिता का जरा भी दखल नहीं है। इस पर बेटे का तर्क देखिए। वह कहता है कि आपने भी तो अपने ट्रक का नाम 'जीनू दी गड्डी' रखा है। 'सबकी धरती-सबका देश' जानवरों की दुनिया के प्रति बच्चों के जरूरी लगाव को सामने लाती है। अंत में उन्हीं के माध्यम से यह समझ दी गई है- "मैं तो समझ गया कि यह धरती हम सबकी है। यह देश, इसमें रहने वाले हम सबका है।"
यहाँ अच्छी कहानियों में प्रायः बालक की खूबियों, उसके विश्वास, उसकी सूझबूझ आदि को बखूबी रचा गया है। सही मायने में यही बालक विमर्श है। बालक के प्रति बड़ों का कैसा व्यवहार होना चाहिए? वह इन कहानियों में बुना हुआ नजर आएगा। बच्चों पर बड़ों का भरोसा बहुत जरूरी है-एक पाठ यह भी निकलता है इस संग्रह से। बड़े बच्चों से भी बहुत कुछ समझ सकते हैं। जैसे 'घोंसला' कहानी में आया है। सच में ये कहानियाँ हँसती-गाती और सुख पहुँचाती कहानियाँ हैं। स्वागत के योग्य।
अपनी बात
पाठक मित्रों, बालसाहित्य की यह मेरी 41वीं पुस्तक आपके हाथों में देते हुए खुशी हो रही है। सन् 1972 की बात है। जब पहली बार एक ही दिन दो बालकथाएँ लिखी थी। दोनों एक बड़ी पत्रिका को भेज दी, दोनों ही छप गई। बस, उसी दिन मिल गया- शाप कहो या वरदान कि बच्चू बालसाहित्यकार बनोंगे। बालसाहित्य में भी बालकथाएँ ही लिखोगे। यही हुआ, बालसाहित्य की 41 पुस्तकों में चार सामान्य जानकारी की, एक कविता की और एक एकांकी संग्रह के अलावा बाकी सब पुस्तकें बालकथाओं की ही है।
मैंने हर तरह की बालकथाएँ, लोककथाएँ, नैतिक कथाएँ पढ़ी हैं। तब यही समझा हूँ कि जैसा कि कुछ लोग मानते हैं कि लोककथा, धार्मिक कथा, साधु-संतों द्वारा प्रवचनों में सुनाई जाने वाली कहानियाँ बच्चों के लिये बालसाहित्य होता है। जी नहीं, मैंने इन्हें कभी बालसाहित्य नहीं माना। जितना भी लिखा, अपना मौलिक लिखा। आगे भी अपनी गाड़ी इसी पटरी पर चलेगी। भरपूर कोशिश की है कि हर बालकथा में कोई सीख जरूर हो, मनोरंजन भी हो।
ये कहानियाँ पूर्व में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी है। सराही भी गई है। पर अब ये दस कहानियाँ एक साथ आपको समर्पित है। पढ़ें, संभव हो तो मुझे बताएँ कि आपको क्या पसंद आया, क्या नहीं। इससे मुझे भी सीख मिलेगी। सीखने की उम्र की कोई सीमा नहीं होती है। इसकी कोई आखिरी घड़ी नहीं होती है। आइए, पढ़ें, पढाएँ और एक-दूसरे को नये से नया सिखाएँ।
-गोविंद शर्मा
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