तीन बंदर बना : बच्चों के लिए जबरदस्त मनोरंजक और दिलचस्प कहानियां

Dr. Mulla Adam Ali
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बालकथा तीन बंदर बना : गोविंद शर्मा जी का बालकथा संग्रह गलती बँट गई से बाल कहानी कोश में आपके लिए लेकर आए हैं मजेदार बाल कहानी तीन बंदर बना, भरपूर मनोरंजन और बाल सुलभ चंचलता की कहानी पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए।

Bal Kahani in Hindi : Teen Bandar Bana

तीन बंदर बना

वैसे तो यह रोज का काम है। गुप्ताजी जब भी ऑफिस से घर आते, उनका छोटा बेटा बब्बू एक बार साथ लाए सामान को देखता, फिर मोबाइल माँग लेता। उसे गुप्ताजी का मोबाइल मिल जाता। उसके हाथ में सारी दुनिया होती, अब कुछ और लेना कहाँ बचता।

उस दिन मोबाइल माँगा तो गुप्ताजी बब्बू पर झल्ला गये। यहीं गड़बड़ हो गई। बब्बू नाराज हो गया और घर के एक कोने में दीवार की तरफ मुँह करके बैठ गया। कुछ ही देर में गुप्ताजी सामान्य हो गये। बब्बू की तलाश शुरू हुई। देखा, एक कोने में बब्बू विराजमान है। मुँह से कुछ नहीं बोल रहा है, आँखें बंद है और कानों पर हाथ रख रखे हैं। दीवार पर एक कागज चिपका है। उस पर बब्बू के हाथ से लिखा है- मैं आप सबसे 'तीन बंदर' हूँ।

घर के सब लोगों ने कोशिश की, पर बब्बू टस से मस नहीं हुआ। न किसी की तरफ देखा, न किसी से बोला और न ही कानों से हाथ हटाये।

घर में कुछ कम तो कुछ ज्यादा परेशान हो गये। तीन बंदर का मतलब क्या है? कोई नहीं समझ सका। अचानक बब्बू के बड़े भाई को एक आइडिया सूझा- बब्बू के साथ पढ़ने वाले बँटी को बुलाते हैं। हो सकता है, वह कोई हल बता दे।

बँटी को बुलाया गया। उसे समस्या बताई गई तो वह सोचने लगा। उसे सोचता देख, चाचा बोले- अब ये महाशय भी कुछ-कुछ बब्बू जैसे हो गये हैं। पर बँटी वैसा नहीं हुआ था। बोला-कल स्कूल में टीचर ने हमें एक कहानी सुनाई थी। गाँधीजी के पास एक बड़ा खिलौना होता था। उसमें तीन बंदर बने होते थे। एक अपने कानों पर हाथ रखे हुआ था, मतलब कोई बुरी बात मत सुनो। एक ने आँखें बंद कर रखी थी अर्थात् बुराई मत देखो। एक ने मुँह बंद कर रखा था, अर्थात् अपने मुँह से कोई बुरी बात मत कहो।

"यह तो बहुत अच्छी कहानी सुनाई टीचर ने", गुप्ताजी बोले।

बब्बू आप सब से नाराज है। वह आप लोगों से एक साथ तीन बंदर है। वह न बोलेगा, न आपकी तरफ देखेगा और न ही आपकी बात सुनेगा।

गुप्ताजी बँटी को एक तरफ ले गये और बोले- बँटी, आज मैं कुछ परेशान था। बब्बू ने मुझसे मोबइल माँगा तो मैं नाराज हो गया। इसी बात को लेकर वह रूठा हुआ है। तुम कुछ करो ताकि उसके भीतर से 'तीन बंदर' निकल जाए। वह अकेला ही किसी बंदर से कम नहीं है।

"अंकल, इसके लिये आपको बब्बू और मेरे दोस्तों को घर बुलाकर चॉकलेट पार्टी देनी होगी।"

पार्टी की हाँ हो गई तो बँटी ने अपनी योजना बताई और अपने घर चला गया। गुप्ताजी के फोन की घंटी बजी। उधर से बँटी बोला तो गुप्ताजी जोर से बोले-बँटी बोल रहे हो और बब्बू से बात करना चाहते हो? पर बब्बू तो तीन बंदर बना हुआ है। वह किसी से बात नहीं करेगा, किसी की सुनेगा नहीं, किसी की ओर देखेगा भी नहीं।

क्या कहा, तुम्हारे घर पर पप्पू, टप्पू, गोली, पोली सब हैं। तुम्हारे पास कोई खास बात है... होने दो आज बब्बू नहीं...।

पर इतने में बब्बू वहाँ आ गया और गुप्ताजी के हाथ से मोबाइल छीन लिया। "हैलो, बँटी, मैं बब्बू बोल रहा हूँ। क्या खास बात है?.... क्या मेरे घर आ रहे हो, यहाँ आकर ही बताओगे? चलो, आ जाओ।"

बब्बू ने देखा, घर के सब लोग इधर-उधर चले गये हैं। पर डाइनिंग टेबल को देखते ही उसकी आँखें चौड़ी हो गईं। इतने बड़े-बड़े चॉकलेट और इतने सारे....।

वह अभी लेने की सोच ही रहा था कि बँटी, पप्पू, टप्पू, गोली, पोली धड़ाधड़ पहुँच गये। सभी ने एक-एक चॉकलेट उठा लिया और थैंक्यू-थैंक्यू करने लगे। एक चॉकलेट बब्बू का अभी प्लेट में ही था। बब्बू ने उसे उठाते हुए पूछा-बँटी, बता तो खास बात क्या है?

"जन्मदिवस के अलावा, खाने को तो क्या देखने को भी नहीं मिलते इतने बड़े-बड़े चॉकलेट । अब इससे बड़ी खास बात क्या हो सकती है..." कहते हुए वे सब तेजी से बाहर चले गये।

वहाँ रह गया अकेला बब्बू, जिसके एक हाथ में मोबाइल तो दूसरे में चॉकलेट। यही तो चाहिए था उसे। अब तीन बंदर नदारद थे। वहाँ अकेला बब्बू ही था।

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